मक्के की रोटी और सरसों का साग, एक ऐसी भारतीय डिश है जिसे आप किसी भी स्तरीय रेस्टोरेंट के मैन्यू में देख सकते हैं. भारत समेत विदेशों में भी भारतीय डिश में आपको मक्के की रोटी ओर सरसों का साग मिल जायेगा. Maduwe ki Roti
मूल रूप से पंजाब का यह खाना आज देश-विदेश में भारतीय खाने के रूप में प्रसिद्ध है लेकिन मडुवे की रोटी और हरिया साग अपने ही क्षेत्र में हीनता का शिकार है. मक्के से ज्यादा पौष्टिक गुण वाला मडुवा हीनता का शिकार अपनी क्षेत्रीयता के कारण है. Maduwe ki Roti
आप पंजाब, हरियाणा के इलाकों में चले जाइये नाश्ते से लेकर डिनर में आपको पूरी शान के साथ के मक्के की रोटी और सरसों का साग परोसा जायेगा. वहीं उत्तराखंड में आइये यहां मडुवे की रोटी मांगने पर भी आपसे सवाल किया जायेगा, मडुवे की रोटी कौन खाता है?
मडुवे की रोटी पहाड़ में दशकों तक गरीबों का मुख्य भोजन रही है. घरों में गेहूं की रोटियां सम्पन्नता का सूचक हुआ करती थी. यह मानसिकता पहाड़ियों के दिमाग में इस तरह ठस गई है कि आज जब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मडुवे को खोजा जा रहा है तब भी पहाड़ में मडुवे का की रोटी हीनता का ही शिकार है.
पंजाब की मक्के की रोटी हो या दक्षिण का इडली डोसा, दुनिया भर में इन्हें लोकप्रिय बनाने का काम वहां के मूल लोगों ने खूब किया है. वो जहाँ गये वहां अपने खानपान का प्रचार प्रसार किया. अपनी क्षेत्रीयता को उन्होंने कभी ढका नहीं बल्कि खुलकर लोगों के सामने रखा जिसके परिणाम हमारे सामने हैं.
पहाड़ी मूल के लोगों से यह अपेक्षायें छोड़िये आप पहाड़ में स्थित होटल देखिये. आपको गिने-चुने ऐसे होटल मिलेंगे जो आपको मडुवे की रोटी संग हरी सब्जी, घी, मक्खन, भांग की चटनी, हरा नमक आदि अपने होटल में परोसते हैं. मडुवे की रोटी जैसे पौष्टिक नाश्ते को छोड़कर हम नूडल पर्यटकों को परोसते हैं. क्या हमारा स्थानीय भोजन हमारी विशेषता नहीं हो सकता?
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