Featured

मडुआ: एक पहाड़ी अनाज का फर्श से अर्श तक का सफर

मडुआ, मंडुआ, क्वादु और कोदा नाम से पहचाने जाने वाले अनाज को लम्बे समय तक उत्तराखण्ड में वह सम्मान नहीं मिल पाया है जिसका कि वह हकदार था. मडुआ को हमेशा से निचली समझी जाने वाली जातियों और गरीब लोगों का अनाज माना गया. इसी वजह से इसे हमेशा हिकारत की नजर से देखा गया. हो सकता है इसमें इसके मोटा अनाज होने के साथ-साथ काले रंग की भी भूमिका हो, भारतीय समाज में मोटापे और काले रंग दोनों को ही वितृष्णा का पात्र जो माना जाता है.

बहरहाल, हर किसी के दिन फिरते हैं सो मडुए के भी फिरे. आजादी के बाद भारत में पैदा हुए मध्यम वर्ग को खाने-अघाने के बाद जल्द ही मोटापे ने घेर लिया. मोटापा खुद के साथ कई बीमारियां लाता ही है. अब मोटापे की वजह से पैदा हुई इन कई बीमारियों की वजहों की तलाश शुरू हुई. बात कुर्सियों में स्थानांतरित होते रहने वाली दिनचर्या और ‘अतिपोषित’ भोजन पर जा टिकी. आनन-फानन में मध्यवर्ग को तमाम व्याधियों से मुक्ति दिलाने वाले कई ओझा-सोखा पनप गए. इन्होंने धर्म का हवाला देकर भारतीय मध्यवर्ग से स्वस्थ जीवन पद्धति अपनाने का आह्वान किया.

फोटो: जयमित्र सिंह बिष्ट

इनका दिया गया फार्मूला था अपने सुभीते के हिसाब से दिन में एक दफा पवन मुक्त टाइप आसन करो और पौष्टिक भोजन को आहार में शामिल करो. इनकी आलस्य से भरी दिनचर्या का तो कुछ किया नहीं जा सकता था. तो योग के साथ उचित भोग का फार्मूला ही लागू किया गया. अब यह वर्ग डाइटीशियन का खर्च तो उठा नहीं सकता था. सो पौष्टिक आहार की आपूर्ति का जिम्मा भी बाबाओं ने ही ले लिया. इस बात का फायदा उठाकर बाबाओं ने सामूहिक कसरत के पैकेज प्रस्तुत किये और पोषक भोजन बेचने का कारोबार भी शुरू कर दिया.

इन्हीं के द्वारा परोसे गए पोषक तत्वों में से एक अनाज था फिंगर मिलेट (Finger Millet) का आटा. कहा गया कि इस आटे की रोटियां खाने से गैस, बदहजमी, शुगर, ब्लडप्रेशर आदि व्याधियों से छुटकारा मिल सकेगा. जब इस एलीट से नाम वाले पदार्थ का पैकेट फाड़ा गया तो निकला अपना मडुआ. इस मोटे, काले-कलूटे फिंगर मिलेट को देखकर मध्यवर्ग हैरान हुआ. जब उसने शंकावश वनस्पति विज्ञान की किताबें खंगालीं तो फिंगर मिलेट उर्फ़ मडुए के बारे में किये जा रहे दावे को सही पाया. भारी अनिच्छा के बावजूद उसे इसे अपने खान-पान में शामिल करना पड़ा.

मडुए की रोटी

तो जनाब! इस तरह फिंगर मिलेट उर्फ़ मडुआ अपने गुणों के अनुरूप ओहदा कब्जाने में कामयाब रहा. देखते ही देखते यह आकर्षक पैकेटों में भारी दामों पर बिकने लगा. जिस मडुए को कभी गाँव से गंवारू रिश्तेदारों द्वारा तोहफे में लाये जाने पर औपचारिकतावश रखकर, कोने में सड़ाकर कूड़ेदान में ठिकाने लगा दिया जाता था अब उसी को ढूंढ़कर मंगाया जाने लगा. बुजुर्ग बताते हैं कि मडुए के लिए इंसान की हिकारत का भाव देखकर घोड़े, खच्चर तक उससे मुंह फेर लिया करते थे. खैर, सदियों उपेक्षा का शिकार रहा मडुआ अब देखते ही देखते बाजार में नयी ऊँचाईयां छूने लगा.

भारतीय बाजार में इसके भाव 40 रुपये तक जा पहुंचे जबकि गेहूं का आटा 20 रुपये पर ही अटका रह गया. मडुए की बाजार में मांग और बाबाओं द्वारा इसका व्यापार कर कमाई जा रही मोटी रकम को देखते हुए अमेजन, फ्लिपकार्ट, इंडियामार्ट, बिगबास्केट जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी इसकी तिजारत करने लगी. कभी गाँव में रहने वाले रिश्तेदारों के हाथों जो मडुआ फेंकने की ही नीयत से ग्रहण किया जाता था वही अब ऑनलाइन मंगवाया जाने लगा.

मडुए के पापड़ बनाती गुजराती महिलाएं

तो अपना यह परम प्रतापी मडुआ –मडुवा, मंडुआ, क्वादु, कोदा तथा हिंदी में रागी के नाम से जाना जाता है. इसका अंग्रेजी नाम है फिंगर मिलेट और वानस्पतिक नाम है एलोओसाइन कोरोकैना (Eleusine Corocana.) दुनिया के कई देशों में खाया जाने वाला मडुआ इथोपिया और युगांडा का मूल निवासी है और 200 बीसी में यह भारत पहुंचा. इसे सिर्फ पहाड़ का गंवारू अनाज न समझें यह दुनिया के कई देशों में खाया जाने वाला अनाज है. इन देशों में प्रमुख हैं –युगान्डा, इथोपिया, केन्या, जायरे, जाम्बिया, जिम्बाब्वे, तंजानिया, सूडान, नाइजीरिया, मोजम्बीक, नेपाल.

मडुए का डोसा

भारत में भी यह उत्तराखण्ड के अलावा आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु, उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा आदि राज्यों में भी विभिन्न नामों से खाया जाता है. इन राज्यों में मडुए से बनी रोटियां, ब्रेड, डोसा और भाखरी वगैरह खायी जाती है. आजकल मडुआ में मौजूद पौष्टिक तत्वों व इसकी भारी मांग को देखते हुए इससे नमकीन, बिस्किट, चॉकलेट, नूडल्स, पास्ता आदि आधुनिक लोकप्रिय व्यंजन भी बनाये जा रहे हैं.

उत्तराखण्ड में मडुआ खरीफ की फसल में धान के बाद सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल है. इसका मुख्य कारण यह है कि इसकी फसल को बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. मडुआ के बीजों को सुखाकर संरक्षित करने से इसमें कीड़े और फंगस भी नहीं लगती, इस वजह से इसका रखरखाव बहुत आसान है. (गंदरायण: अंतर्राष्ट्रीय ठसक वाला पहाड़ी मसाला)

मडुआ को फर्श से अर्श पर पहुंचाने का काम किया इसमें मौजूद पौष्टिक तत्वों और औषधीय गुणों ने. इसमें भरपूर मात्र में आयरन होने के साथ ही फाइबर, अमीनो अम्ल, आयरन, फोलिक एसिड, प्रोटीन, मिनरल्स, ट्रिपटोफैन, मिथियोयीन, लेशीयोयीन आदि पौष्टिक तत्व मौजूद हैं. इसमें मौजूद तत्व इसे पौष्टिकता और औषधीय गुणों से भरपूर बनाते हैं.

मडुए के नूडल्स

अपने इन्हीं तत्वों कि वजह से मडुआ पेट की कब्ज और एसिडिटी में बहुत कारगर है. आजकल की जीवनशैली में तेजी से बढती जा रही डाइबिटीज और शुगर की बीमारी में यह बहुत राहत पहुंचाता है. इसमें मौजूद 80 फीसदी कैल्शियम हड्डियों को आस्टियोपोरोसिस से बचाता है. मडुआ खाने से त्वचा को पर्याप्त पोषण मिलता है. आजकल मडुए से बने फेस पैक और फेस मास्क भी प्रचलन में है, यह त्वचा की रंगत को निखारने में मददगार है.

इसीलिए साधो! गाँव-देहात से आने वाले अपने सम्बन्धियों की पोटलियों-फांचरियों को तवज्जो दिया करें. क्या पता किस भेष में जड़ी-बूटियां आपके घर पधारी हों. अगर किसी अजीबोगरीब भद्दी सी दिखने वाली वस्तु के लिए मन में शंका हो तो गूगल की मदद से दूर कर लें. ये अंग्रेज टूरिस्ट लुटने आये हुए जैसे लाटे सैलानी बनकर यहाँ से कई किस्म के शोध भी कर ले जाते हैं, जब करते हैं तो उसके नतीजे इन्टरनेट पर भी डालना इनकी आदत में शुमार है.

-सुधीर कुमार

एक चुटकी जखिया में बसा स्वाद और खुश्बू का समंदर

(सभी फोटो: विकिपीडिया)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago