Default

कोरोना के असर के बीच बाबा केदार चले अपने धाम

भारत सहित पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कारण सब कुछ उलट-पलट गया है. इंसान तो क्या भगवान पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है. (Lord Shiva Kedarnath)

केदारघाटी के आराध्य देव विश्वप्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चलविग्रह उत्सव डोली आज अपने शीतकालीन गद्दीस्थल उखीमठ से अपने धाम को रवाना हुई और प्रथम रात्रि प्रवास के लिए गौरामाई मंदिर गौरीकुण्ड पहुंच गयी है.

बाबा केदार को उनके धाम तक विदा करने और कपाट खुलने का भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है हो भी क्यूं न हो बाबा केदार की कृपा से ही यहां के बाशिंदो की रोजी-रोटी चलती है, स्थिति आज ऐसी थी कि इस अवसर पर हमेशा से हजारों की संख्या में भक्तों को साथ लेकर चलने वाली केदार बाबा की डोली इस बार बेहद शांतिपूर्ण तरीके से केदारधाम को रवाना हुई ना आर्मी बैंड की धुन सुनाई दी ना केदार के जयकारों का उद्धोष, पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच डोली जब ऊखीमठ से अपने धाम को रवाना हुई तो महज लोग अपने घरों की छतों, आंगन और तिबारियों से ही आशीर्वाद लेने लगे.

डोली के साथ सिर्फ 16 लोग ही धाम रवाना हुए क्यूं कि इस बार कोरोना की वजह से लोगों को इकठ्ठा होने की अनुमति नही थी और केदारघाटी के लोगों ने भी सरकार का पूरा साथ दिया.

इस बार की यात्रा में कई परंपराएं और इतिहास बदले गए. इस बार की केदारनाथ डोली प्रस्थान यात्रा तीर्थ यात्रियों की संख्या के लिए नहीं. बल्कि यात्रा को लेकर बदले गए इतिहास के लिए याद रखी जाएगी.

केदारनाथ यात्रा के इतिहास मे 43 साल बाद ये दूसरा मौका था जब ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली को वाहन से गौरीकुण्ड के लिए रवाना किया गया.

बताया जाता है कि इससे पहले वर्ष 1977 में भी डोली को ऊखीमठ से वाहन से ले जाया जा रहा था, डोली को वाहन से ले जाने का विरोध हुआ था.

तब पशुबलि की मुखालफत कर रहे तत्कालीन विधायक प्रताप सिंह पुष्पवाण धरने पर बैठ गए थे.

उनके विरोध को देखते हुए डोली को गुप्तकाशी में ही वाहन से उतार लिया गया था. बाद में जमाणी पैदल डोली को फाटा और गौरीकुंड होते हुए केदारनाथ लेकर पहुंचे थे.

बाबा केदार समस्त जग का कल्याण करें यही कामना है.

गुप्तकाशी, रुद्रप्रयाग से कैलाश सिंह की रपट

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago