Featured

लोहाखाम देवता का मंदिर

स्थानीय भाषा में लुखाम कहे जाने वाले लोहाखाम देवता का मंदिर नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक की चौगढ़ पट्टी में है. इस मंदिर में पहुँचने के लिए आपको ओखलकांडा से 12 किमी की चढ़ाई चढ़नी होती है. काठगोदाम, हैड़ाखान, हरीशताल होते हुए भी इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. हरीशताल से यहाँ पहुंचना ज्यादा आसान इसलिए है कि आपकी खासी दूरी कच्ची-पक्की सड़क से तय हो जाती है. अगर आप ऑफ़रोडिंग के शौक़ीन हैं तो यह रास्ता आपके लिए रोमांचकारी भी है. हरीशताल से एक-डेढ़ किमी की दूरी पर ही लोहाखामताल ताल भी है.

लोहाखाम में लुखाम, लोहाखाम देवता की पूजा की जाती है. यहाँ लोहाखाम ताल नाम के एक तालाब के ऊपर की पहाड़ी पर स्थित है. इस पहाड़ को भी लोहाखाम नाम से ही जाना जाता है. इस पहाड़ी पर लोहाखाम देवता पत्थर के एक लिंग के रूप में स्थापित हैं.

लुखाम देवता यहाँ आस-पास के 16 गाँवों का ईष्ट देवता है. यह यहाँ आस-पास के गांवों में रहनी वाली मटियानी तथा परगाई का कुल देवता भी है. इस मंदिर का पुजारी भी मटियाली जाति का ही होता है.

बताया जाता है कि लोहाखाम देवता का मूलस्थान नेपाल है. वहां से पलायन कर यही दोनों जातियां इसे इस जगह पर ले आयीं और यहाँ इस मंदिर की स्थापना की.

यहाँ वैशाख पूर्णिमा को विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है, जिसमे सभी गांवों के लोग हिस्सेदारी किया करते हैं. इस मौके पर श्रद्धालु लोहाखाम ताल में स्नान भी करते हैं. तालाब में स्नान करना पवित्र माना जाता है. श्रद्धालु पहाड़ की तलहटी पर मौजूद प्राकृतिक तालाब में नहाने के बाद मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना करते हैं और देवता को भेंट चढ़ाते हैं. इस अवसर पर यहाँ विशाल मेले का भी आयोजन किया जाता है.

बुद्ध पूर्णिमा के इस मेले में स्थानीय ग्रामीणों के अलावा दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु भी भागीदारी करते हैं. यहाँ मौजूद तालाब में ढेरों मछलियाँ भी हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago