जानवर और इंसान के सम्बंध काफी नजदीकी और नाज़ुक रहे हैं और आज भी हैं, आए दिन लगातार खबरें आती हैं तेंदुए (गुलदार) और इंसानी टकराव की किंतु पिछले दिनो कुछ ऐसा देखा और महसूस किया जो आजकल के समय में अकल्पनीय और अनूठा है. अल्मोड़ा के पास कोसी से लगभग 6 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा कौसानी रोड पर पातलीबगड़ के पास कोसी नदी के सामने एक पहाड़ी में बने उडियार में तेंदुए का एक पूरा परिवार रहता है.
(Leopard of Patlibagad)
एक हफ्ते पहले किसी से पता चला की वहां पर गुलदार हैं पर वहां गुजरे रविवार ही जाना हुआ काम कुछ और था पर क्योंकि जानकारी थी के वे वहां मिल सकते हैं मैंने घर से निकलते समय कैमरा किट रख लिया. वहां पहुंचते ही सामने पहाड़ी पर इनके दर्शन हो गए लैंस लगा कर देखा तो एक दो नहीं पूरे तीन गुलदार दिन दुपहरी पहाड़ी में बने उडियार में सुस्ता रहे थे.
दिन के करीब 1 बजे थे लाइट बहुत बढ़िया नहीं थी और गुलदार भी आराम फरमा रहे थे. फ़िर भी इनके सम्मान में कई फ़ोटो लिए गए ये पता होते हुए की ये वो फोटो नहीं हैं जिनकी मुझे तलाश है. मुझे कौसानी तक जाना था तो ये तय किया की शाम को कौसानी से लौटते समय इनसे दूसरी मुलाकात की जाए, तब शायद कुछ अच्छे शॉट मिल जाएं.
लगभग 4 घंटे बाद 5 बजे तक हम वापस नंदिनी रेस्टोरेंट, देवेंद्र सिंह जी के पास पहुंच गए, जिनके सड़क किनारे स्थित रेस्टोरेंट की बालकनी से ये उडियार साफ नजर आता है. बस फिर क्या था थोड़ी ही देर बाद तीनों ने उठना शुरु हुआ, कभी एक दूसरे को सहलाना, जीभ से अपने और एक दूसरे के शरीर को चाटना प्यार करना सब चलता रहा.
शाम हो रही थी और सूर्य की अंतिम किरणों में इनका बूटेदार शरीर सोने जैसा चमक रहा था और कैमरा अपना काम कर रहा था, कई दिनों से जिन तस्वीरों की तलाश थी वो पूरी हुई. अंधेरा घिर रहा था और तीनों गुलदार अपने रात्रि भोजन की तलाश में उठ कर जाने को तैयार हो चुके थे. फिर एक-एक कर तीनों निकल पड़े अपने भोजन की तलाश में, हमें कभी न भुलाई जा सकने वाली तस्वीरें दे कर.
पूरा वाकिया अनूठा इसलिए है कि जिस उडियार में ये तीनों गुलदार रहते और इनसे पहले इनका माता-पिता और उनसे पहले अन्य सदस्य भी पले बड़े हैं वो पिछले कई सालों से इनका आवास रहा है, जैसा वहां के स्थानीय नागरिकों ने बताया. उडियार के ठीक नीचे कोसी नदी बहती है जहां पर लोग नहाने के लिए आते हैं, पूरे दिन इस जगह पर स्थानीय लोगों के जानवर उडियार के नीचे खेतों में घास चर रहे थे और ऊपर से ये तीनों गुलदार इन्हें निहार रहे थे. एक कुत्ता और कुछ लोग तो इनके काफी करीब तक पहुंच गए थे जहां से इनके लिए उन पर हमला करना पलक झपकाने जैसा था फिर भी ये शांत हो कर दिन भर अपने घर (उडियार) में बैठे रहे.
(Leopard of Patlibagad)
शाम को उस जगह से काफी दूर शिकार के लिए निकले. इन्होंने उस जगह पर किसी को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया, क्या है ऐसा पातलीबगढ़ के उस उडियार में और इन गुलदारों के उस पुरे हैबिटेट में कि वे किसी स्थानीय मवेशी और नागरिक को एकाएक नुकसान नहीं करते.
कई फिल्म और डॉक्यूमेंट्री बनी हैं मानव और इनके बीच संघर्ष पर कुछ ऐसा भी बनना चाहिए कैसे इन जैसी जगहों पर ये जानवर और इन्सान आपसी तालमेल के साथ एक साथ जीवनयापन कर रहे हैं, एक दूसरे को परेशान किए बगैर, शायद उससे कुछ मदद मिल सके इन्सान और इनके बीच संघर्ष को कम करने में. फिलहाल आप आनंद लीजिए इनकी तस्वीरों का:
(Leopard of Patlibagad)
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
इसे भी पढ़ें : अल्मोड़े में होली के रंग: फोटो निबंध
उदय शंकर संगीत एवं नृत्य अकादमी के मंच पर ‘पहाड़ के रंग’ की अद्भुत तस्वीरें
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…