समाज

लेकघाटी दुर्गा मंदिर: पिथौरागढ़-थल मार्ग पर स्थित देवी के मंदिर का इतिहास

पहाड़ की सड़कों पर अभी गाड़ियों की कमी थी. रोडवेज और केमू की बसें ही लोगों की यात्रा का सहारा था. छोटी गाड़ियां अभी नहीं के बराबर चलती थी. ये 1990 का साल था. इस साल की 18 अक्टूबर के दिन कुमाऊं में अब तक की सबसे बड़ी बस दुर्घटना हुई थी.
(Lekghati Durga Mandir Pithoragarh)

पिथौरागढ़-थल रोड पर लेकघाटी में हुई उस सड़क दुर्घटना में घटा यह मौत का मंजर कौन भूल सकता है. कौन भूल सकता है दिन के 1.30 बजे का वह समय जिसने पिथौरागढ़ में बसे कई परिवारों में एकसाथ दुःखों का पहाड़ तोड़ दिया. 56 लोगों की मौत के साथ, 18 अक्टूबर की आमवास्या का यह दिन कुमाऊं के इतिहास में सबसे बड़ी सड़क दुर्घटना के रुप में हमेशा के लिये बुरी याद की तरह कैद हो गया.

लेकघाटी, पिथौरागढ़ से कुछ दूरी पर स्थित सुंदर सी बसासत कमतोली से लगा है. यही पर स्थित है मां दुर्गा का मंदिर. दशकों से इस सड़क पर चलने वाली हर गाड़ी मां का आशीर्वाद लेकर चलती हैं. इस मंदिर का निर्माण 1990 में हुई सड़क दुर्घटना के बाद हुआ था.
(Lekghati Durga Mandir Pithoragarh)

1990 में हुई सड़क दुर्घटना के बाद जिलाधिकारी राकेश शर्मा और ब्लॉक प्रमुख धीरेन्द्र के सहयोग से 1991 में इस मंदिर का निर्माण किया गया. मंदिर में दो पुजारी भवानी दत्त लेखक और रमेश चन्द्र पन्त नियुक्त किये गये. दोनों ही बड़े भक्तिभाव से नित मां दुर्गा की आराधना करते. वर्तमान में रमेश चन्द्र पन्त और भवानी दत्त लेखक के पुत्र बृजमोहन लेखक मंदिर के पुजारी हैं. आज भी दोनों उसी भक्तिभाव से मां दुर्गा की आराधना करते हैं और सड़क से होकर जाने वाली हर गाड़ी की सफ़ल यात्रा की कामना करते हैं.

वर्तमान पुजारी रमेश चन्द्र पन्त

1990 से पहले इस क्षेत्र में काफ़ी सड़क दुर्घटनायें हुआ करती थी. मंदिर निर्माण के बाद यहां कभी कोई सड़क दुर्घटना नहीं हुई. आज दशकों बाद इस सड़क पर एक दिन में हजारों की संख्या में बड़े-छोटे वाहन चलते हैं, माँ दुर्गा सभी पर अपना आशीर्वाद बनाये रहती हैं.
(Lekghati Durga Mandir Pithoragarh)

काफल ट्री डेस्क

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago