Featured

कुंजापुरी पर्यटन और विकास मेला 10 अक्तूबर से होगा शुरू

43वें सिद्धपीठ कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेला इस वर्ष  10 से 17 अक्तूबर तक आयोजित किया जाएगा. दिन के समय खेलकूल और रात्रि को सांस्कृतिक संध्या आयोजित की जाएगी.

कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने मेले के सफल आयोजन के लिए मंत्री ने 15 लाख की धनराशि देने की घोषणा की. मेला आयोजन और कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने के लिए 10 समितियों का गठन कर अधिकारियों और स्थानीय जन प्रतिनिधियों को जिम्मेदारी दी गई.

कुंजापुरी सिद्धपीठ मुनी के रेती से 28 कि.मी., नरेन्द्र नगर से 13 कि.मी.ऊंचाई : समुद्र से 1,665 मीटर पर यह स्थित है. वर्ष 1972 से प्रतिवर्ष दशहरा पर्व के पहले नवरात्रों के दौरान कुंजापुरी मंदिर में कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेले का आयोजन किया जाता है.

यह इस क्षेत्र के सबसे बड़े पर्यटक आकर्षण केन्द्रों में से एक है. इसमें पड़ोसी क्षेत्रों के साथ-साथ दुनियाभर के लगभग 50,000 दर्शक भाग लेते हैं. यह मेला पर्यटन एवं विकास को बढ़ावा देने की दोहरी भूमिका निभाता है. कई प्रकार की अंतसांस्कृतिक प्रदर्शनियां और संगीत एवं नृत्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. जिसमें देशभर के कलाकार हिस्सा लेते हैं.सरकार भी विकास के एक साधन के तौर पर इस मेले का उपयोग करती है तथा स्थानीय किसानों को फसलों और खेती की तकनीकों के बारे में जानकारी देने के लिए इस अवसर का उपयोग करती है.

यह मंदिर उत्तराखंड में अवस्थित 51 सिद्ध पीठों में से एक है. मंदिर का सरल श्वेत प्रवेश द्वार में एक बोर्ड प्रदर्शित किया गया है जिसमें यह लिखा गया है कि यह मंदिर को 197वीं फील्ड रेजीमेंट (कारगिल) द्वारा भेंट दी गई है. मंदिर तक तीन सौ आठ कंक्रीट सीढ़ियां पहुंचती हैं. वास्तविक प्रवेश की पहरेदारी शेर, जो देवी की सवारी हैं और हाथी के मस्तकों द्वारा की जा रही है.

कुंजापुरी मंदिर अपने आप में ही श्वेतमय है. हालांकि, इसके कुछ हिस्से चमकीले रंगों में रंगे गए हैं. इस मंदिर का 01 अक्टूबर 1979 से 25 फ़रवरी 1980 तक नवीकरण किया गया था मंदिर के गर्भ गृह में कोई प्रतिमा नहीं है – वहां गड्ढा है – कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां कुंजा गिरा था. यहीं पर पूजा की जाती है, जबकि देवी की एक छोटी सी प्रतिमा एक कोने में रखी है.मंदिर के परिसर में भगवान शिव की मूर्ति के साथ-साथ भैरों, महाकाली नागराज और नरसिंह की मूर्तियां हैं.

कुंजापुरी के पुजारी कुंवर सिंह भंडारी और धरम सिंह भंडारी — उस वंश से आते हैं जिसने पीढ़ियों से कुंजापुरी मंदिर में पूजा की है. रोचक बात यह है कि गढ़वाल के अन्य मंदिरों, जहां पुजारी सदैव एक ब्राह्मण होता है, के उलट कुंजापुरी पुजारी राजपूत या जजमान होते हैं उन्हें जिस नाम से गढ़वाल में जाना जाता है. उन्हें इस मंदिर में बहुगुणा जाति के ब्राह्मणों के द्वारा शिक्षा दी जाती है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

1 day ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

1 week ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago