प्रमोद साह

कुमाऊं के रस-भात उर्फ ठठ्वाणी-भात के आगे क्या बिसात है देवलोक के अमृत की

जाड़ों में पहाड़ों की रसोई में एक स्पेशल परोसे जाने का रिवाज है. इस थाली में बड़ी, भांग की चटनी, ठठ्वाणी, भांग के नमक में सनी मूली शामिल है. आज आपको बताते हैं इस थाली के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से यानी ठठ्वाणी को बनाने की विधि. (Kumaoni Thatwani Bhat Recipe Pramod Sah)

मात्रा: पांच व्यक्तियों हेतु

पहाड़ी खड़ी दालें – भट, गहत, राजमा, उड़द, चना, रैंस,  और लोबिया – 350 ग्राम (इसमें भट और गहत की मात्रा अन्य समान अनुपाती दालों से डेढ़ गुना लें.)

बनाने की विधि:

प्रथम चरण: 5 लीटर प्रेशर कुकर में डेढ़ लीटर पानी के साथ इन दालो को उबालने के लिए रखें. उबालते समय इसमें पांच तेज पत्ते, चार बड़ी इलायची, 15 लौंग, 25 काली मिर्च भी डालें. डालने से पूर्व इन मसालों को आधा दल लें. यहां स्वादानुसार नमक भी मिला लें.

कुकर में मध्यम आंच पर इसे आधे घंटे तक पकाने रखें भले ही 8 -10 सीटी आ जाएं. इन खड़ी दालों को पूरी तरह पक जाना चाहिए.

द्वितीय चरण : प्रेशर कुकर को खोलकर बनी हुई दाल के दाने छान कर अलग कर लें. दालों के रस को लोहे की कढ़ाई में फिर से उबालने के लिए रख दें. अलग निकाले दाल को छौंके के साथ भूनकर चटनी के साथ नास्ते पर पसंद किया जाता है. (Kumaoni Thatwani Bhat Recipe Pramod Sah)

दालों के रस को थोड़ा गाढ़ा करने के लिए बिस्वार (भिगा कर पीसे गए चावल) के साथ अदरक काली मिर्च, लौंग, तेजपत्ता, दालचीनी को मिलाकर पीस लें. इस बिस्वार को प्रति व्यक्ति एक चम्मच की दर से कुल 5 चम्मच मिला लें. इस स्तर पर अपनी आवश्यकता के अनुसार मात्रा को जांचे और स्वाद के अनुसार नमक मिलाएं. लोहे की कढ़ाई में भी मध्यम आंच पर इसे 35 से 45 मिनट तक पकाएं.

रस का रंग काला बहुत काला हो गया हो और न पतला हो न गाढ़ा तो आपका रस तैयार है. यहां पर दो चम्मच घी को तड़के के लिए गर्म करें. उसमें हींग, जीरा और जम्बू (फरण) का तड़का दें.

स्वादिष्ट ठठ्वाणी बनकर तैयार है.

इसे चावल के साथ (अगर हो सके तो लाल पहाड़ी चावल के साथ) बड़ी, भांग की चटनी और मूली के साथ परोसा जाय तो ऐसी पहाड़ी थाली तैयार होती है जिसके बारे में बताते हैं कि उसे देख कर देवगण अमृत तक का लोभ त्याग देते हैं! (Kumaoni Thatwani Bhat Recipe Pramod Sah)

-प्रमोद साह

प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

काफल एक नोस्टाल्जिया का नाम है

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago