फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
लोक-साहित्य स्वयं में बेजोड़ होता है. कुमाऊनी लोकसाहित्य में चार चांद लगाने का काम करता है उसका विशाल शब्दकोश. मसलन किसी को याद आने के लिये दो शब्द हैं नराई और काँकुरी. नराई का उपयोग तो आज भी कहीं देखने को मिलता काँकुरी का उपयोग लगगभ नहीं देखने को मिलता है.
(Kumaoni Nyoli Folk Uttarakhand)
एक न्योली है जिसमें किसी गांव में विवाहित लड़की अपने ससुराल में अपनी ईजा और भाई को याद कर रही है. अपने भाई और ईजा को याद करते हुए वह ईजा की याद के लिये नराई शब्द का उपयोग करती है और भाई की ‘काँकुरी’ शब्द का. दोनों ही शब्द का उपयोग किसी को याद करने के लिये किया जाता है लेकिन अलग-अलग भाव में. ‘नराई’ का अर्थ प्यार और उदेख भरी याद से है और ‘काँकुरी’ का अर्थ दया भरी याद से है.
(Kumaoni Nyoli Folk Uttarakhand)
‘काँकुरी’ और ‘नराई’ दोनों शब्दों का एक साथ एक न्योली में इस्तेमाल देखिये –
बाटा गाड़ा चिंणा धाना, चिणां झाँकुरी
ईजू की नराई लागी, भाई की काँकुरी
इस न्योली का भाव अनुवाद है गाड़ (खेत) में चारों और धान के पौधे उगे हुए हैं जिनके बीच में रास्ता है और खेत की दीवारों से घास की झाड़ियां लटक रही है. मुझे ईजा की नराई लग रही है और भाई की ‘काँकुरी’. यहां ईजा की नराई लग रही है और भाई की ‘काँकुरी’ का अर्थ है मुझे दोनों की याद आ रही है लेकिन याद आने से भाव अलग-अलग है.
कुमाऊनी शब्दकोश का यही जादू है यहां शब्द के साथ आता है भाव.
(Kumaoni Nyoli Folk Uttarakhand)
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