प्रतीकात्मक तस्वीर
रणनीति के अनुसार, हमारा बिग्रेड उत्तरी पहाड़ियों पर हमला करके, जहाँ इटली की सेना थी, पीछे से जाकर मौनेस्ट्री हिल की तोपों को शान्त करेगा और जर्मन सेना को रोम दिशा की मुख्य सेना से मिलाप न करने देगा.
(2nd World War Warriors in Uttarakhand)
इस टास्क हेतु हमारी सेना को एक छोटे पुल से होकर जाना था. जब दो कम्पनियों से ज्यादा जवान पुल पार कर चुके थे तो दुश्मन ने पुल पर तोपों से भारी मात्रा में गोले बरसाने शुरु कर दिये. पुल के उस पार घमासान लड़ाई हो रही थी. यहीं पर अपने बहादुर सिपाही सानी उडियार जिला अल्मोड़ा के किशनराम से आपको मिलाने का मौका आता है.
किशनराम सिपाही हमारी यूनिट का वाटर ट्रक डाईवर था. वह सीधा-साधा अनपढ़ पहाड़ी नौजवान था. उसने रेलगाड़ी भर्ती के बाद ही देखी थी. एक्शन शुरू होते ही पानी के अभाव के कारण संकट उत्पन्न हो गया. करीब-करीब पानी वाले सभी ट्रक या तो दुश्मन ने नष्ट कर दिये या ठीक हालत में नहीं थे. फाइटिंग टूप को 18 घण्टे से पानी नहीं मिल रहा था. बात यहाँ तक पहुँची कि ब्रिगेड कमाण्डर वाट्स मेरे पास पहुँचा.
सारी समस्या उसने गंभीरता से मुझे समझाई, सुनकर मैंने कहा, ‘सर नो वरी, इट इज डन,’ मेरे यह कहते ही उसका चेहरा खुशी से खिल उठा. ब्रिगेडियर वाट्स कभी रानीखेत में रह चुका था और यह जानकर खुश हुआ कि मैं भी एक पहाड़ी हूँ. रानीखेत के बाबत पूछताछ करने के बाद उसने राय साहब हरकिशन लाल साह के बाबत पूछा और बताया कि उन्होंने ही रानीखेत रामलीला मंचन शुरू किया था. वाट्स ने यह भी बताया कि उद्घाटन के दिन वह हनुमान बना था. चलते समय वह कहने लगा – जे करला हो दाज्यू.
इस मार्मिक उद्बोधन से मैं बहुत भावुक हो गया था. मेरा एक ही लक्ष्य हो गया कि किसी तरह पानी की व्यवस्था हो. कानों में बार-बार ‘जे करला हो दाज्यू’ की धुन गूंजने लगी. ब्रिगेडियर वाट्स ने मुझे बतला दिया था कि इस एक्शन का कितना दूरगामी परिणाम होगा. मेरी मानसिकता ही बदल गयी थी. अब पानी की व्यवस्था चौथे भारतीय डिवीजन की इज्जत का सवाल था.
रात मैंने बड़ी बेचैनी से काटी और सुबह होते ही सिपाही किशन राम को बुला भेजा. उसके पहुंचने पर हमने मग भर-भर कर चाय पी और फील्ड राशन के सकरपारा बिस्किट खाये. किशन हँसमुँख होने के साथ कुछ बातूनी भी था. हमें समय-समय पर पहाड़ी गाने भी सुनाता था
पारा को भ्योल फुल छौ पईयाँ
तेरी नथूली, मेरा रुपय्याँ
या ‘तू किले नी आई मूंगा डांडों का सौड़ में.’ किशन ने जब मेरे गंभीर रहने का कारण जानना चाहा तो मैंने उसे सारी कहानी सुनाई, उसकी भूमिका समझा दी और कहा कि ‘पहाड़ोक नाम धरण छू रे’
(2nd World War Warriors in Uttarakhand)
‘सैप तौ ले क्वे कुणैकि बात भई’ किशन ने कहा, मेरे मुख से अनायास ही निकल गया ‘जे करला हो दाज्यू…’ मेरी उदासी का कोई छोर न था. दिन चढ़ते ही आदेश आया कि पानी भेजो. टैण्ट से बाहर आते ही मैंने पानी भरे ट्रक के साथ किशन को खड़ा पाया. मैंने असीम भाव से उसे निहारा. उस भाव की अनुभूति मैं आज भी करता हूँ, पर वह वर्णन से परे हैं. मैंने मन ही मन शुभकामना देते हुए किशन को मार्च का हुक्म दे दिया. करीब पाँच बजे ब्रिगेडियर वाट्स का स्टाफ आफीसर मेरे पास आया और उसने बताया कि फ्रन्ट में सब जवानों को पानी मिल गया है और ब्रिगेडियर साहब ने आपको शाबासी का संदेश भेजा है.
अब आई सन्ध्या रानी, जिसका स्वागत करने को सब आतुर थे. तब मैंने किशन से पूछा कि जिस वाटर ड्यूटी को गोरी यूनिट नहीं कर सकी, उसे तुमने कैसे अंजाम दिया. किशन बोला कि कल सायं मैंने उसे हुक्म दिया था कि वाटर ड्यूटी पूरी करके आना और मैं कर आया.
इस ड्यूटी हेतु किशन को पूर्व वर्णित पुल को पार करके जाना था. यह पुल पहाड़ियों पर स्थित दुश्मनों का लक्ष्य था. किशन ने बताया कि जब वह पुल के पास पहुँचा तो देखा कि पुल के आसपास की जगह नष्ट गाड़ियों से भरी पड़ी थी. वहाँ लगातार तोप के गोले पड़ रहे थे, इसलिए मैंने अपने ट्रक को एक पेड़ के नीचे दूर खड़ा करके बचाया और पन्द्रह मिनट तक यह सब देखता रहा . मैंने पाया कि मिनट-मिनट के अन्तराल में पुल के इर्द-गिर्द गोले गिर रहे हैं. यह भी पता लगा कि पहले एक आवाज सू सू सू की आती है, फिर गोलाफटता है. इस सू सू सू की आवाज के बीच 15-16 सेकेण्ड का अन्तर होता था. मैंने अपना ट्रक स्टार्ट रखा था सू सू सू की आवाज सुनते ही गोले के फटने से पूर्व पुल पार हो जाता था. यही काम लौटते समय भी किया.
(2nd World War Warriors in Uttarakhand)
किशन यह सब ऐसे कह रहा था, जैसे यह सामान्य ड्रिल हो. गौर करने वाली बात यह है कि किशन ने सामरिक दृष्टि से किसी स्थान का निरीक्षण करना (रिकौन्सेन्स), सरक्षार्थ वास्तविक रूप को बदलना (कोमोफ्लाज), गति और समय का ध्यान और कार्यवाही जैसे पक्षों की समझ कहाँ से प्राप्त की? जबकि यह जानकारी अफसरों और ओहदेदारों तक सीमित रहती है.
शायद किशन में यह प्रतिभा अपने गाँव, जंगल, बकरी चराने, पेड़ों में चढ़ने, नदी नालों की यात्रा करने, जानवरों और पशु पक्षियों की जानकारी बचपन से ही प्राप्त करके, उनकी आवाज की नकल करने से विकसित हो चुकी थी. यह प्रकृति के विश्वविद्यालय से सीखा गया था. ऐसा छात्र जिन्दगी की परीक्षा में कारगर ही होता है. इसीलिए युद्ध क्षेत्र में किशन को सामरिक ज्ञान था, स्थिति को परखने का धैर्य था और फिर समय के अनुकूल निर्णय लेने का विवेक था. इस तरह उसने वह किया जो सर्वथा कठिन था.
इस मोर्चे पर युद्ध सात दिन रहा और हमारा ब्रिगेड फिर अन्य मोर्चों की ओर रवाना हो गया हमारी रवॉनगी के एक दिन पहले किशन को फ्रेन्च यूनिट के साथ ड्यूटी पर भेजा गया था. दुर्भाग्यवश वह वहाँ से नहीं लौटा. उसका नाम बैटल कैजुएल्टी लिस्ट में आया (न० 508055, सिपाही किशन राम, किल्ड इन एक्सन)
लम्बे अर्से बाद मुझको यह सूचना मिली कि रैपिडो घाटी एक्शन में कार्य करने के लिए मुझको लन्दन गजट में याद किया गया था. इस उपलक्ष्य में सारे ब्रिगेड में खुशियाँ मनाई गई. सब साथी जश्न मना रहे थे, इस उत्सव के बीच मैं ही अकेला व्यक्ति था, उदास, खोया-खोया-सा. मैं यह सोचकर व्यथित हो रहा था कि जिस साथी के अदम्य साहस, कर्तव्यनिष्ठा और अविचल साहस के कारण आज का दिन आया था, वह साथी कहीं दूर शांतिमय क्षेत्र में था. द्वन्द्व, हिंसा, कलह, प्रतिशोध से मुक्त वह हम साथियों की बाट जोह रहा होगा. जब भी मैं लन्दन गजट का डिस्पैच देखता हूँ तो मैं किशन की याद से भर उठता हूँ और मैं अन्तर्मन से कह उठता हूँ – ‘सब तुमले करौ हो दाज्यू’
(2nd World War Warriors in Uttarakhand)
पहाड़ पत्रिका के 1994-95 अंक में छपे सानिउडियार का सिपाही लेख से साभार . सानिउडियार का सिपाही मथुरा लाल साह द्वारा लिखा गया था.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…
अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…
हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…
आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…
बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…
आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…
View Comments
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश भारत के हिंदुस्थानी सैनिकों के साहस की कहानी भले ही ब्रिटिश सरकार के लिए महत्व रखती हो, पर भारत के संदर्भ में यह नितांत देश हित के विरुद्ध कार्य था । ब्रिटिश फौज में गांधी के आवाह्न पर भारतीयों के सहयोग की घटना ही देश विरुद्ध था ।