संस्कृति

खुदेड़ : नराई से जन्मा पहाड़ी लोकगीत

करीब दस एक साल पहले तक गढ़वाल के गांवों में मोछंग की धुन के साथ दर्द भरी आवाज में गीत सुनने को मिल जाते थे. ये गीत सामान्यतः महिलाओं द्वारा गाये जाते जिनमें पहाड़ का दर्द साफ़ झलकता था. नवविवाहिता द्वारा संबोधित इन गीतों में मायके, मां-बाप या भाई-बहिन की याद के स्थाई भाव हुआ करते थे.

नराई से जन्मा यह एक और पहाड़ी लोकगीत कहलाता है खुदेड़. वर्तमान में मूल खुदेड़ और मोछंग दोनों ही लगभग विलुप्ति की कगार पर हैं.

मां-बाप, भाई बहिन, सखी-सहेली, वन-पर्वत, पशु-पक्षी, वसंत ऋतु का आना, नये फूलों का खिलना, पहाड़ में हरियाली का छाना आदि का स्मृति में आ जाना खुदेड़ गीतों के विषय बनते हैं. गीतों में नायिका कफ्फू, घुघूती, आदि पक्षियों से कहती है कि वह उसके ससुराल में न बोलें, जाकर उसके मायके में बोलें ताकि उन्हें मेरी याद आये और वे मुझे बुलाने आये.

एक पुराना खुदेड़ गीत पढ़िये :

मीं लाग्यो उदास, गो घुघुती.
ये ऊंचा कैलाश, गो घुघुती.
भग्यानो का भाई, गो घुघुती.
आलू ल्याला आंगूठी, गो घुघुती.
सीरा ह्वोलो बाबा, गो घुघुती.
पीठी ह्वोलो भाई, गो घुघुती.
मैतुड़ा बुल्याला, गो घुघुती.
मीं लाग्यो उदास, गो घुघुती.
ना बास ना बास, गो घुघुती
मुझे लग गया उदास, गो घुघूती. 
इस ऊंचे कैलाश, गो घुघूती.
भाग्यवानों का भाई , गो घुघूती.
आलू* लायेंगे, आंगड़ी* , गो घुघूती.
सिर पर होंगे पिता, गो घुघूती.
पीठी* के होंगे भाई , गो घुघूती.
मैत बुलायेंगे , गो घुघूती.
मुझे लग गया उदास, गो घुघूती.
मत बोल, मत बोल , गो घुघूती.


आलू - खाने का सामान. आंगड़ी - ब्लाउज की तरह पहना जाने वाला एक वस्त्र. पीठी - सगा भाई.

-काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

उत्तराखंड के कुछ लोकवाद्य के बारे में यहां पढ़िये :

हुड़का: उत्तराखण्ड का प्रमुख ताल वाद्य

उत्तराखण्ड का लुप्तप्रायः वाद्य बिणाई

Endangered Musical Instrument of Uttarakhand : Binai

धतिया नगाड़ा: आपदा की सूचना के लिए धाद लगाने का वाद्य

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

3 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

5 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

5 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago