यूँ तो पिछले तीन वर्षों से अपने शोध कार्य को लेकर मैं लगातार केदारनाथ जाता रहा हूँ लेकिन इस साल की यात्रा बीते वर्षों से कई मायनों में अलग थी. कोरोना महामारी के बीच केदारनाथ धाम तय तारीख पर यथावत खुला तो सही लेकिन लॉकडाउन व राज्य सरकार की गाइडलाइन के चलते यात्रियों का केदारनाथ पहुँचना लगभग न के बराबर रहा.
(Kedarnath Travelogue in 2020)
29 अप्रैल को केदारनाथ के कपाट खोले गए लेकिन तब से सितंबर तक वाहनों की अंतर्राज्यीय आवाजाही में रोक के कारण व कोरोना से उत्पन्न खतरे को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने यात्रियों के केदारनाथ जाने पर रोक लगाए रखी. रूद्रप्रयाग ज़िले के कुछ श्रद्धालुओं को जरूर कोरोना गाइडलाइन को फ़ॉलो करते हुए केदारनाथ दर्शन की इजाजत दी गई लेकिन केदारनाथ ट्रैक पर पसरा सन्नाटा मानो कह रहा हो कि बाबा केदार का बुलावा इस बार आम जनमानस के लिए नहीं है.
केदार घाटी के आसपास बसे लगभग 80 गॉंव हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार करते हैं क्योंकि उनकी आजीविका इस यात्रा पर ही टीकी हुई है लेकिन इस वर्ष कपाट खुलने की तारीख से पहले ही कोरोना महामारी के चलते असमंजस की ऐसी स्थिति पैदा हुई कि प्रशासन इसी सोच में फँसा रहा कि चार धाम को खोला जाना चाहिये या नहीं!
अंततः बिना यात्रा अनुमति के अलग-अलग तारीख में चारों धामों को खोल दिया गया. कपाट खुलने का फायदा इस बार स्थानीय लोगों को नहीं मिल सका. सितंबर माह तक केदारनाथ परिसर में सारी दुकानें व होटल लगभग बंद ही रहे जिसके कारण स्थानीय लोगों को इस साल बिना कमाई व रोजगार के ही संतोष करना पड़ा.
अंतिम अनलॉक की घोषणा के साथ ही उत्तराखंड सरकार ने राज्य के बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए अपने दरवाजे खोल दिये. अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में ही दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के कई जिलों से हजारों की संख्या में यात्री केदारनाथ दर्शन के लिए पहुँच गए. राज्य सरकार को उम्मीद ही नहीं थी कि अचानक इतने यात्री केदारनाथ धाम पहुँच जाएँगे.
(Kedarnath Travelogue in 2020)
एक स्थानीय ढाबे वाले से बातचीत करने पर पता चला कि कोरोना महामारी के चलते स्थानीय प्रशासन ने इस बार यात्रा व यात्रियों के लिए कोई खास तैयारी नहीं की थी लेकिन अक्टूबर माह के पहले हफ्ते में अचानक हजारों यात्रियों के आने के कारण प्रशासन ने आनन-फानन में ढाबा व होटल मालिकों को केदारनाथ यात्रा मार्ग में अपनी दुकानें व होटल खोलने का आदेश जारी कर दिया. कुछ-कुछ स्थानीय लोगों ने यात्रा मार्ग में अपनी दुकानें, होटल व ढाबे खोले तो सही लेकिन बाद में समझ आया कि केदारनाथ में आई यह भीड़ तीन दिन के लंबे वीकेंड के कारण थी जिस वजह से केदारनाथ में होटलों व ढाबों की कमी के कारण लोगों को बाहर खुले में बिना खाये-पिये सोना पड़ा.
स्थानीय प्रशासन को लगा कि शायद इस तरह की भीड़ आगे भी बनी रहेगी लेकिन अपनी यात्रा के दौरान मैंने पाया कि केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की संख्या में अचानक गिरावट आ गई. यात्रा की इजाजत मिलने के शुरुआती तीन दिनों में जहॉं सोनप्रयाग, गौरी कुंड व केदारनाथ में रुकने के लिए होटल नहीं मिल रहे थे वहीं यात्रियों की संख्या में आई कमी के कारण होटल मालिकों को यात्रियों से पूछना पड़ रहा था कि ठहरने के लिए कमरा तो नहीं चाहिये.
सोनप्रयाग की तरफ बढ़ते हुए रास्ते में वापस आते बहुत से घोड़े/खच्चर व उनके चालकों को देख मैंने अपनी बाइक रोकी और उनसे जानने की कोशिश की कि आखिर यात्रा शुरू होने के बावजूद वो वापस क्यों लौट रहे हैं? जवाब मिला कि शुरूआती तीन दिन में यात्रियों की भारी संख्या को देखते हुए हम अपने घोड़े/खच्चर लेकर गौरीकुंड पहुँच गए और तीन दिन काम भी अच्छा चला लेकिन उसके बाद काम बहुत कम हो गया जिस वजह से हम लोग वापस लौटने पर मजबूर हैं.
(Kedarnath Travelogue in 2020)
सीजन में केदारनाथ मार्ग में लगभग 10,000 घोड़े/खच्चर यात्रियों को ढोने का काम करते हैं जिसमें से लगभग 50 प्रतिशत स्थानीय लोगों द्वारा संचालित किये जाते हैं. लेकिन इस बार लगभग 10 प्रतिशत घोड़े/खच्चर ही यात्रा मार्ग में लगे हुए थे जिसमें से अधिकांश खाली ही नजर आ रहे थे. एक खच्चर चालक से बात करने पर पता चला कि यात्रा मार्ग में घोड़े/खच्चर चलाने के लिए 700 रूपये का रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है साथ ही खच्चर चालक का 2000 रूपये का मेडिकल चैकअप भी किया जाता है.
गौरीकुंड से केदारनाथ बेस कैंप तक की यात्रा पर सरकार की तरफ से 150 रूपये प्रति खच्चर टैक्स वसूली भी की जाती है. खच्चर चालकों ने आगे बताया कि सीजन में यात्रियों की लगातार आवाजाही के चलते उनकी अच्छी कमाई हो जाती थी लेकिन इस बार कमाई बहुत ज्यादा नहीं है उस पर भी एक खच्चर के खाने-पीने व रखरखाव में लगभग 1000 रूपये प्रतिदिन खर्च हो जाते हैं जिस वजह से उन्हें बहुत ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है और वो वापस लौटने की सोच रहे हैं.
पिछले साल की यात्रा से तुलना की जाए तो इस वर्ष यात्रा मार्ग सुनसान नजर आ रहा था. अमूमन यात्रा मार्ग में घोड़े/खच्चर, डंडी/कंडी व पैदल यात्रियों की लगातार आवाजाही के चलते पैर रखने को जगह नहीं होती थी और यात्रियों को अतिरिक्त सुरक्षा के साथ चलना पड़ता था लेकिन इस बार यात्रा मार्ग में ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ था कि यात्रियों द्वारा एक लंबी दूरी तय करने के बाद ही कुछ घोड़े/खच्चर व सहयात्री नजर आ रहे थे. हर वर्ष डंडी/कंडी चालक अपनी रोजी रोटी की तलाश में नेपाल से केदारनाथ पहुँचते थे लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण नेपालियों के न आने की वजह से डंडी/कंडी से यात्रा लगभग नगण्य थी. इस बार की यात्रा का सबसे सुखद पहलू यह था कि 17 किलोमीटर के पैदल यात्रा मार्ग पर यात्री प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हुए उन्हें अपने कैमरे में इत्मिनान के साथ कैद करते हुए आगे बढ़ सकते थे.
(Kedarnath Travelogue in 2020)
मंदिर के अंदर श्रद्धालुओं को प्रवेश की इजाजत है लेकिन गर्भगृह में प्रवेश निषिद्ध है. कोरोना के खतरे को देखते हुए मंदिर परिसर में मास्क पहनना अनिवार्य है लेकिन 11750 फीट की ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी के चलते लगातार मास्क पहन कर रह पाना लगभग नामुमकिन है. फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन मंदिर परिसर में कहीं भी देखने को नहीं मिला. शाम की आरती के समय यात्रियों का हुजूम मंदिर परिसर पर बिना किसी शारीरिक दूरी के नजर आ रहा था. रामबाड़ा से पहले व मंदिर परिसर के पास जरूर लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग की जा रही थी लेकिन मेडिकल को लेकर सुविधाएँ यात्रा मार्ग में पिछले वर्ष की भाँति चौकस नजर नहीं आई.
जैसे-जैसे केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की तारीख नजदीक आ रही है वैसे-वैसे यात्रियों की संख्या सीमित मात्रा में ही सही लेकिन बढ़ रही है. वीकेंड पर यात्रियों की संख्या सबसे ज्यादा देखी जा सकती है तथा सामान्य दिनों में संख्या सामान्य ही है. कोरोना से बचाव को ध्यान में रखते हुए बहुत से यात्री हेलीकॉप्टर से केदारनाथ की यात्रा कर रहे हैं. यदि आप भी केदारनाथ जाने की सोच रहे हैं तो अपनी सुरक्षा अपने जिम्मे लेकर यात्रा करें.
अगस्त्यमुनि से सोनप्रयाग तक ऑल वेदर रोड के निर्माण के चलते सड़क बहुत खराब है इसलिए अतिरिक्त सावधानी बरतें. फिजिकल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखें और बढ़ती हुई ठंड को देखते हुए गर्म कपड़ों को साथ लेकर सफर करना न भूलें.
(Kedarnath Travelogue in 2020)
नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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