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क्रौंच पर्वत पर स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले से 38 किलोमीटर की दूरी पर कनक चौरी गाँव में स्थित है कार्तिक स्वामी मंदिर. भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित इस मंदिर तक कनक चौरी गाँव से 3 किलोमीटर पैदल एक सुंदर कच्चे ट्रैक से होते हुए पहुँचा जा सकता है. इस ट्रैक के दोनों ओर खूबसूरत बाँज के जंगल, बुराँश के पेड़ व पक्षियों का कलरव आपकी यात्रा में इतनी सुगमता व मनोरमता भर देता है कि पता ही नहीं चलता कब आप हिमालय की गोद में स्थित क्रौंच पर्वत पर बसे इस मंदिर के आहाते तक पहुँच जाते हैं.
(Kartik Swami Temple Rudraprayag)

कार्तिक स्वामी मंदिर समुद्रतल से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है जहाँ से मौसम साफ होने पर हिमालय की तमाम चोटियों जैसे चौखंबा, मद्यमहेश्वर, केदार पर्वत, मेरु-सुमेरु पर्वत, त्रिशूल, पंचाचूली, नीलकंठ, नंदा देवी, कामेट, नंदाघुंटी, रुद्रनाथ, दूनागिरी, कौसानी आदि का चौतरफा खूबसूरत नजारा देखते ही बनता है. कहते हैं इस मंदिर से हिमालय की लगभग 80 प्रतिशत चोटियाँ साफ नजर आती हैं.

पौराणिक कथानुसार एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनसे कहा कि दोनों में से जो भी सबसे पहले ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर वापस आएगा उसकी पूजा समस्त देवी-देवताओं में सबसे पहले की जाएगी. कार्तिकेय तो ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने चले गए लेकिन गणेश ने माता पार्वती व पिता शंकर के चारों ओर चक्कर लगा माता-पिता से कहा कि मेरे लिए तो आप ही पूरा ब्रह्माण्ड है इसलिए आपके चक्कर लगाना ब्रह्माण्ड के चक्कर लगाने के बराबर ही है. गणेश की इस बुद्धिमत्ता से प्रसन्न भगवान शंकर ने उन्हें अपने वचनानुसार वरदान दिया कि किसी भी शुभ कार्य से पहले समस्त देवी-देवताओं के इतर सबसे पहले गणेश की पूजा की जाएगी. स्वयं को हारा हुआ देखकर कार्तिकेय क्रुद्ध हो गए और अपने शरीर का माँस माता-पिता के चरणों में समर्पित कर स्वयं हड्डियों का ढाँचा लेकर क्रौंच पर्वत चले गए. कहते हैं भगवान कार्तिकेय की ये हड्डियाँ आज भी मंदिर में मौजूद हैं जिनकी पूजा करने लाखों भक्त हर साल कार्तिक स्वामी आते हैं.

यह मंदिर बारह महीने अपने भक्तों के लिए खुला रहता है. अधिक ऊँचाई पर होने के कारण गर्मियों में यहाँ का मौसम सुहावना व सर्दियों में बर्फ लिए रहता है. मंदिर के आहाते से हजारों फुट नीचे घाटी में देखने पर सुंदर गाँव दिखाई पड़ते हैं जिन्हें देख ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने कोई सुंदर सा पोर्ट्रेट बनाकर घाटी में छोड़ दिया हो. मौसम की एक करवट बदलते ही सारे बादल घाटी में तैरने लगते हैं और जैसे ही बादल छँटते हैं सूर्य की किरणों तले धवल पर्वतश्रेणियाँ चमक उठती हैं. प्रकृति का यह नजारा कार्तिक स्वामी मंदिर से 360 डिग्री का ऐसा दृश्य देता है जो आपको एक अद्भुत अनुभव व रोमांच से भर देता है.
(Kartik Swami Temple Rudraprayag)

स्थानीय लोग बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कार्तिक स्वामी आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. कई लोग इसे छठे केदार की संज्ञा भी देते हैं. मंदिर के पीछे एक जल कुंड है जिसे कार्तिक कुई कहते हैं. प्रत्येक वर्ष जून माह में हजारों श्रद्धालु इस कुई से जल भरकर मंदिर में जलाभिषेक करते हैं. इस कार्यक्रम को हर वर्ष एक पर्व की तरह मनाया जाता है. कार्तिक स्वामी आने वाले श्रद्धालुओं में सबसे बड़ी संख्या बंगालियों व दक्षिण भारतीयों की है. ऐसा माना जाता है कि बंगाली समुदाय की कार्तिक स्वामी पर असीम श्रद्धा है. कुछ विदेशी पर्यटकों ने भी इस गंतव्य तक आना शुरू किया है जो कि इसके प्रचार प्रसार के लिहाज से सुखद बात है.

कार्तिक स्वामी मंदिर तक पहुँचने के लिए अब तक पक्का ट्रैक नहीं बन पाया है जिस वजह से असमय हुई बरसात के कारण यात्रियों के ट्रैक पर फिसलने का भय बना रहता है. अलबत्ता मंदिर व उसके आस-पास पुनर्निर्माण व सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है जिसे देखकर यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में पर्यावरण के अनुरूप मंदिर तक पहुँचने के लिए एक पक्का ट्रैक यात्रियों के लिए बनाया जा सकता है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि आल वैदर रोड की तर्ज़ पर ही एक सड़क रुद्रप्रयाग-कनक चौरी-हाफला तक प्रस्तावित है जिसका निर्माण कार्य शीघ्र ही प्रारंभ हो सकता है. लेकिन रुद्रप्रयाग से कनक चौरी तक जो वर्तमान सड़क है वह भी अच्छी स्थिति में है. उसे 1-2 मीटर और चौड़ा कर एक सुगम सड़क मार्ग में बदला जा सकता है.

सुविधाओं व ठहरने के लिहाज से बात करें तो कनक चौरी एक गाँव है जहाँ के लोगों को कुछ ही समय पहले समझ में आया है कि पर्यटन के जरिये भी कमाई हो सकती है. पिछले कुछ वर्षों में यात्रियों की संख्या बढ़ने के बाद से स्थानीय लोगों ने गाँव में ही दुकानें व होम स्टे खोलने शुरू किये हैं. लेकिन अभी तक कोई बहुत अच्छे होटल, होम स्टे तथा रेस्टोरेन्ट कनक चौरी गाँव या उसके आस-पास नहीं बन पाए हैं. उसके लिए यात्रियों को वापस रुद्रप्रयाग आना पड़ता है.
(Kartik Swami Temple Rudraprayag)

सरकार को चाहिए कि स्थानीय लोगों के लिए स्वरोजगार पैदा करने के इस सुनहरे मौके को भुनाए तथा वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोज़गार योजना व दीन दयाल उपाध्याय गृह आवास विकास योजना के तहत लोगों को लोन उपलब्ध करा उनकी होम स्टे व रेस्टोरेंट खोलने में मदद करे. साथ ही भारत सरकार की ‘हुनर से रोजगार तक’ जैसी योजनाओं को उत्तराखंड के इन पहाड़ी गाँवों तक ले जाया जाए तथा स्थानीय युवाओं को पर्यटन के लिए आवश्यक कौशल की ट्रेनिंग दी जाए. इसका फायदा यह होगा कि स्थानीय लोग पर्यटन के महत्व को समझेंगे, गंतव्य की गुणवत्ता बढ़ेगी, अच्छी सुविधाएँ होने से यात्री संतुष्ट लौटेंगे जिससे गंतव्य के प्रचार-प्रसार में मदद मिलेगी.

कुल मिलाकर कार्तिक स्वामी मंदिर एक गंतव्य के तौर पर श्रद्धा, भक्ति, मन की शांति, खुशनुमा मौसम व मनमोहक दृश्यों का मिश्रण है. कोरोना महामारी के चलते फिलहाल उत्तराखंड भ्रमण पर रोक है लेकिन कार्तिक स्वामी को आप अपनी घुमन्तू डायरी का हिस्सा बना लीजिये क्योंकि देर सबेर ही सही महामारी खत्म होगी ही और यात्रा के दरवाजे भी खुलेंगे. तब जहाँ एक ओर यह गंतव्य आपको गर्मियों में चिलचिलाती गर्मी से निजात दिलाएगा वहीं सर्दियों में बर्फ देखने की आपकी तमन्ना को भी पूरा करेगा.
(Kartik Swami Temple Rudraprayag)

कार्तिक स्वामी मंदिर की कुछ तस्वीरें देखिये:

कमलेश जोशी

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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