समाज

आसमां छूते पहाड़ों के बीच सुसाट-भुभाट के साथ बलखाती काली और उसके रहस्य

उत्तराखंड सीमांत और नेपाल की विभाजक है काली नदी. 1815 के बाद ब्रितानी हुकूमत ने नेपाल को कालीपार सीमा से बांध दिया. इस घटना पर मोलाराम ने लिखा:

डोटी  मांहि गोरषा बैठे, कालीवार इंगरेज  हि  बैठे,
कालीगंगा बीच में चालें, चौकी पहरा सवे संभालें.
वार – पार सब चेतन रहें, ख़बरदार !निसि वासर कहें,
बिना हुकुम कोई जान न पावै, राहदारी मौं आवै-जावै.
Kali River and its Drainage System

कुटी यांग्ती का बारामासी जल कालापानी नदी में मिलता है. आसपास की कई लघु सरिताओं, गाड़-गधेरों के मेल से अंततः बनती है काली नदी, जो दक्षिण-पश्चिम के बहाव से दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होती है. जिसका विशाल जलागम क्षेत्र है. आसमां छूते संकरे पहाड़ों के तल से टकराती गर्जना करती मदमस्त बहती काली में दारमा से आई धौली नदी तवाघाट में आ मिलती है जिसका स्त्रोत दावे ग्लेशियर है. 

जौलजीवी में काली नदी से आ मिलती है गोरी नदी. गोरी नदी मिलम ग्लेशियर से आती है जिसकी सहायक गुनखागाड़ है जो ऊंटाधूरा दर्रे के दक्षिण से आ मिलती है. फिर काली नदी के प्रवाह में पंचेश्वर में नंदाकोट हिमनद से बागेश्वर होते आई सरजू नदी मिलती है. सरजू में रामेश्वर से पहले ही पनार मिलती है. अब आगे यह पूर्वी रामगंगा कहलाती है.

काली नदी में वेग है. ऊँचे विशाल पहाड़ों के तल को अपनी मदमस्त गर्जना के साथ तीखे ढ़ालों में काट कर बहने का दुस्साहस है. भारत और नेपाल के घने जंगलों का सहचर है ये दुर्गम जलागम प्रदेश जहां दुर्लभ वनस्पतियों का भंडार है. फ़्लोरा फोना की विविधता है. मदभरी काली पहाड़ों से उतरते अपने पूरे सुसाट-भुभाट के साथ लहराती बलखाती विशालकाय शिलाओं को बरसों से नवरूप देती मुड़ती लचकती अनायास ही ह्रदय में कम्प करती बदन थरथरा देती है.

उत्तराखंड और नेपाल की सीमा की विभाजक यही विशाल मदमाती बलखाती काली नदी रही जिसके जलागम क्षेत्र में   राजी जनजाति के हुमली राजा का राज्य भी पसरा था तो अस्कोट का पाल राजवंश भी इसी सुरम्य प्रदेश में रहा. दारमा व्यास और चौदास के शौका और रङ्ग जनजाति के निवासी इसी दूरस्थ, दुर्गम और प्रकृति की अनमोल सम्पदा को संजोये भारत तिब्बत व्यापार का संवहन करते रहे. जिनके साथ होते उनकी पशु संपदा के रक्षक अणवाल और भेषजों जड़ीबूटियों का अपार ज्ञान रखने वाले हुणीए और खम्पा. इसी काली नदी के इलाके ने गोरख्याणी शासन की पूर्व अवधि में उत्तराखंड से नेपाल के पश्चिमी भाग के गहन सांस्कृतिक ताने बाने की नींव बुनी. 

काली पार इलाके में अगर पूरब की ओर बढ़ें तो सीधे खड़ी दिखती है देवलगिरि शैलमाला जो लम्बाई में उत्तर से दक्षिण को पसरी हुई है. अब इसके आगे पूरब की ओर जाने पर आतीं हैं दो शैल मालाएं, पहली ‘किंचिन जंघा’ और दूसरी ‘गोसांइ  थान’ जिससे वार का नेपाल भी दो भागों में बंट जाता है. इधर उत्तराखंड से जुड़ा हिस्सा पश्चिमी है जिसके उत्तर में हिमनदों की श्रृंखला पसरी है जिनमें मुख्य हैं : चांदी हिमाल, गोरख हिमाल, सायपल हिमाल तथा गुरास और व्यास ऋषि  हिमाल. इन हिमालों को वांक भी कहा जाता है. Kali River and its Drainage System

फिर आते हैं इस इलाके के ऊँचे-ऊँचे पहाड़, जिन्हें डांडा कहा जाता है. इनमें मुख्य है जुगार डांडा और कालिकोट डांडा.  यहाँ कोट भी हैं जैसे – वोस कोट, सियाल कोट, कांगर कोट, रोदिल कोट व कोव कोट और साथ में धूरे भी जैसे डंडेल धूरा, बुद्ध देव धूरा. कुल मिला कर उत्तराखंड की सीमा से पसरे काली नदी की कुछ मुख्य बसासतें हैं – दार्चुला, बैतड़ी, पीपलचौड़, पातोंन, दोहा, दोहा, चौखम, सितौला, त्रिकाली, चैनपुर, बौझारी, दाहाचौड़, दाहाबगड़, लामाबगड़, द्रोनागढ़, धनगढ़ी, दैलेख, दुल्लु, मानमा व जौचोड़ .

काली नदी के  घाटों में तिमलाघाट, मुंडियाघाट, जमीलपानीघाट, उनलाघाट मुख्य हैं. इसी मुंडियाघाट से डोटी के राज परिवार का हस्तिदल चतुरिया गवर्नर नेपाल ब्रिटिश युद्ध में गोर्खाली सेना ले कर कुमाऊं आता था. दूसरी तरफ उनला घाट से विक्रम शाह और उसकी सेना को आने से रोकने के लिए ब्रिटिश कंपनी सरकार ने बड़े जतन किये थे. वहीं अस्कोट के पास उपरलाघाट, जमीलपानी घाट था. तो चारों तरफ के रास्तों वाला झूलाघाट जहां पिथौरागढ़ जनपद का ऐतिहासिक मेला लगता रहा.

उत्तराखंड में पिथौरागढ़ और चम्पावत जनपद की सीमा रेखा बनाती काली नदी का पूरा इलाका काली करनाली  कहलाया जिसके बीच में पनपे डोटी और जुमला राज्य और साथ में बाईसी ठाकुरी. यहीं दुल्लू देलेख से चल्ल-मल्ल  राजाओं ने राज किया और गढ़वाल तक विजय  पताका फहराई . तिब्बत से व्यापार होता रहा, जिसका रास्ता इनकी शीतकालीन राजधानी सिंजा से ही हो कर गुजरता था. तदन्तर नौलखा डोटियालों के राज में कालीचंद सुभट ने जब  कुमाऊं पर बलात अधिकार करने का आदेश डोटियालों को दिया तो उन्होंने साफ इंकार करते कहा कि अगर हम काली नदी में बह गए तो अगले जन्म श्रेष्ठ योनि कहाँ मिलेगी? ऐसी भ्रान्ति थी कि काली पार करना तो भयावह था ही उसमें नहाना भी कठिन जोखिम भरा, तभी कहा गया, ‘काली नयो, भालू खयो ‘. काली का सारा तट ही भयावह माना गया, ‘काली का किनारा उपज्यो मसाण, पाली जसी लाद, मुसलिया ढाढ़’.

काली के घाट गंगनाथ को महा शमशान घाट कहा गया. काली के सुसाट भुभाट में बसता है महा गणमेश्वर, यहीं विराजता है द्योताल मसाण जिसके अक्षत आगे पीछे भूत भविष्य के हल बताते धामी आज भी कइयों की आपदा विपदा हरते हैं. यहाँ नागार्जुना भी है और तालेश्वर भी जहां मारण, मोहन वशीकरण की रहस्यमय लीला है. भय मिश्रित आस्था है. कामनापूर्ति के बलिदान हैं. इस दुरूह रहस्य मयी धरती के अचीन्हे कोप भी हैं, कभी भूस्खलन, कहीं एवलांच कहीं दुर्गम शिखरों से वेग से आते बोल्डर और कभी मालपा जैसी त्रासदी जो समूचे कैलाश मानसरोवर यात्रियों को अपने अंक में समेट विनाश की लीला दिखा गयी.

फोटो : मनु डफाली

यही है काली नदी. भारत और नेपाल की सीमा तय करती. इसके वार पार उत्तराखंड और नेपाल में रोटी-बेटी का युगों पुराना रिश्ता है, तो शारीरिक श्रम कर  लोगों कर बोझ ढोते डोटियाल, लाला बनियों के यहाँ मजूरी कर रहे पल्लेदार. आलसी पहाड़ियों ने अपनी उपजाऊ जमीन यहीं से आए नेपालियों को अधाइ पे सौंपी और उन्होंने सागसब्जी की हरियाली फहरा दी.

इसी काली के रस्ते बनबसा, टनकपुर, मेरठ, आगरा, दिल्ली, मुंबई से होते विदेश तक देह व्यापार के संवाहक भी  न जाने कितनी आहों सिसकियों के साथ वेदना के करुण क्रंदन को कुचल गरम गोश्त के सौदागर बने रहे हैं. और अब कई सालों से इसी काली नदी के तट बंध पर पंचेश्वर बाँध बनाये जाने की तैयारियां हैं जिसका डूब क्षेत्र कितने रस्ते, मकान दुकान कस्बे डुबाएगा? जैसे सवालों का आंकलन करने को सरकार की डी पी आर प्रगति की कई किश्तें जारी हो गईं हैं. विकास और विनाश के सही समय की तलाश कर रहीं हैं.     Kali River and its Drainage System

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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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Girish Lohani

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