गर्मियों के आने की आहट के साथ आ जाता है पहाड़ों का रसीला काफल. हर साल अपने रुप से हर किसी का मनमोह लेना वाला यह फल साल दर साल आम आदमी की जेब से दूर होता जा रहा है. कुछ साल पहले पांच रुपए में जितने काफल आते थे अब पचास में भी आ जाएं तो गनीमत है.
(Kafal Vendor Puran Da Uttarakhand)
काफल के 500 रुपए किलो बिकने की खबरों के बीच अल्मोड़ा के करबला में आप को आजकल जलना के पूरन जी अपनी मारुती ऑल्टो कार की डिग्गी से सुबह-सुबह काफल बेचते मिल जायेंगे. ये वही करबला है जहां स्वामी विवेकानंद को उनके अल्मोड़ा यात्रा के दौरान एक व्यक्ति ने उनकी थकान मिटाने के लिए ककड़ी खिलाई थे.
हैरानी की बात यह है कि जब काफल के नाम पर मनमाने दाम वसूले जा रहें हैं तब पूरन दा आपको काफल सिर्फ 100 रुपए किलो दे रहे हैं. जी हां सिर्फ 100 रुपए में पूरे एक किलो काफल. पूरन दा जलना के के रहने वाले एक सरल पहाड़ी व्यक्ति हैं. जलना अल्मोड़ा से तकरीबन 1 घण्टे की दूरी पर एक छोटी सी जगह है जो वहां से दिखने वाले सुंदर हिमालय के अलावा वहां होने वाले काफलों के लिए भी प्रसिद्ध है.
(Kafal Vendor Puran Da Uttarakhand)
पूरन दा से बात कर करने पर पता चलता है कि उनकी एक छोटी सी परचून की दुकान भी है और साथ ही वह टैक्सी चालक भी हैं. एक सीधा सादा पहाड़ी पूरन दा आज के दौर में भी सादगी, ईमानदारी और उद्यमता की मिसाल ही तो है जो बगैर कुछ कहे अपने काम से बेरोजगारी को अपने काम से शिकस्त दे रहा है.
पूरन दा एक दिन में कुछ घंटों में ही 25 से 30 किलो काफल बेच लेते हैं और फिर अपनी गाड़ी में सवारी बैठा कर वापस चल देते हैं जलना की ओर अगली सुबह ताज़े काफलों को लेकर अल्मोड़ा लाने के लिए. हमने पूरन दा से आग्रह किया कि वह इसी तरह खुबानी और पूलम भी लाया करें तो वो अगले ही सुबह काफल के साथ खुबानी भी ले आए. उम्मीद है कि पूरन दा अपनी गाड़ी के साथ करबला के उस मोड़ में हर बार ऐसे ही मिलते रहेगें.
(Kafal Vendor Puran Da Uttarakhand)
पूरन दा और उनकी चलती फिरती काफल की दुकान के कुछ फोटो देखिये :
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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