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जोजोड़ा : जौनसार-बावर की अनूठी विवाह प्रणाली

मेरी पैदाइश और परवरिश कई छोटे कस्बों एवं नगरों में हुई है, इसके बावजूद मेरा अपने पैतृक स्थान से अलग ही लगाव रहा है. मेरा ये विश्वास रहा है कि – आप चाहे कहीं भी रहें, कोई भी काम-काज करें या कितना भी कमाएं, आपको अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए. अपने समाज के प्रति अपनेपन का यह भाव, आपको हमेशा इसकी परंपरा और सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान को समझने के लिए प्रेरित करता है.
(Jojoda Jaunsar-Bawar Marriage Tradition)

मैं उत्तराखंड की ‘जौनसारी’ जनजाति से ताल्लुक रखता हूँ, जिसका इतिहास महाभारत के पांडवों और राजस्थान के राजपूतों से जुड़ा हुआ है. हमें पांडवों का वंशज भी कहा जाता है. भौगोलिक दृष्टि से पहाड़ी, जौनसार-बावर, उत्तराखण्ड़ राज्य के देहरादून जनपद में स्थित है, एवं इसके दो भाग हैं : ऊपरी भाग को बावर तथा निचले भाग को जौनसार कहा जाता है. यह क्षेत्र बाहरी दुनिया और समाज से कई सदियों तक अछूता रहा, जिससे यहां की अनूठी परंपराये और संस्कृति अभी तक कायम रही.

हर समाज की अपनी अनूठी परंपरा और सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था होती है जो उसे दूसरों से अलग करती है. जब कोई बाहरी व्यक्ति ऐसी किसी भी प्रणाली के संपर्क में आता है, तो पहले तो उन्हें बहुत अजीब लगता है. लेकिन यह विचित्रता तब गायब हो जाती है जब वे इसकी विशिष्टता को समझते हैं; और इसका विश्लेषण करते हैं, क्योंकि कहानी का सच हमेशा विवरण में ही निहित होता है. उसी तरह, जौनसार-बावर में भी कुछ ऐसी अनूठी संस्कृति और परंपरा है जो इसे अन्य पड़ोसी समाजों से अलग करती है. लेकिन यहाँ, इस लेख के माध्यम से, मैं अपने क्षेत्र की अनोखी विवाह प्रणाली पर जोर देना चाहता हूं.

इस क्षेत्र में प्रचलित विवाह प्रणाली को स्थानीय बोली में ‘जोजोड़ा’ कहा जाता है. मुझे भी इन विवाहों में शामिल होने के कई अवसर मिले हैं. अन्य क्षेत्रों में प्रचलित विवाह प्रणाली के विपरीत, जोजोड़े में, दुल्हन की ओर से ग्रामीण और रिश्तेदार दूल्हे के गांव ‘जोजोड़िये’ (बाराती) के रूप में जाते हैं. बचपन में मैं इस व्यवस्था को समझ नहीं पाता था और काफी उलझन में रहता था. एक बार मैंने अपनी एक मौसी के जोजोड़े में भाग लिया. शादी के दिन दूल्हे पक्ष से पांच लोग आये. मैं काफी उलझन में था, क्योंकि एक तो दूल्हे की ओर से काफी कम लोग थे और ऊपर से दूल्हा कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. मैं दूल्हे को देखने के लिए काफी उत्सुक था और उसकी तलाश में इधर-उधर भटक रहा था. उत्सुकता पूर्वक मैंने अपनी माँ से दूल्हे के बारे में पूछा वो बिना ज़वाब दिए हुए बस हंसते हुए चल दी, मैं भी उनकी हंसी समझने के लिए काफी अपरिपक्व और छोटा था. मैंने दूसरों से भी यही सवाल पूछा, लेकिन उनमें से किसी ने भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मेरी ये सारी शंकाए खुद ही दूर होती गयी.
(Jojoda Jaunsar-Bawar Marriage Tradition)

पहाड़ी समुदायों की विवाह प्रणाली,और विशेष रूप से जौनसार-बावर की, अपने रूप में अनोखी हैं. शादी के दौरान ग्रामीणों के बीच काफी तालमेल रहता है और पूरा गांव इसकी जिम्मेदारी लेता है. विवाह के कामकाज को कुशल और सुचारू रूप से चलाना, पूरे गांव के लिए सम्मान और प्रतिष्ठा की बात होती है. किसी भी शादी से पहले, ग्रामीणों के बीच बैठकें आयोजित की जाती है और इन बैठकों में शादी के सभी मामलों पर चर्चा होती है. हर परिवार का एक सदस्य इन बैठकों में भाग लेता है . बैठकों में ही व्यक्तियों की विशेषज्ञता और अनुभव के आधार पर समूह बनाते हैं और प्रत्येक समूह के लिए अलग-अलग काम सौंपे जाते हैं. व्यंजनों को पकाने के लिए; मेहमानों की देखभाल के लिए; भोजन परोसने इत्यादि के लिए, अलग-अलग समूह होते हैं| समूह का प्रत्येक सदस्य उसे सौंपे गए कार्य की पूरी जिम्मेदारी लेता है. मेजबान परिवार द्वारा तय किए गए खाने के मेन्यू के आधार पर, सभी आवश्यक वस्तुओं और कच्चे माल की सूची बनाई जाती है. सभी रसोई के बर्तन ग्राम पंचायत द्वारा मुफ्त में प्रदान किए जाते हैं, कुछ गांवों में तो, पंचायत द्वारा ख़रीदे गए टैंन्ट और कुर्सियां ​​भी दी जाती हैं. शादी से बहुत पहले ही, ग्रामीणों द्वारा पास के जंगल से ईंधन के लिए लकड़ियां एकत्र की जाती है.

शादी के दिन, रात की दावत में रोटियां बनाने के लिए गाँव की लड़कियों के अलग-अलग समूह बनाए जाते हैं, जो की कई घरों के चूल्हों में जाकर रोटियां बनाती हैं. विवाह के इन सभी कार्यों में भाग लेने वाले सभी सदस्यों को ‘सुंवार’ या ‘रुसुंवार’ (रसोइये) कहा जाता है. शादी में आये सभी मेहमानों को अलग-अलग समूहों में बांटा जाता है और उनके ठहरने और बिस्तर के लिए विशिष्ट स्थान होता है, जिसे डेरा कहते हैं. दुल्हन के साथ आए जोजोड़ियों के लिए एक अलग डेरा होता है, डेरे में ही उनके खाने पीने का प्रबन्ध होता है. डेरे में जोजोड़िये देर रात तक खंजरी बजाते हुए पारंपरिक गीत गाते हैं और नाचते हैं.

हर परिवार में उस पीढ़ी के सबसे बड़े बेटे की शादी बहुत खास और भव्य होती है, जिसे ‘बारिया का जोजोड़ा’ या ‘आग्ला जोजोड़ा’ भी कहते हैं. इसमें न केवल गांव बल्कि पूरे ‘खत’ को शादी के उत्सव के लिए आमंत्रित किया जाता है. जौनसार-बावर का क्षेत्र कई छोटी क्षेत्रीय इकाइयों में विभाजित है जिसे ‘खत’ कहा जाता है. एक खत में कई गांव शामिल होते हैं, ‘खत’ वर्तमान प्रशासनिक ढाँचे के जिले के समान होता है. कई रस्में और परंपराएं हैं जो इस शादी के लिए विशिष्ट है. उन रस्मों में से एक को ‘रैणिया जिमाना’ कहते हैं. उस गांव के पुरुषों से विवाह करने वाली महिलाओं को ‘रैणिया’ कहा जाता है.

स्नेहा सिंह तोमर की पेंटिंग

जौनसारी समुदाय में महिलाओं को काफी सम्मान और आदर दिया जाता है. आमतौर पर, किसी भी परिवार की महिलाएं दूसरे परिवार की शादी में शामिल नहीं होती हैं, जब तक कि उन्हें बहुत सम्मान और आदर के साथ आमंत्रित न किया जाए. पहली शादी के दौरान, उस गाँव की सभी ‘रैणियों’ को आमंत्रित किया जाता है और उनके लिए विशेष दावत का आयोजन होता है. यदि कोई महिला गांव में अनुपस्थित है, तो उसका हिस्सा उसके परिवार वालों को दिया जाता है,यहां तक ​​कि अगर कोई महिला गर्भवती है, तो उनके अजन्मे बच्चे का हिस्सा भी दिया जाता है. इन दावतों में घी के साथ साथ अन्य कई स्थानीय पकवान भी दिए जाते हैं, एवं सभी महिलाएं एक साथ बैठ कर भोज करती हैं. महिलाएं मुख्यतः घाघरा-कुर्ती और ढॉटू, जो की यहां का पारंपरिक पहनावा है, पहन कर दावत में शामिल होती है.

एक और रस्म जो इस विवाह के लिए विशिष्ट है, उसे ‘सुंवार बियाई ‘ या ‘रुसुंवार बियाई’ कहा जाता है. जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, ‘सुंवार’ वे सभी होते हैं जो विवाह के प्रबंधन में लगे होते हैं. अपने कार्य के कारण, वे शादी के जश्न का आनंद नहीं ले पाते हैं और काफी थके हुए भी रहते हैं. इसलिए, शादी के अगले दिन या तीसरे दिन उनके लिए विशेष रात्रिभोज का आयोजन किया जाता है.
(Jojoda Jaunsar-Bawar Marriage Tradition)

नृत्य और संगीत किसी भी जौनसारी विवाह उत्सव का एक अभिन्न अंग होता है. हारुल, झेंता, रासो आदि जौनसार के कुछ प्रसिद्ध लोक नृत्य हैं. अधिकांश नृत्यों में, महिलाएं और पुरुष दो अलग-अलग अर्ध-मंडलियों में एक दूसरे का हाथ पकड़कर; शरीर को थोड़ा आगे झुकाकर ;पैरों का तालमेल बनाते हुए चलते हैं, एवं एक साथ गीत गाते हैं. विवाह के दौरान, ये नृत्य स्थानीय वाद्ययंत्रों जैसे ढोल, दमाणा, रणसिंघा आदि के साथ पंचायत-आँगन में किए जाते हैं. शादी के अगले दिन दूल्हे के गांव के आंगन में दूल्हे और दुल्हन को हमारी पारंपरिक हारुल पे नचवाया जाता है इसके साथ ही जोजोड़िये और दूल्हे पक्ष के लोगों में जौनसारी नृत्य का रोमांचक मुकाबला भी होता है.

आजकल, इन विवाहों में कुछ नयी प्रवृत्तियों को देखा जा सकता है – डी-जे और आधुनिक संगीत प्रणाली धीरे-धीरे हमारे पारंपरिक उपकरणों और संगीत की जगह ले रहे हैं, जो कि हमारे लिए चिंता का विषय है. वाद्ययंत्रों को बजाने की यह कला समर्थन की कमी के कारण धीरे-धीरे कम हो रही है. बहुत ही कम लोग बचे हैं जो अभी भी इस कला का अभ्यास करते हैं. समाज का वह वर्ग जो इन वाद्य यंत्रों को बजाते हैं उनकी अभी भी काफी दयनीय स्थिति है, जाति व्यवस्था के कारण ये लोग अभी भी समाज में असमानता का सामना कर रहे हैं. हर कोई अपने पैरों को उनके द्वारा बजाये जाने वाली धुनों पर थिरकाता है, लेकिन उन्हें अभी भी न तो वह सम्मान मिलता है और न ही वह प्रशंसा जिसके वे हकदार हैं. वे इस समृद्ध पारंपरिक कला के मशाल धारक हैं और वास्तव में बहुत सम्मान और आदर के पात्र हैं. समय की जरूरत है कि इस कला को बढ़ावा दिया जाए और युवाओं को इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए.

शादी के दौरान ग्रामीणों के बीच इस तरह का तालमेल मैंने किसी भी समुदाय में नहीं देखा है. पूरा गाँव एक दीवार की तरह खड़ा रहते हुए शादी की पूरी ज़िम्मेदारी लेता है, जिससे मेजबान परिवार के उपर जिम्मेदारियों का बोझ कम हो जाता है. मैं कई ऐसे लोगों से भी मिला हूँ जिन्हें ये विवाह प्रणाली अजीब लगती है और वे इसे अपनाने से कतराते हैं, परन्तु अजीब लगने वाली यह प्रणाली वास्तव में बहुत अद्भुत है. निसंदेह, इस प्रणाली में भी कुछ खामियां हो सकती हैं और कईयों के लिए यह समकालीन परिदृश्य में उपयुक्त नहीं भी हो सकती है, फिर भी इसके कई ऐसे सकारात्मक पक्ष हैं जो इसे अद्भुत बनाते हैं. यह प्रणाली हमारे पूर्वजों द्वारा विकसित और संरक्षित समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं की झलक देती है. वास्तव में मैं गर्व महसूस करता हूं कि मैं भी इस समृद्ध संस्कृति का एक हिस्सा हूं.
(Jojoda Jaunsar-Bawar Marriage Tradition)

जौनसार के रहने वाले सौरव तोमर वर्तमान में बंगलोर में रहते हैं. उनके ब्लॉग सुदूर पहाड़ से में उन्हें पढ़ा जा सकता है.

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Girish Lohani

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  • मुझे यह जानकारी काफी रोचक भरी लगी

  • बहुत अच्छा लेख। इतनी अच्छी जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। ऐसे लेख के माध्यम से अपने हमें समाज और संस्कृति को जानने एवं समझने का अवसर मिलेगा।

  • बहुत सुन्दर और मनमोहक जानकारी देने के लिए कोटि कोटि धन्यबाद. बेहद जरूरी है कि हम अपने इन रीति रिवाजों की अनमोल धरोहरों का सम्मान करते हुए इन्हें जीवित रखने का प्रयास करें तथा अपने पूर्वजों रचित सभी परम्पारओं का स्वागत करें.

    धन्यवाद इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए. आशा है कि आगे भी इसी तरह से नई जानकारियां प्रस्तुत करते रहेंगे.

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