कुमाऊँ मंडल के चम्पावत जिले में प्रख्यात पूर्णागिरी मंदिर से एक किमी की दूरी पर है झूठे का मंदिर. इस मंदिर के अनोखे नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी ही जुड़ी हुई है.
इस किंवदंती के अनुसार एक दफा एक बहुत बड़े सेठ ने माँ पूर्णागिरी के धाम आकर मन्नत मांगी. उसने देवी से एक पुत्र रत्न का वरदान माँगा और मनोकामना पूरी हो जाने के बाद एक सोने का घंटा भेंट चढ़ाने का संकल्प लिया.
माँ पूर्णागिरी की अनुकम्पा से उक्त सेठ की मन्नत पूरी हुई. जल्दी ही उसके घर एक बेटे का जन्म हुआ. लेकिन जब संकल्प पूरा करने की बारी आयी तो उसके मन में लालच आ गया. उसे लगा सोने का घंटा चढ़ाना तो बहुत खर्चीला होगा क्यों न ताम्बे के घंटे को भेंट कर ही काम चला लिया जाये. उसने मनौती का संकल्प पूरा करने के लिए एक ताम्बे का घंटा बनवाया और उसमें सोने का पानी चढ़वा दिया.
ताम्बे का घंटा लेकर वह उसे देवी को समर्पित करने के लिए चल पड़ा. रास्ता लम्बा था तो उसने आराम करने की गरज से दुन्यास पहुंचकर घंटा जमीन पर रखा. जैसे ही वह लेटा थका होने की वजह से उसे झपकी आ गयी. तरोताजा होकर वह उठा और पुनः चलने को उद्धत हुआ. यह क्या घंटा उठाने की कोशिश की तो वह अपनी जगह से हिला ही नहीं. उसने बहुत कोशिश की मगर्घंते के वजन को उठा सकना उसे अपने बूते की बात नहीं लगी. सेठ ने इसे घंटे को देवी द्वारा अस्वीकार किया जाना समझा और घंटा उसी जगह पर छोड़कर वापस चला गया.
बताते हैं कि तभी से यह घंटा इसी जगह पर पड़ा है. सोने के मंदिर के नाम पर उसकी जगह ताम्बे का छद्म मंदिर होने की ही वजह से इस स्थान पर बनाये गए मंदिर का नाम झूठे का मंदिर पड़ गया. इस मंदिर में किसी भी तरह की देवमूर्ति नहीं लगायी गयी है. न ही यहाँ किसी तरह का पूजा-पाठ ही किया जाता है.
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