प्रो. मृगेश पाण्डे

शुभ लाभ का तंत्र सूचना संचार क्रांति ‘इंडस्ट्री 4.0’

पिछले  पांच सौ सालों में विज्ञान और तकनीक ने दुनिया का चेहरा ही बदल कर रख दिया. खोज आविष्कार व नवप्रवर्तन से प्रकृतिदत्त संसाधनों का विदोहन हुआ. उत्पादन बेहिसाब बढ़ा. उसी के साथ आय, उपभोग, बचत और विनियोग भी. सुपर मल्टीप्लायर काम कर गया जिसकी वजह थी औद्योगिक क्रांति. जिसके पहले तीन चरणों में सबसे पहले आया भाप इंजन, जिसने स्थानों की दूरियां मिटा दीं.  माल असबाब की ढुलाई  सस्ती कर दी. दूसरे चरण में आया इनपुट-आउटपुट, यानि असेंबली लाइन और बड़े पैमाने पर उत्पादन. अर्थशास्त्र में इनपुट-आउटपुट रेश्यो और लागत -लाभ विश्लेषण किसी भी फर्म -फैक्ट्री -कारखाने -उद्योग के विकास का प्रबल आधार  होते हैं. तो मैक्रो विश्लेषण के अधीन देश के विकास की नीतियों के संयोजन में मौद्रिक  व राजकोषीय नीतियाँ अचूक मानी जाती हैं. इनसे आतंरिक स्थायित्व व वाह्य संतुलन की आदर्श स्थितियां प्राप्त हो सकने के सभी जतन किये जाते हैं.  (Industry 4.0 Article in Hindi)

समाजवादी देशों में नियोजन तथा पूंजीवादी देशों में आर्थिक विकास के मॉडल, सूक्ष्म व व्यापक  चरों, अचर व प्राचलों का गणितीय व सांख्यिकीय सम्मिश्रण बनते हैं. इनसे यह पता चलता है कि एक समय विशेष  में अर्थव्यवस्था लक्ष्य वृद्धि दर को प्राप्त करने के लिए कितना विनियोग चाहेगी. पर आर्थिक कारकों का यह ढांचा बहुत जटिल, संश्लिष्ट व मायावी है. एल्विन टॉफ्लर ने इनकी कहानी को अपने ग्रंथों, पावर शिफ्ट, रेवोलुशनरी वेल्थ, वार एंड एंटी वार, क्रिएटिंग ए न्यू सिविलाइज़ेशन, थर्ड वेव एवं फ्यूचर शॉक में तमाम अनार्थिक घटकों व सत्ता-हिंसा-अपराध के गठजोड़ के साथ पेश किया. वहीँ पीटर ड्रकर ने “लक्ष्यों द्वारा प्रबंधन” की महागाथा में प्रौद्योगिकी की तीव्र प्रगति और  गतिशील बाज़ार की ताकत का ताना बाना बुना.सूचना संचार और डाटा के महत्व को रेखांकित किया.

अचानक ही कुछ नयी परिस्थितियों का जन्म होता है. नये पात्र  प्रवेश करते हैं. ये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी आई सी टी) के विशेषज्ञ हैं जो कंप्यूटर आधारित स्वचालन से किसी भी बाजार में प्रतियोगिता करने के लिए दरवाजे खोल चुके हैं. इन्हें आप वी यू सी ए के नाम से जान पाएंगे. यानि अस्थिरता, अनिश्तितता, जटिलता और अस्पष्टता. यहाँ से आरम्भ होती है औद्योगिक क्रांन्ति की चौथी लहर जिसे नाम दिया गया है : इंडस्ट्री  4.0.

इंडस्ट्री 4.0 में अति आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आई सी टी) का उपयोग किया जाता है. इससे कंपनियां बाजार में प्रतियोगिता करने में समर्थ बनती है. भले ही अपूर्ण प्रतियोगिता हो, एकाधिकार, एकाधिकारात्मक, अल्पाधिकार या फिर गलाकाट प्रतिस्पर्धा. हमें यह मालूम है कि कंपनी अपने उत्पाद की बिक्री और मुनाफे के लिए हर हथकंडा अपनाती है. बाजार में अपना वर्चस्व और हिस्सा बढ़ाये रखने के लिए हर कूटनीति और दुरभिसंधि करने से नहीं चूकती .

परिस्थिति कैसी भी ही, चाहे स्वतंत्र व्यापार की नीति हो जहां उत्पादन के लिए उद्योगों को मुक्त खुला छोड़ दिया जाता रहा  है. इसके अंतर्गत वर्तमान समय में प्रचलित निजीकरण, उदारीकरण के प्रसंग भी सामने आते हैं. जहां बाजार शक्तियों के भरोसे ही सब कुछ है फिर भी मूल्य निर्धारण के दबाव हमेशा बने रहते हैं. फिर वैश्वीकरण के कारण  बढे  प्रतियोगिता के संकट भी हैं जिनका वरण -निवारण करने के लिए  कारोबारी छल -प्रपंच की मायावी दुनिया रचते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि देश के हित में कारोबारी माहौल को संरक्षण के अधीन रखा गया हो. प्रतिबंध लगें. कुछ वस्तु या मदों का उत्पादन व व्यापार नियंत्रित हो. कुछ देशों के साथ व्यापार सीमित मात्रा  में हो या किया ही न जाये. 

वाकई में दुनिया का कारोबारी माहौल आज उथलपुथल से भरा है. व्यापार के बहुप्रचारित सूत्र अपनी प्रतिष्ठा खो रहे हैं. जिस ग़ुरूर और ठसक के साथ वैश्वीकरण की  शुरुवात हुई उसकी चमक  धुंधला रही है. उदारीकरण के सिलसिले को स्वयं बड़े विकसित देशों ने हर्डल रेस की तरह रोकना शुरू कर दिया है. विकास की दौड़ में हर बार तब, जब कोई दूसरा देश उससे आगे बढ़ता दिख रहा हो. उसके हितों पर चोट पहुंचा रहा हो. तब-तब व्यापार की नीतियों में आयात व निर्यात के प्रशुल्क कभी बढ़े  तो कभी कम किये गए. सामरिक, कूटनीतिक व राजनीतिक कारक आर्थिक नीतियों पर हावी होते गए. विश्व व्यापार संगठन और अंकटाड जैसे संगठन कुछ बड़े देशों की तरफदारी की भूमिका का राग अलापते रहे. इन सबके बीच कई देशो का व्यापार घाटा ऋणात्मक रुझान दिखाता रहा. भुगतान संतुलन में संरचनात्मक असंतुलन आया. सुस्ती और मंदी का दौर गहराया. मुद्राकोष के आगे मदद की गुहार लगी. वह  शर्तों पर समस्या सुलझाने वाली संस्था है. भुगतान की अड़चनों को दूर करने के लिए वह एस. डी. आर देगा, ब्याज भी वसूलेगा और साथ ही आपकी आतंरिक विकास नीतियों पर कुछ पाबंदियां लगाएगा. कुछ शर्तें थोपेगा. विकास और व्यापार की हर अन्तर्राष्ट्रीय या प्रादेशिक संस्था की अपनी अपनी हेकड़ी है. जिसे सहयोग और  सहायता के मुलम्मे में मजबूत सैद्धांतिक आधार दिया गया है.

एक असंतुलन को सुलझाने  के चक्कर में घाटा खा रहे देश कई तरह के तनाव -दबाव -कसाव झेलते हैं.संस्थाओं व प्रभुत्व  जमा रहे देशों की  बनियागिरी की हर शर्त मानने को विवश होते रहे हैं. देश के या बहुराष्ट्रीय उपक्रम अपनी उत्पादन आय नीतियों में स्वतंत्र नहीं रह  पाते. वह बस एक ही राग अलापने को मजबूर हैं. “बंन्धन न  थे स्वीकार हमें, क्यों बांध लिया बेकार हमें. 

अचानक ही ये सारा सीन पलट जाता है. विज्ञान के तंत्र और प्रबंध के मंत्र की माया से ऐसी तकनीक का इंद्रजाल उपस्थित हो जाता है जहां ज्ञान की अधिष्ठात्री  सरस्वती  धन -धान्य, पूंजी -संपत्ति स्वरूपा महालक्ष्मी का वरण  कर रही हैं. इस प्रणाली को चलाने के लिए गैस -तेल -बिजली की ऊर्जा की जरुरत नहीं. इसके संचालन का श्रीगणेश होता  है, “डेटा” से. प्रासंगिक और अनुकूल ‘डेटा’ का लाभ उठाने के लिए ‘मशीन लर्निंग’ और ‘आर्टिफिशल इंटेलिजेंस’ का प्रयोग किया जाता है. यहाँ भी उत्पादन का पैमाना प्रतिफल के नियमों पर टिका हो ता है. कोशिश यही रहती है कि बढ़ते हुई प्रतिफल के अधीन ही उत्पादन हो. यह तब ही संभव है जब बेहतर और कारगर तकनीक पर आश्रित रहते हुए इनपुट यानि साधनों का अनुकूलतम उपयोग किया जाये. उत्पादन बढ़े अधिकतम स्तर तक. पर सामान्य रूप से ऐसा नहीं होता. प्रतिफल का स्थिर और गिरता नियम भी काम करता है. तेजी और मंदी चलती रहती है. इनसे विषम परिस्थितियां पैदा होती हैं. 

इंडस्ट्री 4.0 यहीं पर अपना आभा मण्डल रचती है. इसमें  सम्मिलित होने वाली सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मुख्यतः साइबर – भौतिक प्रणाली (सी. पी. एस) के दिशानिर्देश पर चलती है. इनका उद्देश्य  सबसे पहले तो यह है कि यह उत्पादन या पूर्ति श्रृंखला को मूल्य की श्रृंखला में बदल दे. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी इसे भरोसे के काबिल बना जाती है.  इसे अपनाया जाता है. इनको उत्पादन या पूर्ति श्रृंखलाओं के विभिन्न चरणों में स्वीकार करते हुए उत्पादन की अनगिनत प्रक्रियाओं से संयोजित किया जाता है. इनकी चेन बनती है , ऐसी  लड़ियाँ, जो  सेवा क्षेत्र यानि सर्विस  सेक्टर से उत्पादन के औद्योगिक क्षेत्र को जोड़ते हुए अनुकूलतम उत्पादन और अधिकतम मुनाफे के नये प्रतिमान स्थापित कर देती  हैं.

सी. पी. एस अर्थात साइबर भौतिकी प्रणाली में आधुनिकतम सूचना एवं संचार तकनीक के यन्त्र व उपकरण होते हैं. जैसे कि क्लाउड कंप्यूटिंग, साइबर सिक्योरिटी, स्वायत्त या ऑटोनोमस रोबोटिक्स उद्यम विश्लेषण, हॉरिजॉन्टल एंड  वर्टीकल सिस्टम इंटीग्रेशन, ऑगमेंटेड रियलिटी या ए. आर, इंडस्ट्रियल इंटरनेट ऑफ थिंग्स या आई आई ओ टी सिमुलेशन, योज्य उत्पादन इत्यादि. इनसे बनती है स्मार्ट कारखाने की रुपरेखा जिनकी संरचना मोडूयलर है. यहाँ भौतिक दुनिया की आभासी प्रतिलिपि बनती है. विकेन्द्रित निर्णय लिए जाते हैं. मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स से परियोजना के लिए अनुकूल डाटा का  प्रयोग किया जाता है. डाटा से लाभ उठाते हुए आई सी टी के उपकरण उद्यमकर्ता को ग्रोथ टारगेट प्राप्त करने में अचूक समाधान प्रदान करता है.  इस प्रक्रिया में उत्पादन की प्रक्रिया और पैमाना मात्रात्मक और गुणात्मक दृष्टि से मजबूत हो जाता है. वस्तु और मदों की आपूर्ति श्रृंखला के आयोजन और निष्पादन में उत्पादन कुशल तरीके से होता है. समन्वित -स्वचालित -स्वायत्त व सहयोगी बना रहता है. साथ ही सारी प्रक्रिया तेज -लचीली -संवेदनशील बन जाती है. इस समूचे माहौल में उपक्रम संसाधनों का इष्टतम प्रयोग करता है. उसकी परिचालन दक्षता बढ़ती है. किसी भी प्रकार की अमितव्ययिता पकड़ में आ जाती है. 

इस सदी की शुरुवात में ही प्रबंध गुरु पीटर ड्रकर ने अपनी यह संकल्पना स्थापित कर दी थी कि संचार में सबसे महत्वपूर्ण चीज उस बात को सुनना है जो कही ही नहीं जाती. जिस काम को किया ही नहीं जाना चाहिए उसे अत्यंत दक्षता पूर्वक करने से बेहतर का मन ही नहीं हो सकता. फिर समय ही सबसे दुर्लभ संसाधन है और जब तक समय का समुचित प्रबंधन नहीं किया जाता, किसी अन्य चीज का भी प्रबंधन नहीं हो सकता. सूचना, संचार प्रौद्योगिकी को अपनी लपेट में लेने वाली औद्योगिक क्रांति की चौथी लहर :इंडस्ट्री 4.0 लक्ष्यों द्वारा प्रबंधन के इस सूत्र को व्यावहारिक व समर्थ बना गई है कि जहां भी आपको एक सफल व्यवसाय  दिखाई पड़ता है वहां कभी किसी ने साहसपूर्ण निर्णय लिया होगा. 

इंडस्ट्री 4.0 ऐसे  ही अप्रत्याशित अचीन्हे निर्णयों से भारी पड़ी है. अनुकूलतम उत्पादन करने में इसकी प्रणाली सफलता के झंडे गाड़ चुकी है तो बेहिसाब मुनाफा इसकी झोली में है. सूचना संचार प्रौद्योगिकी इंटरनेट और  विश्व व्यापी वैब से ही यह संभव हो पाया है कि फेसबुक विश्व की सबसे विशाल मीडिया कंपनी है पर हैरत की बात तो यह है वह इसके लिए कोई कंटेंट नहीं बनाता. ऐसे ही उबर सबसे बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी है पर उस के पास खुद की कोई कार नहीं है. फिर अलीबाबा सबसे बड़े और व्यापक रेंज में वस्तुओं की बिक्री करता है लेकिन उसका अपना कोई रिटेल आउटलेट या  स्टोर नहीं है. सब साइबर भौतिक प्रणाली (सीपीएस )की इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) से हुआ संयोजन है. यह एक दूजे के लिए क्लाइंट्स के साथ वास्तविक समय में संचार करती हैं, सहयोग करती हैं. इंडस्ट्री 4-0 की परिधि में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) सप्लाई श्रृंखला को मूल्य श्रृंखला में बदल देता है.

उत्पादन फलन अर्थात वस्तु के उत्पादन में लगे सभी इनपुट व प्राप्त आउटपुट के सिलसिले में विविध प्रक्रियाएं हैं. एक साधन को दूसरे से बाँधने वाले रेशे हैं जिनमें आई सी टी प्रवेश करती है तथा फर्म, कारखाने, फैक्ट्री या उद्योग अर्थात कुल मिला कर उपक्रम के लिए प्रतियोगी लाभ का कारक बना जाता है. उपक्रमों में आई सी टी के उपकरण से पूर्ति की कड़ियाँ नियोजन और क्रियान्वयन को पारदर्शी बनाती है. फीजेबल या दृश्य बनाती है. समूची उत्पादन व वितरण की क्रियाओं में लचीलापन लाती है. पूरी प्रक्रिया में क्लाइंट्स के बीच संवाद स्थापित करती है. समायोजन -अनुकूलन करती है और निर्णय लेना आसान बनाती है. स्पस्ट है कि यह न  केवल उपक्रमों के इंट्रानेट को बल्कि उस एक्सट्रानेट को भी  समाहित करती है जिसमें समूची प्रक्रिया में हर स्तर के सहभागी और आपूर्तिकर्ता शामिल  हैं.

इंडस्ट्री 4.0 की काया में सबसे प्रभावशाली है बहुत ही एडवांस्ड और स्वायत्त रोबोट जो वास्तविक समय में मानव के साथ सहयोग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें लगा है इलेक्ट्रॉनिक सॉफ्टवेयर, इंटीग्रेटेड सेंसर एक्टुएटर और स्टैण्डर्ड इंटरफ़ेस. यह इंटरनेट से कनेक्ट हो वास्तविक समय में अन्य उपकरणों के साथ मनुष्यों से संवाद स्थापित करने में समर्थ है. यहीं से व्यवसाय में इसके प्रयोग की कहानी रची जाती है जिसके लिए चाहिए डेटा, सांख्यिकीय विधियां, मात्रात्मक विधियां तथा पूर्वानुमानित मॉडलिंग या प्रारूप. पिछले स्तर पर या पहले उत्पादन क्या था? बिक्री कितनी थी? लाभ क्या रहा? आय कितनी हुई?  डेटा या समंकों से वर्तमान जानकारी मिलती है. अब सांख्यिकीय तकनीक व मात्रात्मक विश्लेषण से भविष्य के पूर्वानुमान तय किये जायेंगे. उपभोक्ता के व्यवहार को समझने के लिए रिटेल विक्रेता के रुख को देखना होगा. उपभोक्ता की पसंद उसकी रूचि,आय, वस्तु  की कीमत, उसके प्रतिमान को ध्यान में रख वस्तु की बिक्री के पैटर्न को समझना होगा. यह सब  भविष्य में मांग का पूर्वानुमान करने के लिए जरुरी हैं. इससे यह तय किया जायेगा कि कल यानि भविष्य में कितना उत्पादन हो. कितनी कीमत वसूली जाए. मुनाफा बढ़ाने को लागत कैसे कम हो? उपभोक्ता को रिझाये रखने के लिए क्या कुछ कितना किया जाये. कितने विज्ञापन कितनी छूट? मायाजाल फैलता जाता है जिसका एक ही मकसद है अधिकतम मुनाफा. यही निजी व कॉर्पोरेट सेक्टर का ब्रह्म सूत्र है. वहीँ सरकार कल्याणकारी राज्य के मानकों को अमलीजामा पहनाने के जतन करती है. अब भले ही विकसित देश हों या विकासशील, आय व उत्पादन की विषमताएं बढ़ती ही जाती हैं. कीमतें बढ़ती -घटती है. बेरोजगारी फैलती है. संसाधनों के विनिष्ट होने बर्बाद होने की दशाएं सामने आतीं हैं. तो दूसरी तरफ व्यापार संतुलन गड़बड़ाता है. भुगतान संतुलन में संरचनात्मक असमायोजन पैदा होता है. इन सबका खामियाजा भुगतता है नागरिक यानि उपभोक्ता.

यदि उपभोक्ता के व्यवहार, उसकी रूचि पसंद प्रतिमान के साथ उपभोग व बचत की प्रवृति को समझ लिया जाए तो उत्पादन और आय की नीतियाँ बनाना सरल हो जाता है. उपक्रम का स्वरुप कैसा  ही हो, निजी-कॉर्पोरेट-सरकारी. सब उपभोक्ता के रुझान उसकी जरूरतों को समझ बेहतर सेवा प्रदान कर सकते हैं. इंडस्ट्रियल इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आई आई ओ टी) इंटरनेट तकनीक से सभी औद्योगिक युक्ति, उपकरण या मशीन के साथ इनका प्रयोग करने वाले व्यक्तियों के बीच अन्तर्सम्बन्ध बनाये रखता है. विनिर्माण से जुडे सभी आतंरिक और वाह्य स्टेकहोल्डर, भागीदारों  के बीच संवाद, सहयोग व संचार बनता है. प्रत्युत्तर प्राप्त  होते हैं. व्यावसायिक निर्णय लिए जाने संभव होते हैं. अब प्रारूप या मॉडल के ऐसे उपकरणों को समझना होगा जिनसे इस जटिल प्रणाली की संभावनाओं का पता लगाया जा सके.  मॉडलिंग के यह उपकरण अनुकरण या सिमुलेशन के तरीके हैं. अनुकरण से भौतिक प्रक्रिया के डिजिटल जुड़वां या ट्विन्स पैदा होते हैं. जो उत्पादन की विस्तृत सूची, इन्वेंटरी, विनिर्माण के भौतिक पक्ष हैं. डाटा की समय पर प्राप्ति के साथ  यन्त्र उपकरण और उत्पादन की प्रक्रियाओं के साथ इनका आपसी अन्तर्सम्बन्ध निर्णय लेना आसान बनाती है. कार्य की गति बढाती है. बेहतर निर्णय लेना संभव करती है. 

अब आता है क्लाउड कंप्यूटिंग, जो यूटिलिटी कंप्यूटिंग का एक रूप है. इसके अधीन ग्राहक या क्लाइंट की आवश्यकता के आधार पर शुल्क ले कर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, स्टोरेज और प्लेटफॉर्म प्रदान किया जाता है. यह एक सेवा मॉडल है जिसमे इंटरनेट ब्राउज़र के माध्यम से क्लाउड आधारित ऍप्लिकेशन्स तक पहुंचा जा सकता है. क्लाउड हरित तकनीक है जो उपक्रमों को विशाल सर्वर, स्थान व आधारभूत ढांचे खड़े करने के झंझट से मुक्त कर देती है. स्पष्ट है कि क्लाउड कंप्यूटिंग से उद्योग की  लागतों को काफ़ी कम किया जा सकता है. साथ ही डाटा को दूरस्थ स्थान पर रखा जा सकता है. सर्वर फार्म तथा डाटा सेंटर की उपयोग से क्लाउड को सप्लीमेंट या पूरित किया जा सकता है जहां आभासीकरण से समस्त डाटा व ऍप्लिकेशन्स को स्टोर व शेयर किया जा सकता है. साथ ही ऑन डिमांड एक्सेस भी संभव होती है. डाटा अत्यधिक मूल्यवान होते हैं इसलिए इनकी सुरक्षा भी जरुरी होती है. 

इंडस्ट्री 4.0 के पूरक के रूप में नवीन क्रांतिकारी प्रौद्योगिकी का समन्वय एस एम ए सी के स्वरुप में होता दिख रहा है अर्थात यह सोसियल-मोबाइल-एनालिटिक्स व क्लाउड स्टेक को समाहित करता है. एंटरप्राइज कंप्यूटिंग में इसे अगली लहर  के रूप में देखा जा रहा है. इसमें शामिल प्रौद्योगिकी एक दूसरे की पूरक हैं. आपस में मिल कर यह पूर्ति श्रृंखलाओं को मूल्य श्रृंखलाओं में परिवर्तित करने में गुणक प्रभाव उत्पन्न कर देती है. 

इंडस्ट्री 4.0 की तकनीक उपक्रमों की दशा व दिशा को बदलने में इतनी प्रभावशाली बनीं कि इसे औद्योगिक क्रांति की चौथी लहर का नाम दिया गया. इससे देश के उपभोक्ताओं की जरूरतों को बेहतर तरीके से जाना जा सकता है. तभी उन्हें बेहतर सेवा दे पाना भी संभव बनेगा. यह कई  आवश्यक प्रासंगिक व तात्कालिक समस्याओं के समाधान में समर्थ है. उदाहरण के लिए नागरिकों की बुनियादी जरूरतों का स्पष्ट अनुमान लगाना जिससे तेजी या मंदी की दशा में उन्हें होनी वाली हानि से बचाया जा सके. ऐसे ही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का मूल्यांकन जिसकी कमियों को दूर कर नागरिकों को और अधिक फायदे दिये जा सकें.

बैंक और वित्तीय संस्थानों में हो रही धोखाधड़ी का पता लगाना और रोक के प्रभावी उपाय करना. हर स्तर के उद्योग और उपक्रमों में लागत को न्यूनतम करते हुए उत्पादन को अधिकतम करना. पैमाने की मितव्ययिताओं को अनुकूलता की ओर ले जाना. उत्पादन और आय से जुड़ी असमानताओं को न्यूनतम करना. तमाम विसंगतियों को दूर करना जैसे वृद्धि लक्ष्य इंडस्ट्री 4.0 की नयी औद्योगिक लहर से संभव हैं. कारोबार और व्यवसाय में शुभ लाभ का श्री गणेश निस्संदेह इस प्राविधि ने कर दिखाया है और भविष्य की संभावनाएं विज्ञान के तर्कसंगत आधार व कंप्यूटर के व्यापक अनुप्रयोग से इंद्रधनुष तो रचती ही हैं.

पितरों पुरखों के साथ आने वाले कल का इतिहास

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

21 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago