इन्द्रमणि बडोनी का जन्म टिहरी गढ़वाल जिले के अखोड़ी गांव (घनसाली) में 24 दिसम्बर 1924 को हुआ था. उनके पिताजी का नाम सुरेशानंद बडोनी और माँ का नाम कालू देवी था. यह एक बहुत ही गरीब परिवार था. पिता सुरेशानंद बहुत ही सरल व्यक्ति थे जो पुरोहित कार्य करते थे. दक्षिणा में ठीक-ठाक आर्थिक स्थिति वाले वाले यजमान ही उस समय के हिसाब से मात्र चव्वनी ही दे पाते थे. अन्न का उत्पादन भी कम था जौ और आलू ही ज्यादा मात्र में पैदा होते थे. ऐसी स्थिति में बड़े परिवार क़ी आवश्यकताओं क़ी पूर्ति हेतु उनके पिताजी साल में कुछ समय के लिए रोज़गार हेतु नैनीताल जाते थे.
(Indramani Bdoni Gandhi of Uttarakhand)
ऐसी पारिवारिक परिस्थितियों में इन्द्रमणि बडोनी ने कक्षा चार क़ी शिक्षा अपने गांव अखोड़ी से प्राप्त क़ी.और मिडिल (कक्षा 7) उन्होंने रोड धार से उत्तीर्ण क़ी उसके बाद वे आगे क़ी पढाई के लिए टिहरी मसूरी और देहरादून गए.
बचपन में उन्होंने अपने साथियों के साथ गाय, भैंस चराने का काम भी खूब किया. पिता क़ी जल्दी मृत्यु हो जाने के कारण घर क़ी जमेदारी आ गई. कुछ समय के लिए वे बम्बई भी गए. वहां से वापस आकर बकरियां और भैंस पालकर परिवार चलाया. बहुत मेहनत से अपने दोनों छोटे भाइयों महीधर प्रसाद और मेधनि धर को उच्च शिक्षा दिलाई.
आपने गांव से ही उन्होंने अपने सामाजिक जीवन को विस्तार देना आरम्भ किया, पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्होंने गांव में अपने साथियों क़ी मदद से कार्य किये. उन्होंने जगह-जगह स्कूल खोले. उनके द्वारा आरम्भ किये गए स्कूल आज खूब फल फूल रहे हैं. इनमें से कई विद्यालयों का प्रांतीयकरण एवं उच्चीकरण भी हो चुका है.
बडोनी की खेलों में भी रूचि थी. वह बॉलीबाल के अच्छे खिलाड़ी थे और गाँव के सभी नौजवानों के साथ बॉलीबाल खेलते थे. वह क्रिकेट मैच टीवी पर बड़े शौक से देखते थे.
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इन्द्रमणि बडोनी रंगमंच के बहुत ही उम्दा कलाकार थे. गांव में उन्होंने सांस्कृतिक कार्यकर्मो के साथ ही छोटी-छोटी टोलिया बनाकर स्वछता अभियान चलाये. अपनी बात को बहुत ही आसानी से संप्रेषित करने क़ी कला उनमें थी.
माधो सिंह भंडारी नाटिका का मंचन उन्होंने जगह-जगह किया. उनमें निर्देशन क़ी विधा कूट-कूट कर भरी थी. साथ ही उनका प्रबंधन और नियोज़न शानदार था उन्होंने अपने गांव अखोड़ी के साथ-साथ अन्य गांव में भी रामलीला का मंचन कराया.
टिहरी प्रदर्शनी मैदान में आयोजित कार्यक्रमों में बडोनी द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ विभिन प्रकार के स्टाल भी लगवाए गए. उनके साहित्य, संगीत, सामाजिक जागरूकता से जुड़े इन कार्यक्रमों का विस्तार बहुत व्यापक रहा. रंगमंच क़ी टीम, नृत्य नाटिका, सांस्कृतिक गतिविधियों से प्राप्त धनराशी को विद्यालयों क़ी मूल जरूरतों एवं मान्यता आदि पर खर्च किया गया.
इन्द्रमणि बडोनी गीत भी लिखते थे और हारमोनियम और तबला भी बजाते थे. उनका हारमोनियम आज भी उनके घर अखोड़ी में सुरक्षित है. संगीत में उनके गुरू लाहौर से संगीत क़ी शिक्षा प्राप्त जबर सिंह नेगी (हडियाना हिन्दोव टेहरी). जबर सिंह नेगी अखोड़ी में एक माह रहे और अन्य लोगों को भी संगीत क़ी शिक्षा दी. दिल्ली में गणतंत्र दिवस में एक पड़ाव वह भी आया जब उन्होंने 1956 में लोकल कलाकारों के साथ दिल्ली में गणतंत्र दिवस से पहले तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरु जी के सामने केदार नृत्य प्रस्तुत किया. इस नृत्य को सरो, चवरा आदि नामों से भी जाना जाता है.
इन्द्रमणि बडोनी 1956 में जखोली विकास खंड के पहले ब्लॉक प्रमुख बने. इससे पहले वह गांव के प्रधान थे. 1967 निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर विजयी होकर देवप्रयाग विधानसभा सीट से उत्तरप्रदेश विधानसभा के सदस्य बने.
(Indramani Bdoni Gandhi of Uttarakhand)
1969 में अखिल भारतीय कांग्रेस के चुनाव चिन्ह दो बैलों क़ी जोड़ी से वह दूसरी बार इसी सीट से विजयी हुए. तब प्रचार में “बैल देश कु बडू भारी किसान, जोंका कंधो माँ च देश क़ी आन” ये पंक्तियां गाते थे. 1974 में वह ओल्ड कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में गोविन्द प्रसाद गैरोला जी से चुनाव हार गए. 1977 में एक बार फिर निर्दलीय के रूप में जीतकर तीसरी बार देवप्रयाग सीट से विधान सभा में पहुंचे. 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए पर वह चुनाव नहीं लड़े. 1989 में ब्रह्मदत्त जी के साथ सांसद का चुनाव वह हार गए थे.
1979 से ही इन्द्रमणि बडोनी उत्तराखंड अलग राज्य निर्माण के लिए सक्रिय हो गए थे. वह पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे. समय-समय पर वह पृथक राज्य के लिए अलख जागते रहे. 1994 में पौड़ी में उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया गया. सरकार द्वारा साम-दाम के बाद दंड क़ी नीति अपनाते हुए उन्हें मुजफरनगर जेल में डाल दिया गया. उसके बाद 2 सितम्बर और 2 अक्टूबर का काला इतिहास सभी जानते हैं.
उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान कई मोड़ आये. इस पूरे आन्दोलन में इन्द्रमणि बडोनी केंद्रीय भूमिका में रहे. इस आन्दोलन में उनके करिश्माई नेतृत्व, सहज सरल व्यक्तित्व, अटूट लगन, निस्वार्थ भावना और लोगों से जुड़ने क़ी गज़ब क्षमता के कारण ही बीबीसी और वाशिंगटन पोस्ट ने उन्हें पर्वतीय गाँधी क़ी संज्ञा दी.
9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड राज्य भारतवर्ष के नक़्शे पर अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया. लेकिन पहाड़ी जन मानस क़ी पीड़ा को समझने वाला जन नायक, इस आन्दोलन का ध्वजवाहक, महान संत, उत्तराखंड राज्य का सपना आंखों में संजोये इससे पहले ही 18 अगस्त 1999 को अपने निवास बिट्ठल आश्रम ऋषिकेश में चिर निंद्रा में सो गया.
(Indramani Bdoni Gandhi of Uttarakhand)
–गिरीश बडोनी
यह पोस्ट इन्द्रमणि बडोनी स्मृति मंच , उत्तराखंड फेसबुक पेज से साभार ली गयी है
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