28 नवंबर 2001, पवित्र रमज़ान का महीना, सोपोर, कश्मीर. सर्दियों का मौसम अपने यौवन पर. मेरे मुस्लिम साथी सैनिक रोजे पर थे. धनाढ्य लोग अपने वातानुकूलित घरों में और आम जनमानस सर्दी से बचने के लिए अपने नीड़ में. (Indian Army Stories)
उस वक़्त एक सैनिक अपनी तैनाती को, देश के प्रति अपने कर्तव्य को अंजाम दे रहा था और अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा था. मेरी यूनिट कश्मीर के सबसे ज्यादा आतंकवाद ग्रसित क्षेत्र सोपोर में तैनात. शाम के चार बज चुके थे. सूर्य अपनी आज की यात्रा पूरी कर अस्तांचल की ओर बढ़ रहा था.
‘जय हिन्द’ से अपने वरिष्ठ इश्तियाक अहमद खान साहब को अभिवादन किया. प्रत्युत्तर ‘जय हिन्द’ और प्रश्न कि अवकाश पर कब जा रहे हो जोशी? ‘श्रीमान 15 दिसंबर के बाद.’
एकाएक ‘स्टैंड टू’ का अलार्म बजा. धनुष हाथ में और छै बाणों से भरे हुए तरकश छाती से चिपकाए हम भी अपनी जगह तैनात हो गए. तीस जवानों का नेतृत्व खान साहब के हाथ में था, मुझे भी साथ जाना था.
‘आप रुको जोशी, आप कार्यालय जाओ, हम टू आई सी साहब को बोल देते है.’
‘ठीक श्रीमान पर आप रोजा तोड़ लो मेरे पास, इफ्तार का समय हो रहा.’
‘नहीं, आप तैयारी करके रखो, मै एक घंटे में वापस आता हूं और कार्यालय में आपके पास ही रोजा तोडूंगा.’
15 मिनट गुजरे ही थे कि एक सिपाही/ ड्राइवर मोहन सिंह बिष्ट वापस यूनिट में आ गया, एक हाथ गोलियों से छलनी था. तुरंत उसको अस्पताल ले गए और उपचार किया. मोहन सिंह बिष्ट ने कहा कि ‘खान साहब और आठ जवान शहीद हो गए’ तो सहसा विश्वास न हुआ, पर होनी को कौन टाल सकता है.
याद आने लगा 16 अप्रैल 2001 को वारपोरा, सोपोर, कश्मीर का वह सैन्य अभियान जहां खान साहब ने अकेले दो उग्रवादियों को छाती के बायीं तरफ गोलियां लगने के बावजूद मार गिराया था. इसके बाद 92 बेस अस्पताल में उनकी जान बचाने के लिए हम साथियों का खून चढ़ाया पड़ा. वे मजाक में कहते थे ‘अब मैं मुसलमान रहा ही नहीं’ इस सैन्य अभियान में भी उन्होंने एक उग्रवादी को मार गिराया और ओट में होने के बावजूद अपने आठ वीर जवानों के साथ साथियों को बचाते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया.
मै इंतजार कर रहा कि खान साहब आएंगे और रोजा तोड़ेंगे. खान साहब आए पर साथियों के कन्धों पर, देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर.
दो बार वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाले और वीरता की मिसाल कायम करने वाले इश्तियाक अहमद खान वीरों की भूमि राजस्थान से थे. वे केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान के रिश्तेदार थे.
खान साहब के आखिरी शब्द थे ‘जोशी आप तैयारी करो. मैं रोजा आपके पास ही तोड़ूंगा.’ खान साहब का इंतज़ार आज भी है, पर उनका आना मुमकिन नहीं.
-महेश जोशी “व्यथित”
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