इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2017 में 8 लाख 2 हज़ार बच्चों की मौत हुई लेकिन यह आंकड़ा पांच वर्ष में सबसे कम है.
शिशु मृत्यु दर के मामले में भारत में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है. शिशु मृत्यु दर पर संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट भारत के लिए अच्छी ख़बर लेकर आई. 2017 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का आंकड़ा पहली बार एक मीलियन यानी 10 लाख से कम रहा.
शिशु मृत्यु दर अनुमान पर संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी (यूएनआईजीएमई) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में यह दावा किया है. यूएनआईजीएमई की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2017 में 6,05,000 नवजात शिशुओं की मौत दर्ज की गई, जबकि पांच से 14 साल आयु वर्ग के 1,52,000 बच्चों की मृत्यु हुई. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल भारत में करीब 8,02,000 बच्चों की मौत दर्ज की गई.
इससे पहले तक भारत की दर पूरी दुनिया के मुकाबले कहीं ज़्यादा थी. 1990 में भारत की शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 129 थी. 2005 में ये घटकर 58 हो गई, जबकि 2017 में ये प्रति 1000 पर 39 रह गई है. 1990 में दुनिया के 18% बच्चे भारत में पैदा हुए थे, लेकिन मरे 27%. बच्चे थे.
पहले 10% ज़्यादा लड़कियां मरती थीं, लेकिन 2017 में लड़कों के मुकाबले सिर्फ़ 2.5% ज़्यादा लड़कियों की मौत हुई. अभी तक सर्वें में यह बात सामने आई है कि मां 12वीं पास है तो बच्चे की मौत की आशंका 2.7 गुना तक कम हो जाती है.
2017 के दौरान भारत में लड़कों की मृत्यु दर प्रति 1,000 बच्चे पर 39 थी, जबकि लड़कियों में यह प्रति 1,000 बच्चियों पर 40 थी. वहीं पाकिस्तान में लड़कों की मृत्यु दर प्रति 1,000 बच्चे पर 78 थी, जबकि लड़कियों में यह प्रति 1,000 बच्चियों पर 71 थी.
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में शिशु मृत्यु के सर्वाधिक आंकड़े भारत के हैं, इसके बाद नाइजीरिया का नंबर है. शिशु मृत्यु दर 2016 में 8.67 लाख के मुकाबले कम होकर 2017 में 8.02 लाख हो गई. 2016 में भारत में शिशु मृत्यु दर 44 शिशु प्रति 1,000 थी.
यदि लैंगिक आधार पर शिशु मृत्यु दर की बात करें, तो 2017 में लड़कों में यह प्रति 1,000 बच्चे पर 30 थी, जबकि लड़कियों में यह प्रति 1,000 बच्चियों पर 40 थी.
भारत में औसतन हर दो मिनट में तीन नवजातों की मौत हो जाती है. इसका कारण पानी, स्वच्छता, उचित पोषाहार या बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है.
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