कला साहित्य

स्व. बी डी पाण्डे की आत्मकथा ‘इन द सर्विस ऑफ़ फ्री इंडिया’

पुस्तक के परिचय में रत्ना एम. सुदर्शन लिखती हैं- यह किताब उन लोगों को आश्चर्यचकित करेगी जो मेरे पिता को जानते थे. आई.सी.एस. अधिकारी रहे और ‘पद्म-विभूषण’ से सम्मानित स्व. बी डी पाण्डे की पिछले साल सितम्बर में ‘इन द सर्विस ऑफ़ फ्री इंडिया’ शीर्षक से एक रोचक किताब छप कर आई. ‘स्पीकिंग टाइगर’ (नई दिल्ली) द्वारा प्रकाशित इस किताब को स्व. बी डी पाण्डे ने लिखा है.
(IN THE SERVICE OF FREE INDIA)

1938 में इंडियन सिविल सर्विस (आई.सी.एस.) में चुने गए बी डी पाण्डे इस कठिन परीक्षा को पास करने वाले उत्तराखंड के पहले व्यक्ति थे. उन्होंने शुरूआती करीब एक दशक अंग्रेजों के शासन वाले भारत में और स्वतंत्र भारत में बाद के तीन दशकों तक (1947 से 1977) एक लोक-सेवक के तौर पर सरकार के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.

लोक सेवा में सर्वोच्च कैबिनेट सचिव के पद से सेवानिवृत्ति के बाद 1981 से 1984 के मध्य वे पश्चिम बंगाल और पंजाब के राज्यपाल रहे. जून 1984 में, ‘ऑपरेशन ब्लू-स्टार’ की घटना के कुछ दिन बाद, उन्होंने पंजाब के राज्यपाल के पद से त्यागपत्र दे दिया और अल्मोड़ा आ गए और जीवनपर्यंत अपने पुराने पैत्रक घर में रहे.

बी डी पाण्डे के देहांत के बारह साल बाद उनके आत्म-संस्मरणों का किताब के रूप में सामने आना आश्चर्यजनक ही लगा. अक्सर लोग उन्हें अपने संस्मरणों पर किताब लिखने का सुझाव देते. खासकर कैबिनेट सेक्रेटरी के तौर पर देश में आपातकाल तथा पंजाब की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानने की जिज्ञासा बहुतों के मन में रहती थी. पाण्डेजी यह तर्क देकर टाल दिया करते कि साइंस के विद्यार्थी होने के कारण वे अच्छा साहित्य नहीं लिख सकते.

बी डी पाण्डे ने अपने संस्मरणों को दो डायरियों में लिखा. उन दोनों में स्पष्ट निर्देश भी चस्पा कर दिये कि उनकी मृत्यु के पांच बरस तक या 1 जनवरी 2001 तक, इनमें से जो भी बाद में हो, उन डायरियों को नहीं पढ़ा जाय. उनके निर्देश का पालन हुआ बल्कि किताब प्रकाशित होने में सात साल और ज्यादा व्यतीत हो गए.
(IN THE SERVICE OF FREE INDIA)

किताब की शुरुआत 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि के दिन की. डायरी में सबसे ऊपर लिखा “ॐ नमः शिवाय”. वर्षान्त तक अपने बचपन से लेकर पंजाब के राज्यपाल पद से त्यागपत्र देने के बाद अल्मोड़ा आकर बसने तक की सारी स्मृतियाँ लिख चुके थे. जैसा कि उन्होंने शुरू में ही लिखा है उनके द्वारा लिखे गए ये संस्मरण उनकी आत्म-कथा नहीं है. तीन सौ बीस पृष्ठों की इस किताब में चौदह अध्याय और तीन परिशिष्ट हैं. इनमें पहले अध्याय अपने परिवार, बचपन, शिक्षा के बारे में बताया है. आगे के अध्यायों में क्रमशः कैंब्रिज और सिविल सर्विस परीक्षा, आई.सी.एस. अधिकारी के तौर पर बिहार राज्य के अनुभव, केन्द्र सरकार में उप-सचिव से लेकर कैबिनेट सचिव तक विभिन्न पदों तथा विभागों में काम के दौरान अनुभव, पश्चिम बंगाल और पंजाब में राज्यपाल रहने के दौरान घटित घटनाओं का तथ्यपूर्ण वर्णन है. इनमें सबसे ज्यादा, किताब का एक-तिहाई भाग केवल पंजाब के बारे में लिखा है. उनके बचपन की स्मृतियों में पिछली सदी के शुरूआती दशकों के अल्मोड़ा नगर, आम लोगों की जीवन-शैली, शिक्षा-व्यवस्था इत्यादि की अच्छी झलक मिलती है.

ऐसे ही 1930 के दशक में इंग्लैंड में व्यतीत किये समय के बारे में लिखे गए संस्मरणों से तत्कालीन इंग्लैंड और यूरोप को जानने-समझने का मौका मिलता है. आई.सी.एस. अफसरों का जीवन कैसा होता था इस रोचक प्रश्न का तथ्यपूर्ण और रोचक जवाब बी डी पाण्डे के चार दशकों के करियर (जो गया के सहायक-मजिस्ट्रेट के तौर पर शुरू किया) में घटित अनगिनत छोटी-बड़ी घटनाओं के रोचक वर्णन को पढ़ कर होता है. अंग्रेज़ी हुकूमत के अंतिम दौर में बिहार राज्य के शासन और समाज के बारे में विस्तृत जानकारी भी इस किताब में है.

किताब में जो तीन परिशिष्ट जोड़े गए हैं वे आख़िरी दस पन्नों में हैं. पहला, जो 1994 में लिखा है, पुराने घर की लाइब्रेरी में मिले पुराने अभिलेखों पर आधारित है. इसमें वर्णन है कि कैसे उनके पूर्वज 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में चम्पावत से अल्मोड़ा आकर चम्पानौला मोहल्ले में बसे. जापान और अमेरिका की यात्रा करने के कारण अल्मोड़ा के एक उच्च-ब्राह्मण युवक भोलानाथ पांडे को अपनी बिरादरी का भीषण विरोध और बहिष्कार झेलना पड़ा तथा किस तरह प्रायश्चित व शुद्धिकरण करना पड़ा यह किस्सा भी अत्यन्त रोचक है. दूसरे परिशिष्ट में उत्तराखण्ड सेवा निधि नामक स्वैच्छिक संस्था से अपने जुड़ाव के बारे में लिखा है.

अंतिम परिशिष्ट में पाण्डेजी अपने व्यक्तिगत जीवन और संयुक्त परिवार में आये परिवर्तन और उतार-चढ़ावों को तटस्थ तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता भाव से देखते और स्वीकार करते प्रतीत होते हैं. डायरी में लिखे संस्मरणों को किताब के रूप में प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी स्व. बी डी पाण्डे की पुत्री रत्ना एम. सुदर्शन ने उठाई और बहुत खूबी के साथ पूरा किया. पुस्तक के कवर पेज और भीतर प्रकाशित छायाचित्र बहुत आकर्षक होने के साथ-साथ लेखक की जीवन-यात्रा के विभिन्न महत्वपूर्ण पड़ावों से पाठक का परिचय कराते हैं. 

सितम्बर 2021 में किताब प्रकाशित होने के बाद से ‘द ट्रिब्यून’, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ सहित कई अंग्रेजी अखबारों में इसकी चर्चा हुई. मार्च 2022 में नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इस किताब पर चर्चा के लिये एक वेबिनार का भी आयोजन हुआ था. किताब क्योंकि अंग्रेजी भाषा में लिखी गयी है इसलिये हिन्दी समाचार पत्र/पत्रिकाओं तथा हिन्दी-भाषा पढ़ने वाले वर्ग में इस किताब की चर्चा बहुत कम देखने-सुनने को मिली है.
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पुस्तक कि यह समीक्षा अल्मोड़ा के रहने वाले कमल जोशी द्वारा लिखी गयी है. स्व. बी डी पाण्डे की आत्मकथा ‘इन द सर्विस ऑफ़ फ्री इंडिया’ यहां से खरीदें: इन द सर्विस ऑफ़ फ्री इंडिया

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