राजुला मालूशाही की प्रेम कथा (Love Story Rajula Malushahi) उत्तराखण्ड की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रेम कथा है. पन्द्रहवीं शताब्दी की यह प्रेम कथा आज भी लोकगीतों, लोकनाटकों और लोकगाथाओं में देखी, सुनी, कही जाती है. कत्यूर राजवंश के राजकुमार मालूशाही और शौका वंश की सुंदरी राजुला की इस प्रेम कहानी के दो दर्जन से ज्यादा संस्करण उत्तराखण्ड के विभिन्न अंचलों में प्रचलित हैं. प्रस्तुत है इनमें से एक –
मकर संक्रांति के मौके पर पंचचूली पर्वतमाला के आगोश में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर हिमालयी घाटी के संपन्न शौका व्यापारी सुनपति शौका अपनी पत्नी गांगुली शौक्याणी के साथ बागेश्वर के बागनाथ मंदिर के दर्शनार्थ आते हैं. उन दिनों भोट प्रदेश के हूणों के साथ उनका ख़ासा व्यापार चला करता था. सुनपति का व्यापार फल-फूल रहा था. वे अकूत धनसम्पदा के स्वामी थे मगर निसंतान होने का ग़म इस सब पर भारी था. दोनों दंपत्ति स्वभाव से धार्मिक भी थे अतः दोनों संतानप्राप्ति की मनोकामना से ही भगवान बाघनाथ के द्वार पर बागेश्वर के बाघनाथ धाम आये थे.
संयोगवश इसी समय बैराठ नगर के राजा दुलाशाही भी रानी धर्म देवी के साथ बाघनाथ मन्दिर पहुंचे थे. यश भी संयोग था कि दुलाशाही व धर्म देवी भी वैभवसंपन्न निःसंतान दंपत्ति थे. वे भी संतान प्राप्ति के मनोकामना लेकर बाघनाथ पहुंचे थे. दोनों दम्पत्तियो की एक ही कथा-व्यथा थी और उन्होंने बागनाथ से एक ही मनोकामना चाही. यहीं पर दोनों संतान सुख के लिए लालायित दम्पत्तियों का पहला परिचय भी हुआ.
एक ही दुःख के सहभागी होने पर दोनों परिवारों के बीच अगाध प्रेम पनपा. बाघनाथ में ही दोनों ने तय किया यदि एक को पुत्र व दूसरे को पुत्री जन्मेगी तो वे उन दोनों का आपस में विवाह कर देंगे. समय का पहिया घूमा तो बागनाथ के कृपा से दोनों महिलाऐं गर्भवती हुईं और राजा दुलाशाही के घर में पुत्र जन्मा. जिसका नाम मालूशाही रखा गया. उधर सुनपति शौका को कन्या के पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. कन्या का नाम राजुला रखा गया. समय बीतता है और दोनों बच्चे जवान होने लगते हैं. जवानी की दहलीज पर पहुँचते ही मालूशाही एक आकर्षक नौजवान में और राजुला अत्यंत रूपवती कन्या में तब्दील हो गए.
दोनों के सपनों में हर रात एक-दूसरे का दिखाई देना रोज की बात हो जाती है. एक दिन अचानक राजुला ने अपनी मां से पूछती है—
मां दिशाओं में कौन सी दिशा प्यारी है?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा है?
गंगाओं में कौन गंगा है?
देवों में कौन देव है?
राजाओं में कौन राजा?
और देशों में कौन देश?
माँ जवाब देती है–
दिशाओं में सबसे प्यारी पूर्व दिशा जो हमारी धरती को प्रकाशमान करती है.
पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा है क्योंकि उसमें देवों का वास होता है.
गंगाओं में भागीरथी है जो सबके पाप धो डालती है.
देवों में देव हैं महादेव हैं.
राजाओं में राजा हैं मालूशाही.
और देशों में देश है रंगीला बैराठ.
मां के उत्तर सुनकर राजुला मुस्कुराते हुए आग्रह करती है कि मां मुझे बैराठ ही ब्याहना. एक दिन राजुला को भनक लगती है कि उसके पिता व्यापार के सिलसिले में बैराठ की ओर ही निकल रहे हैं तो वह पिता के साथ चलने का आग्रह करती है. मां के अनुरोध पर पिता राजुला को साथ ले चलने को मान जाते हैं. इस बार राजुला के पिता व्यापार के सिलसिले में उत्तरैणी पर्व पर भगवान बाघनाथ की नगरी बागेश्वर के बाघनाथ पहुँचते हैं. साथ में है राजुला. यहाँ नियति के विधान से राजुला की मालूशाही के बारे में जानकारी मिलती है कि मालूशाही रोज सुबह देवी के दर्शन के लिए जाते हैं. राजुला के मन में उनसे मिलने की लालसा और बढ़ जाती है. एक दिन अपने पिता सुनपति शौका से बचकर राजुला भी देवी के मंदिर पहुंच गयी, काफी समय इंतजार करने के बाद मालूशाही भी रोज की तरह मंदिर पहुंचे तो दोनों की मुलाकात होती है.
इस मुलाकात के बाद मालूशाही राजुला से वादा करते हैं कि वह एक दिन उसे ब्याहने के लिए दारमा आएंगे. मालूशाही अपने प्रेम के निशानी के रूप में मोतियों की माला राजुला के गले में पहना देते हैं.
अब दोनों का प्रेम परवान चढ़ता है. राजुला के पिता सुनपति को जब इस बात की खबर लगती है तो वह बहुत नाराज होते हैं. वे राजुला से पूछते हैं कि उसके गले में यह मोतियों का जो हार है यह किसका दिया हुआ है. राजुला संतोषजनक जवाब नहीं दे पाती. नाराज सुनपति अपना व्यापार बीच में ही बंद कर दारमा वापस लौट आते हैं.
यहाँ आकर वे राजुला का विवाह राजुला से दुगुनी उम्र के तिब्बत के हूण राजा ऋषिपाल के साथ तय कर देते हैं. यहाँ बेटी के प्रेम प्रसंग के बारे में मां को भी पता चलता है. उसे भी यह सुनकर काफी दुःख होता है. इसी बीच मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और सपने में भी राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याहकर अपने साथ दारमा ले जाऊंगा.
ठीक उसी रात यही सपना राजुला ने भी देखा. अब राजुला ने बैराठ देश जाने का निश्चय किया. उसने अपनी मां से रास्ता पूछा लेकिन मां उसके इस निर्णय से असमंजस की स्थिति में थी.
दृढ़संकल्पित राजुला रात को चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर अपने बैराठ के लिए निकल पड़ी. मुनस्यारी, बागेश्वर के रास्ते से वह बैराठ पहुंचकर मालूशाही से मिलती है. उसके इस तरह अचानक इस हाल में इतनी दूर चले आने से मालूशाही अचंभित हो जाते हैं. यहाँ वह राहुल को पुनः आश्वासन देते हैं कि वह जल्द ही दारमा आकर उसे ब्याह ले जायेंगे. राजुला हीरे की अंगुठी मालूशाही को पहनाकर वापस आ जाती है. आने से पहले वह मालूशाही से कहती है कि यदि तुमने मां धर्म देवी का दूध पिया है और तुम्हारे खून में तुम्हारे पिता दुलाशाही खून बह रहा है तो तुम मुझसे विवाह करने दारमा जरूर आना.
मालूशाही ने परेशान होकर अपना राजसी मुकुट व कपड़े नदी में बहा दिये और गोरखनाथ की शरण में पहुँच गये. गुरू गोरखनाथ धूनी रमाये बैठे थे. मालूशाही ने गोरखनाथ से उनसे राजुला से मिलवा देने का आग्रह किया. गुरु गोरखनाथ ने उनसे वापस जाकर राजपाठ संभालने को कहा लेकिन मालूशाही अपनी जिद पर अड़े रहे.
यह देखकर गोरखनाथ दया के वशीभूत भक्त की सहायता के लिए तैयार हो जाते हैं. फिर गोरखनाथ ने मालूशाही को दीक्षा दी और बोक्साड़ी विद्या सिखाई. उन्होंने मालूशाही को वे तंत्र-मंत्र भी सिखाये जिससे वह हूण और शौका देश के विष से बच सके. गोरखनाथ का आशीर्वाद लेकर मालूशाही राजपाट छोडक़र साधू के वेश में कत्यूरी सेना के साथ शौका देश पहुँच जाते हैं. यहाँ दोनों प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे को पहचान लेते हैं. सुनपति शौका को मालूशाही के साधु के वेश में पहुँचने का पता चल जाता है. वह मालूशाही और उसके साथियों को मार देने की योजना बना चुका होता है.
सुनपति शौका ने अपने सेवकों को मेहमानों के लिए हलवा-पूरी, खीर आदि पकवान बनाने का आदेश देता है. जहर बुझी खीर खाने से मालूशाही और उसके संगी-साथी बेहोश हो जाते हैं. योगी-सिद्ध गोरखनाथ को अपनी सिद्धि से उनकी इस हालत की जानकारी मिल जाती है. वे अपने मन्त्रों से ही मालूशाही और उसके साथियों को ठीक कर देते हैं. चेतन होते ही मालूशाही गोरखनाथ की मंत्रणा से कत्यूरी सेना के साथ सुनपति और हूण सेना पर हमला बोल देता है. इस युद्ध में मालूशाही को जीत मिलती है.
अपनी हार के बाद सुनपति लज्जित होकर राजुला का विवाह मालूशाही से करने को तैयार हो जाते हैं.
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