परम्परा

इगास बग्वाल के दिन भैला खेलने का विशिष्ट रिवाज है

इगास बग्वाल के दिन भैला खेलने का विशिष्ठ रिवाज है. यह चीड़ की लीसायुक्त लकड़ी से बनाया जाता है. यह लकड़ी बहुत ज्वलनशील होती है. इसे दली या छिल्ला कहा जाता है. जहां चीड़ के जंगल न हों वहां लोग देवदार, भीमल या हींसर की लकड़ी आदि से भी भैलो बनाते हैं. इन लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ रस्सी अथवा जंगली बेलों से बांधा जाता है. फिर इसे जला कर घुमाते हैं. इसे ही भैला खेलना कहा जाता है.
(Igas Festival Uttarakhand 2022)

परम्परानुसार बग्वाल से कई दिन पहले गांव के लोग लकड़ी की दली, छिला, लेने ढोल-बाजों के साथ जंगल जाते हैं. जंगल से दली, छिल्ला, सुरमाड़ी, मालू अथवा दूसरी बेलें, जो कि भैलो को बांधने के काम आती है, इन सभी चीजों को गांव के पंचायती चौक में एकत्र करते हैं.

सुरमाड़ी, मालू की बेलां अथवा बाबला, स्येलू से बनी रस्सियों से दली और छिलो को बांध कर भैला बनाया जाता है. जनसमूह सार्वजनिक स्थान या पास के समतल खेतों में एकत्रित होकर ढोल-दमाऊं के साथ नाचते और भैला खेलते हैं. भैलो खेलते हुए अनेक मुद्राएं बनाई जाती हैं, नृत्य किया जाता है और तरह-तरह के करतब दिखाये जाते हैं. इसे भैलो नृत्य कहा जाता है.

भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परम्परा भी है. यह सिर्फ हास्य विनोद के लिए किया जाता है. जैसे अगल-बगल या सामने के गांव वालों को रावण की सेना और खुद को राम की सेना मानते हुए चुटकियां ली जाती हैं, कई मनोरंजक तुक बंदियां की जाती हैं. जैसे- फलां गौं वाला रावण की सेना, हम छना राम की सेना. निकटवर्ती गांवों के लोगों को गीतों के माध्यम से छेड़ा जाता है. नए-नए त्वरित गीत तैयार होते हैं.
(Igas Festival Uttarakhand 2022)

सुख करी भैलो, धर्म को द्वारी, भैलो
धर्म की खोली, भैलो जै-जस करी
सूना का संगाड़ भैलो, रूपा को द्वार दे भैलो
खरक दे गौड़ी-भैंस्यों को, भैलो, खोड़ दे बाखर्यों को, भैलो
हर्रों-तर्यों करी, भैलो.
भैलो रे भैलो, खेला रे भैलो
बग्वाल की राति खेला भैलो
बग्वाल की राति लछमी को बास
जगमग भैलो की हर जगा सुवास
स्वाला पकोड़ों की हुई च रस्याल
सबकु ऐन इनी रंगमती बग्वाल
नाच रे नाचा खेला रे भैलो
अगनी की पूजा, मन करा उजालो
भैलो रे भैलो.

इस अवसर पर कई प्रकार की लोककलाओं की प्रस्तुतियां भी होती हैं. क्षेत्रों और गांवों के अनुसार इसमें विविधता होती है. सामान्य रूप से लोकनृत्य, मंडाण, चांचड़ी-थड़्या लगाते, गीत गाते, दीप जलाते और आतिशबाजी करते हैं. कई क्षे़त्रों में उत्सव स्थल पर कद्दू, काखड़ी मुंगरी को एकत्र करने की परम्परा भी है. फिर एक व्यक्ति पर भीम अवतरित होता है. वो इसे ग्रहण करता है. कुछ क्षेत्रों में बग्ड्वाल-पाण्डव नृत्य की लघु प्रस्तुतियां भी आयोजित होती हैं.
(Igas Festival Uttarakhand 2022)

नंद किशोर हटवाल की फेसबुक वाल से साभार.

नंद किशोर हटवाल उत्तराखंड के सुपरिचित कवि, लेखक, कलाकार व इतिहासकार हैं. उन्हें उत्तराखंड की लोक कलाओं के विशेषज्ञ के तौर पर भी जाना जाता है.

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इगास पर्व पर पूरा लेख यहां पढ़ें- इगास बग्वाल : दीवाली के ग्यारह दिन बाद गढ़वाल में मनाई जाने वाली दीपावली

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