फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
उत्तराखंड के संगीत की बात हुड़के बिना अधूरी है. देवी-देवताओं के जागर हों या उत्सव हुड़का पहाड़ का मुख्य वाद्य हुआ. कुमाऊं के पूज्य देवता गंगानाथ की जागर में तो केवल हुड़का ही बजाया जाता है. पहाड़ों में लगने वाली 3 से 5 दिन की जागरों में हुड़का ही बजता है.
(Hudka Traditional Musical Instrument Uttarakhand)
हुड़का लकड़ी के एक खोखले भाग के दोनों सिरों पर बकरे के आमाशय की झिल्ली से बने पूड़े से मढ़कर बनाया जाता है. दोनों पूड़े डोर से कसे होते हैं. हुड़के लकड़ी वाला भाग नाली कहलाता है.
ऐसा माना जाता है कि खिन की लकड़ी से बना हुड़का सबसे शानदार गमकता है. अच्छे हुड़के की गमक विषय में पहाड़ एक कहावत कही जाती है जिसका मतलब है कि ऐसा हुड़का जिसकी नाली खिन की लकड़ी की बनी हो और दाई ओर लगी पुड़ी हो बंदर के शरीर से बनी और बांयी पुड़ी बनी हो लंगूर के शरीर से. ऐसे हुड़के पर जब जगरिये के हाथ की थाप पड़ती है तो इलाके के जितने भी डंगरिये हैं बिना निमंत्रण के नाचने लगते हैं.
(Hudka Traditional Musical Instrument Uttarakhand)
खिनौक हो हुडुक
देण पुड़ हो बानरौक
बौं पुड़ हो लंगूरौक्
जभत कै तौ हुड़क बाजौल्
उ इलाकाक् डंडरी बिन न्यूतियै नाचण लागाल्
लोक में कही जाने वाली यह बात अतिशयोक्ति पूर्ण लगती है क्योंकि बन्दर या लंगूर की पुड़ी बनाने के लिये उन्हें मारना पड़ेगा जो की पाप माना जाता है. हां खिन की लकड़ी से बने हुड़के की गमक की बात सोलह आने सच मानी जानी चाहिये.
(Hudka Traditional Musical Instrument Uttarakhand)
हुडके के विषय में अधिक जानकारी इस पोस्ट में पढ़ें –
हुड़का: उत्तराखण्ड का प्रमुख ताल वाद्य
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