पहाड़ों में असल होली की शुरुआत एकादशी से ही होती है. दशमी और एकादशी के जोड़ के दिन गांव-गांव में चीर बांधने की परम्परा है. पहाड़ों में पैय्या की एक टहनी पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं इसे चीर बांधना कहा जाता है. इस चीर को पकड़कर गांव के प्रत्येक परिवार के आंगन में ले जाया जाता है. माना जाता है कि यह चीर बंधन की परम्परा बृज की होली से पहाड़ों में आई है.
(Holi Ekadashi Traditional Kumaoni Holi)
चीर बंधन की परम्परा के दौरान गाई जाने वाली होली में केवल पुरुष होल्यार ही भाग लेते हैं. चीर बंधन के दिन ही रंग डालना भी शुरु होता है. चीर बंधन के बाद सबसे पहले गणपति गणेश की होली गाये आने की परम्परा है. गणपति गणेश की होली में सभी के मंगल की कामना की जाती है.
एकादशी के दिन से पहाड़ में होली अपने पूरे रंग के साथ खेली जाती है. एकदशी के दिन सबसे पहले रंग पड़ने के कारण इसे रंग-भरी एकादशी कहा जाता है. पहाड़ों के गावों में आज के दिन से अपने-अपने गांव की परम्परानुसार तय स्थान से होली घर-घर जाना शुरु होती है. कहीं यह मंदिर से शुरु होती है तो कहीं गांव के किसी पुराने सम्मानित परिवार के घर से.
(Holi Ekadashi Traditional Kumaoni Holi)
रंग-भरी एकादशी के दिन से ही सभी गांव वाले मिलकर गाजे-बाजे के साथ घर-घर जाकर होली गाते हैं. गांव की हर बाखली में जाकर तन्मयता के साथ होली गायी जाती है. रंग-भरी एकादशी के दिन गाई जाने वाली पहली होली इस तरह है-
सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन, होली खेलें गिरजापति नंदन
-प्रोफेसर मृगेश पाण्डे के लेख से
गोरी को नंदन मूसा को वाहन , होली खेलें गिरजाओ
ला हो भवानी अक्षत चन्दन, होली खेलें.
तुम सिदि करो महाराज होलिन के दिन में
तुम विघ्न हरो महाराज होलिन के दिन में
गणपति गौरि गणेश मनाऊँ
इन सबको पूजूँ आज होलिन के दिन में.
कैल बाँधी चीर हो रघुनन्दन राजा
सिदि को दाता गणपति बाँधी.
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