कहने को तो कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है पर हकीकत में नाम में बहुत कुछ रखा होता है. कम से कम पहाड़ में रखे जाने वाले नाम के लिये तो कहा जा सकता है कि किसी भी जगह का नाम यूं ही नहीं होता. पहाड़ में ऐसे अनेक स्थान हैं जिनका नाम उस क्षेत्र विशेष किसी न किसी प्रकार की विशेषता जरूर बताते हैं.
(History of Mussoorie)
मसलन देहरादून के करीब स्थित मसूरी को ही ले लिया जाए. मसूरी, उत्तराखंड स्थित पहला हिल स्टेशन हैं जिसपर अंग्रेजों की नजर पड़ी. शिमला के बाद मसूरी दूसरा हिल स्टेशन था जिसकी आबोहवा को अंग्रेजों ने अपने रहने के लिये मुफीद पाया. अंग्रेजों के आने से पहले मसूरी, मन्सूरी नाम से जाना जाता था.
यह कहा जाता है कि इस क्षेत्र के आस-पास बहुत ज्यादा मसूर उगा करती थी. बहुतायत में होने वाली मसूर दाल के चलते स्थानीय लोग इसे मन्सूरी कहा करते. 1825 में कैप्टन यंग के कदम इसी मन्सूरी में पड़े थे. अंग्रेजों ने इसका नाम मन्सूरी से मसूरी कर दिया.
(History of Mussoorie)
वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में मसूरी की स्पेलिंग लिखी जाती है तो इसे Mussoorie लिखा जाता है. मन्सूरी से मसूरी बने इस हिल स्टेशन की स्पेलिंग Mussoorie होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. अंग्रेजी भाषा में एक लम्बे समय तक इसकी स्पेलिंग Masuri लिखी गयी जिस वजह से इसका नाम मन्सूरी से मसूरी हो गया.
Mussoorie स्पेलिंग के पीछे एक विज्ञापन पत्रक ‘द मसूरी एक्सचेंज एडवर्टाइजर’ का हाथ है. दरसल सबसे पहले मसूरी के लिये इस स्पेलिंग का उपयोग इस विज्ञापन पत्रक द्वारा किया गया. इसके द्वारा 1870 में THE MUSSOORIE EXCHANGE ADVERTISER नाम से यह पहली बार स्पेलिंग बदली गयी. इसके बाद से हमेशा के लिये मसूरी के लिये Mussoorie ही लिखा जाने लगा.
(History of Mussoorie)
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