Featured

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का इतिहास

1900 के दशक की शुरुआत में ई. आर. स्टीवंस और ई. ए. स्माइथिस के राष्ट्रीय उद्यान, भारत में स्थापित करने के सुझाव का नतीजा रहा कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क एशिया के पहले राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अस्तित्व में आया. (History of Jim Corbett National Park)

भारत में, उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की स्थापना ब्रिटिश राज के दौरान वर्ष 1936 में की गई थी. शुरुआत में इसका नाम उस दौर के संयुक्त राष्ट्र गवर्नर विलियम मैल्कम हैली के नाम पर, हैली नेशनल पार्क रखा गया था.

323 वर्ग किलोमीटर के इस इलाके में शिकार करना प्रतिबंधित कर दिया गया तथा लकड़ी आदि भी घरेलू उपयोग के घरेलू उद्देश्य से ही इकठ्ठा की जा सकती थी.

स्वतंत्रता के बाद हेली नेशनल पार्क का नाम बदलकर रामगंगा नेशनल पार्क रख दिया गया.

1956 में महान प्रकृतिवादी, वन्यजीव प्रेमी तथा संरक्षणवादी जिम कॉर्बेट की याद में इस पार्क को जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के रूप में परिवर्तित किया गया.

एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई 1975 को उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ. जिम कॉर्बेट एक एंग्लो-इंडियन शिकारी, ट्रैकर, फोटोग्राफर, प्रकृतिवादी और लेखक थे.

उन्होंने कुमाऊं गढ़वाल के गांवों में लोगों पर हमला करने वाले कई आदमखोर बाघों तथा तेंदुओं का शिकार किया.

1907 में उन्होंने अपना पहला शिकार किया. 1907 से 1938 के बीच उन्होंने कुल 33 नरभक्षी जानवरों का शिकार किया. कहा जाता है कि कॉर्बेट ने कुल 19 आदमखोर बाघों तथा 14 तेंदुओं की खोज कर उन्हें गोली मारी.

आदमखोरों का शिकार करने के साथ-साथ जिम कॉर्बेट उनके शरीर तथा स्वभाव का भी अध्ययन करते थे. इसी तरह एक आदमखोर बाघिन का शिकार करते हुए उन्होंने पाया कि उसे पहले भी कई गोलियां मारी गई थी जिसके निशान उसके शरीर पर साफ नजर आते हैं.  इस घटना के बाद कॉर्बेट ने समझा कि यूं ही यह जानवर नरभक्षी नहीं बनते.

कॉर्बेट ने समझा कि इंसानों को इन जानवरों से बचाने से अधिक आवश्यक है इन जानवरों को इंसानों से बचाना और इसके बाद कॉर्बेट बाघों को बचाने के अभियान में जुट गए.

जिम कॉर्बेट ने कुल 6 किताबें लिखी जिसमें सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त पुस्तक हैं- मैन ईटर आफ कुमाऊँ (1944) तथा द मैन ईटिंग लेपर्ड ऑफ रुद्रप्रयाग (1948).

अपनी किताबों में उन्होंने भारतीय जंगलों में अपने अनुभव और वन्यजीवों के साथ मुठभेड़ का वर्णन किया.

कॉर्बेट नेशनल पार्क का भूगोल

521 वर्ग किलोमीटर में फैला यह कॉर्बेट नेशनल पार्क हिमालय की तलहटी में स्थित है. मुख्य तौर पर यह पार्क दो जिलों में फैला हुआ है 332.86 वर्ग किलोमीटर पौड़ी गढ़वाल में तथा 208.14 वर्ग किलोमीटर नैनीताल जिले में. रामगंगा, सोन, मंडल, पलैन तथा कोसी यहां बहने वाली मुख्य नदियां है.

कॉर्बेट नेशनल पार्क की स्थापना का मुख्य उद्देश्य

वन जीवन तथा लुप्तप्राय बंगाल बाघों व अन्य जंगली पशु-पक्षियों की रक्षा करना तथा इसके साथ-साथ पर्यावरण का भी संरक्षण करना.

आज के समय में पार्क में बंगाल-बाग, काकड़, एशियाईएशिया, सांभर, स्लॉथ बीयर, हॉग हिरन जैसे कई जानवर मौजूद है.

साथ ही पेड़- पौधों, जड़ी- बूटियां की 600 से अधिक प्रजातियां विद्यमान है, जिसमें साल, सैर और शीशम सर्वाधिक हैं.

कॉर्बेट नेशनल पार्क सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखने के साथ-साथ अपने प्राकृतिक सौंदर्य , वनस्पति और जीव जंतुओं की विविधता के लिए प्रसिद्ध है. (History of Jim Corbett National Park)

रामनगर की रहने वाली वेणु वृंदा जी. बी. पंत यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर में कम्युनिटी साइंस की छात्रा हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago