इन दिनों स्याल्दे कौतिक के चलते द्वाराहाट खूब खबरों में हैं. स्याल्दे कौतिक इस इलाके का बड़ा कौतिक है जिसमें कई पट्टी के लोग आज भी आते हैं. स्याल्दे कौतिक के विषय में लम्बी पोस्ट यहाँ पढ़िये : स्याल्दे-बिखौती का मेला
(History of Dwarahat Uttarakhand)
द्वाराहाट 5031 फीट ऊँचा है. कत्यूरी राजा टूटने के बाद द्वाराहाट के वंश की राजधानी रहा. द्वाराहाट का नगर और बाज़ार बेहद पुराना है. बद्रीदत्त पांडे अपनी किताब ‘कुमाऊं का इतिहास’ में लिखते हैं कि यहां अब तक पुराने साहू और सुनारों की दुकानें मौजूद हैं. यहां के लोग सब चतुर और सभी होते हैं.
द्वाराहाट के विषय में कहा जाता है कि देवता द्वाराहाट में द्वापर नगरी बनाने चाहते थे. जब देवताओं ने द्वारिका नगरी बानने के लिये द्वाराहाट की नगरी को चुना गया तो यहां पानी की समस्या मिली. देवताओं ने इसका भी समाधान निकाला.
देवताओं ने तय किया कि द्वाराहाट में रामगंगा और कोसी नदी आकर मिलेंगी. देवताओं ने दोनों नदियों को द्वाराहाट में आकर मिलने की आज्ञा दी. इस बात की खबर गगास नदी को रामगंगा नदी को दी जानी थी. गगास ने रामगंगा नदी को खबर देने के लिये गिवाड़ में छानागांव के पास सेमल के पेड़ को कहा.
(History of Dwarahat Uttarakhand)
छानागांव के पास सेमल के पेड़ ने रामगंगा को ख़बर देने की जिम्मेदारी ले ली. कहते हैं कि जब रामगंगा सेमल के पेड़ के पास पहुंची तो सेमल के पेड़ को नींद आई थी. सो सेमल का पेड़ ने गगास का संदेशा रामगंगा से न कह सका.
जब सेमल के पेड़ की नींद खुली तो रामगंगा वहां से निकल चुकी थी. सेमल के पेड़ ने लगाई रामगंगा के पीछे दौड़ पर रामगंगा तो पहुंच चुकी थी तल्ले गेवाड़. सेमल ने तल्ला गेवाड़ में रामगंगा को गगास का संदेशा कहा. रामगंगा ने भी सेमल के पेड़ की बातें सुनी और कहा –
अब वापस लौटना तो उसके लिये संभव ही नहीं है. पहले मालूम होता तो भी एक बात थी.
इस तरह द्वाराहाट में द्वारिका न बन सकी. कुमाऊं में आज भी संदेश देर से देने वाले या सुस्ती करने वाले को सेमल का पेड़ कहा जाता है. बद्रीदत्त पांडे अपनी किताब ‘कुमाऊं का इतिहास’ में द्वाराहाट के द्वारिका नगरी न बनने के पीछे एक अन्य किस्से का जिक्र करते हैं. बद्रीदत्त पांडे की किताब ‘कुमाऊं का इतिहास’ के अनुसार देरी कोसी नदी की ओर से हुई. बद्रीदत्त पांडे देरी की वजह के विषय में लिखते हैं कि कोसी को संदेश देने वाला दही खाने में देर कर गया.
(History of Dwarahat Uttarakhand)
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