Featured

भगवान शिव के विषय में मजाक-छेड़छाड़ भरा गीत

‘बोल गोरी बोल, तेरा कौन पिया…’ गीत, फिल्म मिलन (1967) का एक पॉपुलर गीत है, जो सुनील दत्त और जमुना पर फिल्माया गया. इस गीत को सुनील दत्त और जमुना पर, जमीदार और उसकी पुत्री राधा (नूतन) की स्टेज-उपस्थिति में फिल्माया गया है. प्रथम दृष्टया गीत के बोलों से स्पष्ट हो जाता है कि, यह कोई चुहल-नोकझोंक भरा गीत है. गीत रोमानी सा लगता है. गीत है भी चुहल का, लेकिन यह किसी और के साथ नहीं, भगवान शिव के विषय में मजाक-छेड़छाड़ भरा गीत है.

गीत के बोल हैं–

“बोल गोरी बोल, तेरा कौन पिया,
कौन है वो, तूने जिसे प्यार किया,
कौन है, सारे जग से निराला,
कोई निशानी बतलाओ बाला.”

वह संकेत जताते हुए गाती है,

“उसकी निशानी, वो भोला- भाला,
उसके गले में सर्पों की माला…”

इन विशिष्ट संकेतों से स्पष्ट हो जाता है कि, वह किसी और की नहीं, मात्र भगवान शिव की आराधना करती है. इस पर नायक, उसके आराध्य देव का मजाक उड़ाते हुए कहता है,

“घोड़ा ना हाथी, करे बैल सवारी…”

वह नाराज होने के स्थान पर, आराध्य की स्तुति में लंबा आलाप लेती है,

“कैलाश परवत का वो तो जोगी…” .

नायक फिर ठिठोली करते हुए गाता है, “अच्छा वही, दर-दर का भिखारी…”

(पौराणिक मान्यतानुसार, भगवान शिव का कोई स्थायी निवास नहीं था. ठेठ शब्दों में कहें, तो कोई ठीया-ठिकाना नहीं था. देवी की जिद के चलते, उन्होंने एक बार हिमालय पर अच्छा-खासा आवास बनाया, जो अवालांच (हिमस्खलन) की भेंट चढ़ गया. दूसरी बार उन्होंने बड़े मन से लंका बसाई. गृह- प्रवेश के वृत्ति-ब्राह्मण विश्रवा ऋषि के मन को भाँपकर, उन्होंने लंका याचक ब्राह्मण को ही दान में दे डाली. भगवान शिव को प्रगतिशील टाइप का ईश्वर माना जाता है. देव-दानव, मानव-यक्ष, गंधर्व-किन्नर- विद्याधर, भूत-प्रेत में वे किसी से कोई भेद नहीं रखते. समस्त सृष्टि को अपना मानते हैं. किसी भी बात पर प्रसन्न होकर, किसी को भी, तुरंत वरदान दे डालते हैं, इसीलिए आशुतोष कहलाते हैं, थोड़े में ही संतुष्ट हो जाने वाले. जी भर कर दे डालते हैं, इसलिए अवढ़रदानी कहलाते हैं.)

यह आनंद बक्शी का लिखा गीत है, जिन्हें आम बोलो के जरिए गहरे और मधुर गीत रचने में महारत हासिल थी. कहा तो यह भी जाता है कि, मुकेश की वापसी इसी फिल्म के गीतों के सहारे संभव हुई. हालाँकि फिल्म का ‘सावन का महीना पवन करे शोर…’ 1967 की बिनाका गीतमाला में वर्षभर शीर्ष पर बना रहा. यह गीत पार्श्व गायक मुकेश का पसंदीदा गीत बना रहा, जिसे वे आजीवन कॉसंर्ट्स में गाते रहे. फिल्म के गीत एक-से- बढ़कर एक थे:

‘हम तुम युग युग तक ये गीत मिलन के गाते रहेंगे…’ ‘मैं तो दीवाना, दीवाना.. दीवाना…’

फिल्म में बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए जमुना को, तो मधुर संगीत के लिए लक्ष्मी-प्यारे को फिल्मफेयर अवार्ड हासिल हुआ.

 

ललित मोहन रयाल

उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

2 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

6 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

6 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 week ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago