आज सुबह पहाड़ में लम्बी उम्र के आशीर्वचन कहे जायेंगे और घरों में पकवानों की सुंगध बिखरेगी. पिछले दिनों घर में जमाये हरेला को आज सुबह ईश्वर के सामने काटा जायेगा. परिवार की सबसे बड़ी महिला सभी को हरेले से पूजेंगी और खेतों की मेड़ पर डोबेंगी किसी पेड़ की टहनी. कहते हैं हरेले के दिन डोबी गयी हर टहनी एक पेड़ बन जाती है जो देती है आने वाली कई सारी पीढ़ियों को अपने लाभ.
(Harela Festival Uttarakhand 2022)
पिछले दिनों की नियमित गुड़ाई के बाद सभी पहाड़ी घरों में हरेला खूब फुला रहता है. हल्के पीले-हरे रंग की हरेले की पत्तियों को पहाड़ी आज अपने कान में रखते हैं. घर के बड़े अपने से छोटों को पाँव से सिर की तरफ हरेला लगाते हुए उसे आशीर्वचन देते हैं. उनके जीवन में हमेशा हरियाली की कामना करते हैं.
कान में रखे हरे-पीले पत्ते महज पत्ते नहीं यह किसी की ईजा का या किसी की आमा का या फिर किसी की बोजी के आशीर्वाद के पत्ते हैं जिसे पहाड़ी बड़े सान से अपने कान पर सजाते हैं.
(Harela Festival Uttarakhand 2022)
हरेला सावन महीने के 11, 10 या 9 दिन पहले बोया जाता है. जंगल से लाई चौड़ी पत्तियों के ऊपर साफ़ मिट्टी में सात या पांच अनाज को बोया जाता है. जहां पत्तियों की संख्या अपने इष्टदेव और परिवार के सदस्यों की संख्या पर निर्भर करती है वहीं बोये गये अनाज में काला अनाज नहीं बोया जाता है. सावन महीने की पहली तारीख के दिन हरेला काटा जाता है.
मैदानों में पूर्णिमा के बाद से ही सावन का महिना शुरु माना जाता है लेकिन पहाड़ों में हरेला काटने के दिन सावन के महीने की शुरुआत मानी जाती है. हिमालय में बर्फ होने तक, गंगा का पानी होने तक हरेला भेटने की कामना की जाती है. साल में तीन बार मनाये जाने वाले हरेला त्यौहार पर घर के बुजुर्ग कहते हैं –
लाग हरैला, लाग बग्वाली
(Harela Festival Uttarakhand 2022)
जी रया, जागि रया
अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया
स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जो
हिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक
यो दिन, यो मास भेटने रया
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