उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में बसा है (Guptkashi) गुप्तकाशी. यह क़स्बा केदारघाटी में मन्दाकिनी नदी के सुन्दर तट पर बसा है. कर्णप्रयाग, गौचर, रुद्रप्रयाग और अगस्त्यमुनि होते हुए गुप्तकाशी पहुंचा जाता है. यहाँ से केदारनाथ मात्र 45 किमी की दूरी पर है. यह केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है. गुप्तकाशी को गुह्यकाशी भी कहा जाता है. यहाँ शिव का प्रख्यात मंदिर (Shiv Temple) है. यह 3 प्रमुख काशियों में से एक है, उत्तरकाशी, काशी (वाराणसी) और गुप्तकाशी.
उत्तराखण्ड के ज्यादातर पहाड़ी कस्बों की तरह ही गुप्तकाशी भी एक धार्मिक महत्त्व का क़स्बा है. यहाँ के 2 मंदिर विशेष महत्त्व के हैं. पहला है विश्वनाथ मंदिर और दूसरा है शिव-पार्वती को ही समर्पित अर्धनारीश्वर मंदिर. गुप्तकाशी में एक कुंड भी मौजूद है. कुंड का नाम है –मणिकर्णिका कुंड. इस कुंड में श्रद्धालु स्नान किया करते हैं. माना जाता है कि मणिकर्णिका कुंड में गिरने वाली दो जलधाराओं को गंगा-यमुना क रूप में अभीहित किया जाता है. इसी कुंड के सामने है विश्वनाथ मंदिर और इसी से सता हुआ है अर्धनारीश्वर मंदिर.
कहा जाता है कि अर्धनारीश्वर मंदिर में वर्तमान में स्थापित देव प्रतिमाएँ नयी प्रतिष्ठित प्रतिमाएँ हैं. पुरानी प्रतिमाएँ कभी पूर्व में चोरी हो गयी थीं.
गुप्तकाशी के बारे में पौराणिक मान्यता यह है कि –महाभारत का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गए थे. इसका कारण पांडवों द्वारा सगोत्रीय भाइयों की हत्याएँ किया जाना था. पांडव भी इस पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. अतः वे भगवान शिव की तलाश में निकल पड़े. शिव की तलाश में पांडव काशी जा पहुंचे. शिव गोत्रहन्ताओं से नहीं मिलना चाहते थे इसलिए पांडवों से बचते हुए वे गुप्त रूप से काशी आकर रहने लगे.इसलिए भी इसे गुप्तकाशी कहा गया.
गुप्तकाशी में पांडवों के पहुँचने पर शिव ने उनसे बचने के लिए नंदी बैल का रूप धारण कर लिया. पांडवों ने गाय-बैलों के झुण्ड में भी बैल का भेष धरे शिव को पहचान लिया. भीम ने अपनी मजबूत भुजाओं से बैल का रूप धरे शिव को अपनी बाँहों में जकड़ने की कोशिश की. शिव पांडवों से बचने के लिए इसी जगह पर जमीन के भीतर घुस गये. यहाँ से भूमिगत हुए शिव के शरीर के विभिन्न हिस्से केदारनाथ, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर में आकर बाहर निकले. इन सभी जगहों को पंचकेदार नाम से जाना जाता है. यहाँ शिव के विभिन्न हिस्सों की पूजा की जाती है. इस स्थान पर शिव के गुप्त हो जाने के कारण भी इसे गुप्तकाशी कहा जाता है.
एक अन्य पौराणिक मान्यता यह भी है कि मन्दाकिनी व सोनगंगा नदी के संगम, त्रिजुगीनारायण, में विवाह के लिए भगवान शिव ने पार्वती को विवाह निवेदन गुप्तकाशी में ही दिया था.
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ऋषियों ने इसी जगह पर घनघोर तपस्या की थी. बैजनाथ का शिव मंदिर
पुराणों के अनुसार काशी एवं कांची (कांचीपुरम) को शिव की दो आंखें माना जाता है. छह अन्य काशियों को भी इन्हीं के समान पवित्र माना गया है. जो भक्त लम्बी दूरी की यात्रा कर या संसाधनों के अभाव में काशी जाने में अक्षम हैं वे किसी भी निकटस्थ काशी जाकर पूजा-अर्चना कर पुण्य के भागी बन सकते हैं. यह अन्य छह काशी हैं –उत्तर भारत के हिमालय उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी तथा गुप्तकाशी. दक्षिण भारत में दक्षिणकाशी. भुवनेश्वर, नासिक तथा हिमाचल प्रदेश के मंडी में स्थित काशी. इन काशियों की स्थापना इस तरह है कि किसी भी प्रदेश से यहाँ पर पहुंचना सुगम रहे.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…