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गर्वनर और डिप्टी को हम पहाड़ी लोग यूँ ही उँगलियों पर नचा लेते हैं

जो तेरा गवर्नर, वो मेरा डिप्टी होता है यादों में लगभग 30 – 32 साल पीछे लौट जाऐं तो बहुत सी स्मृतियाँ लौट आती हैं और कभी फुर्सत हो जाय तो लिखने का मन भी करता है. बचपन में हमारे घर में एक खास सदस्य होता था जिसका नाम गवर्नर था. (Governor is a common instrument in hill homes)

फोटो: दीप पाण्डे

यह इतना खास होता था कि जैसे घर के सदस्यों को एक दूसरे की जरूरत होती थी उतनी ही सबको, गवर्नर की भी जरूरत होती थी खासकर सर्दियों में या बरसात में. पहाड़ों में सर्दियों में लकड़ी जंगल से तथा लकड़ी के कोयले टाल से खरीद कर स्टाक कर रख लेते थे और साथ ही कुछ पत्थर के कोयले भी रख लेते थे जिन्हें टिगड़ी कहा जाता था. वैसे सर्दियों में ऐसा कई जगह होता होगा पर अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में शाम होते ही नजारा बदल जाता था. बाजार में जगह जगह जलती टिगड़ी की अंगीठियाँ तथा घरों, मौहल्लो में बाहर से टिगड़ी और लकड़ी के कोयलों से तैयार धुऐं से फुफकारती सी अंगीठी पहले बाहर ही रखी जाती थी. (Governor is a common instrument in hill homes)

फोटो: दीप पाण्डे

इन कोयलो की अंगीठी से निकलने वाला धुआँ पहले खूब काला और फिर सफेद होता था और तब धीरे धीरे धुएं के बाद लाल जलती अंगीठी होती थी. जब धुआँ बंद हो जाऐ तो समझ लो अंगीठी अंदर ले जाने को तैयार है. एक बार अंगीठी जलने लगे तो फिर काफी देर तक जलती ही रहती थी. हालाँकि एकदम बंद घरों में पत्थर के कोयलो से गैस लगने की कई दुर्घटनाऐं भी होती हैं. इससे निकलने वाली जहरीली कार्बन मोनोऑक्साइड गैस बेहोशी की स्थिति पैदा कर सकती है अतः इसको जलाते हुऐ एक आध खिड़की खुली रखनी चाहिए. इसकी अधिकता से कॉन्सेस लेवल कम होने से जान भी जा सकती है.

फोटो: दीप पाण्डे

खैर उस समय इसके नुकसान से ज्यादा खुद को गर्म रखने और इसकी आंच में रात का खाना बनाने और भट्ट (पहाड़ी सोयाबीन) भून कर खाने पर ही जोर रहता था. इसलिऐ इसको जलाने में एक महत्वपूर्ण काम गवर्नर का भी रहता था. इसका नाम गर्वनर कब से पड़ा होगा पर पापा कहते थे यह नाम अंग्रेजी हुकूमत के समय पर साधारण पहाड़ के लोगों को अंग्रेज सिपाही भी गर्वनर ही समझ आते थे तो उन्ही से चिढ़- चिढ़ कर रखा गया नाम था. नाम रखने के पीछे कोई ठोस तथ्य नही है बस जो सुना सुनाया कह दिया.

वैसे गवर्नर टीन का एक दो किलो वाला गोल डिब्बा होता है जिसका तला हटा कर खोखला कर देते हैं और वह अंगीठी के ऊपर रखा जाता है जिससे आग जलने और धुआँ नियंत्रित करने में आसानी रहती है. बस फिर गवर्नर की मदद से सारा धुआँ एकत्रित होकर ऊपर की ओर एक ही दिशा में उड़ जाता था और हवा भी पास करने से आग तेजी से पकड़ने लगती.

सर्दियों में घर के बाहर रखा गवर्नर चोरी भी हो जाता था हालाँकि दूसरे, तीसरे दिन चोर वहीं रख जाता था आखिर गवर्नर को चोरना इतना आसान थोड़ी होता है क्योकि शुरूआत तो उसकी बाहर रख कर ही होती है. और किसी की अंगीठी पर रखा गवर्नर पकड़ा जाय तो फिर आधे एक घंटे अंगीठी के जलने तक, गवर्नर का मालिक और वादी के बीच गरमा गरम बहस अंगीठी पर रखे गर्वनर का हौसला अफजाई कर आग सुलगाने में मदद करते. ये गवर्नर हर किसी के घर में रहता था.

फोटो: दीप पाण्डे

हमारी आमा को गवर्नर न दिखे तो समझ लो आज किसी कि खैर नही वाली हालत होती थी. आमा की आवाज – गर्वनर कहाँ गया, जल्दी गवर्नर लाओ रे तभी अंगीठी आग पकड़ेगी – जैसे शब्द अकसर सुनायी देते थे. यह भी होता था कि अगर अपना गवर्नर थोड़ी देर ना मिले तो पड़ोसी से उसका गवर्नर मांग लेते थे. और हमारी अंगीठी जलती देखते ही पड़ोसी तुरंत धमक जाता और अपना गवर्नर बड़े प्यार से वापस ले जा लेता था. जब कभी आमा से पूछते कि इसका नाम गवर्नर क्यों है? आमा कहती इसके बिना काम नही चलता है इसलिए इसका नाम गवर्नर है.

सच कहें तो हमको बहुत समय बाद पता चला कि वास्तव में गवर्नर किसे कहते हैं और गवर्नर बनना इतना आसान नही होता है. और वही गर्वनर हमारे घर में इधर उधर डोलता फिरता था. शादी और नौकरी लगने के बाद जब गढ़वाल के इलाके में आ गये तो एक महिला मित्र को एक दिन यूँ ही गवर्नर के विषय में बताने लगी तब सुनकर पहले तो वह खूब हँसी, फिर खुश होकर बोली “अरे ! तेरे वहाँ जो गवर्नर है वह हमारे यहाँ डिप्टी होता है समझी”.

फोटो: दीप पाण्डे

ओह इसका मतलब ये गर्वनर और डिप्टी को हम पहाड़ी लोग यूँ ही उँगलियों पर नचा लेते हैं. अब सोच रही हूँ कि किसी इलाके में ये मंत्री जी भी होते ही होंगे. आखिर गर्वनर, डिप्टी और मंत्री न बन पाने की भड़ास कुछ इस तरह से ही न निकाली जाय और मन को भी सुकून यह सोच कर कि ये तो अपने घर में यूँ ही पड़ा रहता है बनने या बनाने की क्या जरूरत भाई.

-नीलम पांडेय ‘नील’

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नीलम पांडेय ‘नील’

नीलम पांडेय ‘नील’ देहरादून में रहती हैं. काफल ट्री में प्रकाशित होने वाली यह उनकी पहली रचना है.

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