यात्रा पर्यटन

भयंकर बारिश के बीच गोरी नदी किनारे काली अंधेरी रात

सितम्बर में जाते मानसून के साथ हमने मिलम की दूसरी यात्रा शुरू की थी. जिस दिन हम पैदल चलना शुरू हुए उस दिन बारिश रुकी थी लेकिन उससे पहले दो तीन दिन काफी बारिश हुई थी. इस बार मैं गोविन्द से कोसिना का एसएलआर कैमरा मांग कर लाया था. मौसम अच्छा रहे तो अच्छी तस्वीरों की उम्मीद थी. इस बार की बारिश से मिलम की ओर बहुत से रास्ते टूटने की खबर आ रही थी. इस बार भी फ़कीर दा ही हमारे साथी थे.
(Gori Ganga in Milam Uttarakhand)

लीलम तक पंहुचने में हमें अधिक वक्त नहीं लगा. गाँव को पार कर हम लम्बे तिरछे रास्ते पर पंहुचे. मालछू के ऊंचे से झरने के पास भूगोल पूरा बदल चुका था. पिछली बार यहाँ पर सुन्दर झरना और उससे लगा आसान सा रास्ता था लेकिन इस बार इसके नीचे की पूरी जमीन बह कर नीचे गोरी गंगा में जा चुकी थी. सामने रास्ता पूरी तरह गायब था और झरने के पार एकदम खड़ी चट्टान को कुछ मजदूर कम्प्रेसर से काट रहे थे.

लीलम से आगे मालछू में झरने द्वारा टूटा रास्ता

हमने जैसे-तैसे इस भीषण खड़ी और फिसलन भरी चट्टान को पार किया और आगे बड़े. कुल मिलाकर इससे आगे का सफ़र अधिक मुश्किल न था और हम शोध सम्बन्धी कार्य करते हुए बहुत आराम से आगे बढ़ते रहे. हमें आज रडगाड़ी तक ही जाना था. इस बार रास्ते में अधिक मुसाफिर नहीं मिले और कोई सहयात्री भी नहीं था.

शाम को समय रहते हम रडगाड़ी पंहुच गए थे. यह बहुत ही अलौकिक किस्म की जगह है जहाँ पर एक ऊंची चट्टान की ओट में साईंपोलू के रंजीत ने रिंगाल का एक बहुत ही सुन्दर लौज बनाया था. इस ऊंची चट्टान की ढाल उलटी थी और इसके ओडयार के अन्दर रिंगाल का शानदार लौज. चट्टान के ऊपर से पानी टपकता जो इस रिंगाल की झोपड़ी के सामने गिरता. यहाँ पर बिना बरसात के बरसात का एहसास होता. इसके एक छोर में रसोई का कमरा बनाया गया था और उससे लगा एक कमरा जहाँ बेंच और मेजें डालकर डाइनिंग का कमरा. फिर रिंगाल की दीवार, रिंगाल की खिड़की दरवाजे और रिंगाल के ही बेड वाला यह आशियाना था जहाँ हम आज दूसरी बार रुक रहे थे.

पिछली बार हमें रंजीत ने बहुत प्रेम और सत्कार से यहाँ रखा था. इस बार उनके भाई प्रकाश ने बहुत गर्मजोशी वाला स्वागत किया. अमूमन यहाँ भीड़-भाड़ वाले दिनों में खाने में रोटियां नहीं बनती हैं, दिन हो या रात भात ही खाना पड़ता है लेकिन आज यहाँ केवल हम ही गेस्ट थे.

प्रकाश के साथ मदद के लिए एक और लड़का था. इस लौज के सामने एक लंबा सा मैदान है जिसमें नर्म घास रहती है. उसके नीचे उतर का गोरी का तेज प्रवाह ही है जो घनघोर गर्जन के साथ बहती रहती है. शाम को दो बार कड़क चाय पिलाने के बाद रात को प्रकाश ने बहुत ही स्वादिष्ट मशरूम की सब्जी खिलाई. इतनी अच्छे मशरूम मैंने उसके बाद कभी नहीं खाए. खाने के साथ घर की बनी उत्तम क्वालिटी की छांङ् ने मजा दुगुना कर दिया था.
(Gori Ganga in Milam Uttarakhand)

खाने के बाद कुछ देर गप-सप के बाद हम सो गए. गोरी का गर्जन और पहाड़ी से टपकता पानी तेज बारिश का भ्रम कर रहे थे. यह जगह बहुत घने जंगल से घिरी है जहाँ जानवरों से मुठभेड़ बहुत आम है. गुलदार और भालू अक्सर देखे जाते हैं. यह बहुत अँधेरी रात थी और पानी की आवाज के साथ बीच-बीच में कुछ जंगली जानवरों की आवाजें भी आ रही थी. आधी रात में बहुत तेज प्यास से नींद खुल गयी. बगल में बोतल टटोली तो वह खाली थी. शरीर और मन सोना चाहते थे लेकिन प्यास नींद पर हावी होने लगी. कमल दा की बोतल में भी पानी नहीं था. स्लीपिंग बैग किनारे किया तो अँधेरे में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. बाहर से पानी के टपकने की आवाज लगातार आ रही थी. टॉर्च की रौशनी डाली तो इस जगह की सुनसानी का एकसास हुआ.

फ़कीर दा बगल के बिस्तर में कम्बल ओढ़े निढाल पड़े थे. मैंने इस उम्मीद में स्लीपिंग बैग से बाहर कदम रखा कि प्रकाश ने खाने वाले कमरे में पानी रखा होगा. बहुत तेज ठण्ड में मैंने चप्पलों में पैर फंसाए और बगल के कमरे में दाखिल हुआ. बहुत तेज अँधेरा था. मैंने वहां रखे तीन जग टटोल लिए, कहीं पानी नहीं था. सामने बर्तनों में नजर डाली तो वह भी सब खाली थे. अब मेरे पास बहार जाकर इस लौज के एक किनारे पर लगाए हुए नल तक जाने के अलावा कोई उपाय नहीं था. लेकिन ऐसा करने में डर भी लग रहा था. इस अँधेरे में पता नहीं बाहर भालू ही छिपा हो, कहते हैं वह मीलों दूर से खाने को सूंघ सकता है. यहाँ तो खाने की बहुत चीजें थी. खैर में डरते डरते बाहर निकला. एक आवाज ने मेरी धड़कन अटका दी.

ऐसा लगा सामने रास्ते के पार किसी के क़दमों की आवाज आई. इत्तेफाक से टोर्च ऑन ही थी और मैंने उस आवाज की तरफ रोशनी डाली. कोई शाया सा वहां से झाड़ियों के अँधेरे में खो गया. शायद कोई घुरड़ था. अब मैं बाहर आ ही गया था और डर भी गया ही था तो प्यासा क्या लौटता. पास के एक स्रोत से यहाँ तक लाये लगे पाइप को मुंह में लगाकर जी भर कर पानी पिया. मानो सदियों की प्यास हो. पानी की ठंडक गले से उतर कर आँतों तक जाती महसूस हुई.
(Gori Ganga in Milam Uttarakhand)

जीभर पानी पीने के बाद मैंने बोतल भरी और वापस आकर स्लीपिंग बैग में समा गया. इसे दुबारा गर्म होने में जितनी देर लगी तब तक नींद नहीं आ सकी. फिर जब आँख खुली तो प्रकाश चाय बना चुका था. हम सभ्य लोगों द्वारा नित्यकर्म कहे जाने वाले काम से निपटने गए थे कि एक और जीव से एनकाउंटर हुआ. वह थी इस घाटी की स्लेटी भूरी बड़ी-बड़ी छिपकलियाँ.

हम पत्थरों की ओट में बटेर लड़ाने की मुद्रा में बैठे थे कि पीछे से किसी चीज की आवाज सी महसूस हुई. ऐसा लगा कोई रेंगने वाला जीव हमारे पीछे है. पहला भय नेचुरली सांप का ही लगा. डर के मारे लगभग कूद कर किनारे हुए तो देखा कि दो मोटे-मोटे छिपड़े मेरे रात के भोजन पर दावत उड़ा रहे थे. अपने डर पर हँसी भी आई और निपट कर कमल दा को बात बताई तो पता चला उनकी भी गुड मोर्निग ऎसी ही हुई.
(Gori Ganga in Milam Uttarakhand)

हमने योजना बनायी कि रात को बोगड्यार में ही रुकेंगे क्योंकि शोध सम्बन्धी बहुत से काम हमने यहाँ करते हुए जाना था. हमारे पास पेंट का डब्बा और ब्रश भी था जिससे हम अपने स्पॉट को मार्क भी कर रहे थे. चाय के बाद नाश्ता करने तक हम आसपास के टेरिडोफाइट्स का जायजा लेने लगे. नास्ते तक एक आदमी लीलम से यहाँ पंहुच गया था. उसने बताया कि आज जिलाधिकारी अपने भ्रमण में आ रहे हैं और रात को बोगड्यार में रुकने वाले हैं. उनके साथ कर्मचारियों, पुलिस वालों और स्थानीय नेताओं का लम्बा चौड़ा दस्ता आ रहा था. आज बोगड्यार में हमें जगह मिले इसकी संभावना कम लग रही थी. इस आशंका में हम कुछ तेजी से चलकर दोपहर तक बोगड्यार पंहुच गए.

यहाँ पहले से ही काफी भीड़ थी और पीछे से और लोग आ रहे थे. ऐसे में हमारे लिए रात को जगह मिलने की संभावना ख़त्म हो गयी थी. हमें खाना खाकर आगे बढ़ने का निर्णय लिया. हमारा निकलना था कि मौसम अचानक बहुत बिगड़ गया और बहुत ही तेज बारिश होने लगी. इतनी तेज की सामने देखना मुश्किल हो गया था. हम इतना आगे आ चुके थे कि वापस जाना भी संभव नही था. वापस जाकर हमें जगह मिल ही जाय इसका भी ठिकाना न था और जितनी देर में हम वापस बोगड्यार जाएँ उतने में अगले पड़ाव नहर देवी में पंहुच जायेंगे.
(Gori Ganga in Milam Uttarakhand)

बारिश ने भी ठान ही ली थी कि हम आगे न चल पायें. हमारे पास काम चलाऊ बरसाती और पोलीथीन थी जिसमें बैग बांधकर बचा लिए थे लेकिन फ़कीर दा पूरे भीग गए थे. ठण्ड दिमाग पर हावी हो रही थी और गोरी की तेज ढाल सामने से ऐसी लग रह थी जैसे हमें साथ ही ले जाना चाहती हो. यहाँ पर गोरी लगभग एक जलप्रपात जैसी खड़ी ढाल में बहती है. दांये हाथ की ओर हंसलिंग के पहाड़ है दर्जनों झरने गोरी में गिर रहे थे. शोर इतना तेज कि आपस में बात करना भी मुश्किल.

ऐसे में हमें कोई पेड़, कोई चट्टान की ओट कुछ भी नहीं मिल रहा था. चट्टानें भी ऐसी दिखती जिनको देखकर लगता कि कहीं ये इस बारिश में हमें ही न दबा डालें. इस भयंकर बारिश में आधे घंटे में हम एक किलोमीटर भी नहीं चल पाए. एक बड़ी सी चट्टान के नीचे हमें ओट नजर आई तो उसके अन्दर सिमट गए. बैग अन्दर डाले और तीनों इस उड्यार में जा छिपे. यहाँ हम बारिश से बाख गए लेकिन ठण्ड से हम बुरी तरह काँप रहे थे. इतनी ठण्ड कि लग रहा था उँगलियाँ गिर गयी हों. फ़कीर दा की हालत अधिक खराब थी. बड़ी मुश्किल से हमने हाथों को रगड़ कर गर्म किया और उँगलियों को हिला पाए. फ़कीर दा ने बीड़ी सुलगा कर खुद को गरमाने की कोशिश की. हम भी खुद को उससे बीड़ी मांगने से रोक नहीं पाए. माचिस की आग ने हाथों के होने का पता चल रहा था.

हमें बोगड्यार से निकले काफी देर हो चुकी थी और जल्दी ही अँधेरा हो जायेगा. हम आधे घंटे से इस उड्यार में छिपे थे. डर यही था कि कहीं तेज बारिश में भूस्खलन आ जाए तो हम यहीं दफ़न हो जायेंगे. हमने ऎसी बहुत सी घटनाएं सुनी थी. बारिश बढ़ती ही जा रही थी और अब मन में डर हावी होने लगा था. हमें नहीं पता बारिश कब तक चले. हमने उम्मीद की थी कि कुछ देर में यह कम होती है तो हम चलते हैं लेकिन यह तो बढ़ ही रही थी. ऐसे में अगर बारिश रुकी नहीं तो क्या हम रात भर यहीं रुकेंगे?

यह उड्यार इतना भी बड़ा नहीं था कि यहाँ रात काटी जा सके. हमारे पास यहाँ आग जलाने की भी व्यवस्था नहीं थी. ऊपर से फ़कीर दा बुरी तरह भीग गए थे और उनको आग सेंकने को न मिली तो निमोनिया होना तय था. हमने हिम्मत की और नहरदेवी तक चलने की ठान ली. वह ज्यादा दूर नहीं थी लेकिन बारिश के कारण बहुत तेज चलपाना कठिन था. जैसे तैसे हमने खुद को तैयार किया और जितना तेज जा सकते थे उतना भागकर चलने लगे. फ़कीर दा पीछे छूट रहे थे और हम उन्हें नहीं छोड़ सकते थे.
(Gori Ganga in Milam Uttarakhand)

नहर देवी पंहुचे तो अँधेरा हो गया था. लेकिन यहाँ एक और मुसीबत सामने थी. नहरदेवी में एकमात्र छप्पर नुमा ठिकाने में आज इतनी भीड़ थी कि यहाँ ठिकाना मिलने की संभावना नजर नहीं आ रही थी. यहाँ पर एक दस बाय दस की जगह में लगभग पच्चीस लोग भरे पड़े थे जो आगे रास्ता टूटने के कारण फंस गए थे. इनमें से अधिकतर के बड़ी एक्सपिडिशन टीम के पोर्टर थे और कुछ पीडब्लूडी के मजदूर.

गोरी के साथ चलता कारवां (जिमिघाट से लीलम की ओर)

हम जब पहुंचे तो सबसे पहले फ़कीर दा को चूल्हे के पास बिठा दिया. यहाँ तेज आग में आधा घंटा तापने के बाद उसे कुछ होश आया. उसके कपड़े सूखे और मुंह से आवाज आई. आज के दिन की यातना के बाद उसकी आँखों में आंसू आना स्वाभाविक था. इस जगह के मालिक ने एक कोने में हमारे सोने की व्यवस्था कर तो दी लेकिन जो लोग यहाँ पहले से थे उनको हमारा आना बिलकुल नहीं सुहाया.

पहले से ही बड़ी मुश्किल से वह लोग यहाँ अटे पड़े थे तीन और लोग आ जाने से उनकी जगह कम हो गयी. हमने आखिर में रसोई और इस कमरे के बीच की रास्ता नुमा गली में बोरे बिछाकर सोने का निर्णय लिया लेकिन हमारे बाद तीन छोटे लड़के और आ गए और उन्हें भी हमने अपने साथ ही जगह दे दी.

आज हम ऎसी स्थिति में थे कि करवट लेने को भी जगह नहीं थी. मेरी कमर में एक लकड़ी का कुंदा चुभ रहा था और ऊपर से दो तीन लोग भयंकर खर्राटे मार रहे थे. कल का सबक लेकर मैंने आज पानी की बोतल पहले ही भर ली थी लेकिन आज न नींद थी न प्यास.

कमर में लगातार लकड़ी चुभे जा रही थी और बाहर गोरी का गर्जन मन को और डरा रहा था. सारे ही लोग गोरी के किनारे एक ऊंचे उठे सुरक्षित स्थान में थे जिसके ऊपर के खड़ी मजबूत चट्टान की पहाड़ी थी लेकिन कल भी क्या ऐसे ही रुकना पड़ेगा? क्योंकि यहाँ से थोड़ी ही दूरी पर एक भयंकर नाले ने रास्ता तोड़ दिया है और एक सिपाही और खच्चर आज वहां पर बह कर गायब हो गए है. आशंका और भय की यह रात बहुत अंधेरी थी और नींद हमसे कोसों दूर.
(Gori Ganga in Milam Uttarakhand)

लॉकडाउन के छबीससवें दिन विनोद द्वारा बनाई गयी पेंटिंग

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विनोद उप्रेती

पिथौरागढ़ में रहने वाले विनोद उप्रेती शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं. फोटोग्राफी शौक रखने वाले विनोद ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों की अनेक यात्राएं की हैं और उनका गद्य बहुत सुन्दर है. विनोद को जानने वाले उनके आला दर्जे के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर से वाकिफ हैं.

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