लोक गायक मदन राम जी का गीत ‘घर छू पहाड़ सौरास देश को’ कैसेट के दौर का एक लोकप्रिय गीत रहा है. स्टूडियो में रिकार्ड इस गीत को पहाड़ में तो ख़ासा पसंद किया ही गया लेकिन यह गीत मैदानी इलाकों में रहने वाले पहाड़ी पुरुषों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया गया.
(Ghar Chhu Pahad Kumaoni Song)
कमाने को घर छोड़ना, पहाड़ में जन्मे पुरुषों की हमेशा से पीड़ा रही है. इस पीड़ा का समाधान तो कभी हो न सका उल्टा घर छोड़ना पहाड़ी पुरुषों की नियति बन गया. जिन्होंने पहाड़ में रहने की कोशिश की वह निखद्द और आवारा ही कहलाये. ऐसे में पहाड़ी पुरुषों के लिये पहाड़ में बसे घर उनके मायके ही हुए और मैदान हुआ सौरास माने ससुराल.
90 के दशक में जब पहाड़ से मैदानों में बड़ी संख्या में एक पीढ़ी बस चुकी थी तब पहाड़ में घर और मैदान में ससुराल की यह बात पहाड़ी पुरुषों को अधिक भायी. पहाड़ में दिल्ली-बम्बई जैसे बड़े शहरों को देश कहा जाता है सो गीत बना- घर छू पहाड़ सौरास देश को.
(Ghar Chhu Pahad Kumaoni Song)
भीड़ भरे बड़े शहरों में अकेले जब गांव के बचपन, धुर, बांज के पेड़ और बर्फ़ से जुड़ी बात कान में पड़ेगी तो कौन पहाड़ी होगा जिसे उदेख न लगेगी. बात फिर जब अपनी बोली के गीत कही गयी हो तो उदेख और तेज होना बड़ा लाजमी है. शायद यही कारण रहे होंगे जिस वजह से यह पहाड़ियों के बीच का एक लोकप्रिय गीत बना.
क्या आपने यह गीत पहले सुना है? कमेन्ट बॉक्स में हमें बाताइए अगर आपकी भी इस गीत से जुड़ी कोई यादें हैं तो.
(Ghar Chhu Pahad Kumaoni Song)
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