सीसमहल में रहने वाले गट्टू भाई हद दर्जे के गपोड़ी हैं. और मुझे उनका साथ अच्छा लगता है. दारू पीते हैं तो उनका तकिया कलाम होता है – “ज़रा बनइयो एक बौव्लेंडर बेटे”. बताता चलूँ की जनाब बौव्लेंडर का पूरा नाम फ्लोरिस फौन बौव्लेंडर था. ये साहब हौलैंड के नामी हॉकी खिलाडी थे और उनके पेनाल्टी कॉर्नर पर गोल ठोकने की विशेषज्ञता के कारण समूचा हॉकी जगत कोई डेढ़ दशक तक खौफ में रहा था. भारत के खिलाफ एक ओलिम्पिक मैच में उन्होंने हमारी खाल में खासा भुस भरा था. गट्टू भाई एक ज़माने में हॉकी खेलते थे ऐसा मैंने सुना है. बौव्लेंडर द्वारा भारत को ध्वस्त किये जाने के बाद से ही गट्टू भाई इस खिलाड़ी के ऐसे फैन बने कि पीते ही टल्ली बना देने वाले अचूक पैग का नामकरण उसके नाम पर कर दिया. यानी जिस तरह पेनाल्टी कॉर्नर मिलते ही बौव्लेंडर सीधे गोल ठोक दिया करता था उसी भांति पहला पैग पीते ही आदमी को टुन्नावस्था तक पहुँच जाने का सद्प्रयास करना चाहिए.
खैर. गट्टू भाई उस दिन बढ़िया टाइट थे. और गप्प मरने के मूड में भी.
गट्टू भाई द्वारा उनके फार्म हाउस में पानी से भरे लोटे से बाघ को मार देने का किस्सा हल्द्वानी शहर के अधिकाँश पुराने नागरों को मालूम है. बात कब उनके फार्म हाउस पर पहुंची मुझे याद नहीं पर उस के बाद उन्होंने जो गप्प मारी वो उन्ही की ज़बानी पेश करता हूँ:
“अशोक भाई, परसों फारम पे गया था. दिन में एक संपेरा घर के भार आ के तमाशा दिखने लगा. संपेरा बीन बजाये और सांप नाचा कर रये. आठ दस डलिया में से सांप लिकाल्लिये उन्ने और सारे के सारों के फन हिलवा-हिलवा के डांस करवाने लगा. एक सांप तो मिथुन चक्कर्बरती से भी बढ़िया डिस्को कर रया था. बड़ी मौज का समां बन्निया था जब एक नौकर ने पीछे से कान में आ के कुछ कया.
संपेरा बोरी में एक डलिया छुपा के बैठा हुआ था. मैंने उस से कई की बेटे जे डलिया का सांप भी भार लिकाल तो बो बोला कि ठाकुर साब जे सांप बीमार चल्लिया आज कल. मैंने कई कि ढक्कन तो खोल. बिचारे को भी हवा-पानी खान दे. तो साब उन्ने बड़ी मान-मनव्वल के बाद जो डलिया का ढक्कन खोला तो एक धाँसू टैप का सांप अपनी मुंडी भार कर के मुझे देखने लगा. मैंने दिमाग पे जोर डाला तो याद आया की जे सांप तो जाना-पैचाना दिक्खे. मैंने नौकर से पूछी के बेटे ज़रा देख के बतइयो तो. नौकर तुरंत पैचान गया. बोला के मालिक जे तो अपना नीम के पेड़ के नीचे रेने वाला सांप हैगा.
मैंने फिर देखा तो वो सांप, अशोक भाई, बोई था. मैंने थामी ससुरे संपेरे की गर्दन और पिछाड़ी पे दी दो लात कि साले हमारे फारम का सांप हमेंई दिखा रिया. अपने फारम के एक-एक सांप को जाना करूं मैं. जा दूकान से दूध की थैली ले के आ एक. कितना दुबला बना दिया तैने इसे साले. और खबरदार जो हमारे फारम के एक भी सांप पे आगे से निगाह डाली तो … और दूध पिला के हमाये जे बच्चे को व्हंई छोड़ के अईयो उसके घर के धौरे फ़ौरन से जल्दी …”
… इस के आगे का किस्सा आप अपने आप गढ़ सकते हैं क्यूंकि इस के बाद कि डिटेल्स मुझे याद नहीं रही. ऐसी बौव्लेंडर गप्प सुन चुकने के बाद होश में रह पाना नामुमकिन होता है.
नोट: गट्टू भाई चरस के नियमित सेवन पर बहुत जोर देते हैं. अगर कभी कोई बढ़िया क्वालिटी का माल उन तक पहुँचता है तो मुझे फ़ोन कर के न्यौतना नहीं भूलते कि “अशोक भाई सांप के बांये कान के नीचे का बौफ्फाइन माल आया है. स्याम को आ जाओ अड्डे पे.”
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