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वीर गढ़ू सुम्याल और सती सरू कुमैण की गाथा

कहानी शुरू होती है बहुत पुराने जमाने से, जब रुद्र राउत मल्ली खिमसारी का थोकदार था और उसका चचेरा भाई ऊदी राउत तल्ली खिमसारी का. दोनों रुद्रपुर के पास रहते थे. एक दिन ऊदी अपने बड़े भाई रुद्र से मिलने मल्ली खिमसारी पहुंचा. ऊदी ने देखा की उसके भाई रुद्र का चेहरा लटका हुआ है. ऊदी ने पूछा – भैया, क्या बात है? ऐसा कौन सा झमेला है जो हम न सुलझा सकें? बस इशारा करो, मैं दुश्मन का सिर काट के तुम्हारे सामने रख दूंगा.
(Gadhu Sumyal or Saru Kumyan)

रुद्र ने सिर झुकाकर कहा – दून माल पर हमारा कब्जा नहीं बन पा रहा. वहां के लोग कर नहीं देते. हमें वहां की व्यवस्था को ठीक करना होगा.

ऊदी का खून खौल उठा वह गुस्से में बोला – चल भैया, अभी दून माल चलते हैं और सब ठीक कर देते हैं. ऊदी घर लौटा, अपनी मां को सारी बात बताई और आशीर्वाद मांगा. मां ने कहा – बेटा, अगर तू मेरा सच्चा लाल है तो दुश्मनों को धूल चटा दे. यही क्षत्रिय का धर्म है. मां की दुआ लेकर दोनों भाई घोड़ों पर सवार होकर दून माल की ओर निकल पड़े.

दून माल पहुंचते ही दोनों भाइयों ने तांडव मचा दिया. दुश्मनों के सिर ऐसे काटे जैसे कोई केले के पेड़ काट रहा हो. खून की नदियां बहने लगीं. आखिरकार, दुश्मन हार गए. वहां के लोगों ने डर के मारे गेहूं, घी, दूध और गहने कर के रूप में देने शुरू कर दिए. ये सब सामान रुद्रपुर भेजा गया. दोनों ने वहां की व्यवस्था दुरुस्त की और घर की राह पकड़ी.

रास्ते में रुद्र के मन में लालच जागा. उसने ऊदी से कहा – तू आराम से आ, मैं संदेशवाहकों के साथ आगे जाता हूं. उसने सारा कर मल्ली खिमसारी भेज दिया और ऊदी धीरे-धीरे आता रहा. ऊदी आया तो रुद्र बोला – मैंने कर बांट दिया. आधा मल्ली खिमसारी, आधा तल्ली खिमसारी. ऊदी को शक नहीं हुआ.

रास्ते में एक घराट पर दोनों रुके. ऊदी थकान से सो गया. लेकिन रुद्र के दिल में शैतान जाग चुका था. उसने सोते हुए ऊदी पर घारट का पाट फेंक दिया. ऊदी की मौत हो गई. रुद्र तल्ली खिमसारी पहुंचा और ऊदी की मां के सामने रोने का नाटक करते हुए बोला – दुश्मनों ने छल से ऊदी को मार डाला. मैं अब अकेला हूं.

ऊदी की मां और पत्नी दुख से टूट गईं. पत्नी सती होना चाहती थी, पर गर्भवती थी, इसलिए रुक गई. रुद्र अपने घर लौट गया और ऊदी का परिवार गरीबी में डूब गया. कुछ महीनों बाद ऊदी की पत्नी कुंजावती ने एक बेटे को जन्म दिया. उसका नाम पड़ा – गढ़ू सुम्याल.

गढ़ू जब बड़ा हुआ तो उसे अपने पिता की मौत का सच पता चला. उसका खून उबलने लगा, लेकिन अभी वक्त नहीं आया था. एक दिन गढ़ू जंगल में खेलते हुए चला गया. वहां एक बाघ से उसकी भिड़ंत हो गई. गढ़ू ने बाघ की भुजाएं पकड़ीं, नाक में नकेल डाली और उसे अपनी मां के सामने ले आया. मां के कहने पर गढ़ू ने बाघ को आजाद कर दिया. उसकी बहादुरी की बात चारों तरफ फैल गई. फिर तल्ली खिमसारी हाट में अकाल पड़ा. गढ़ू की दादी गुजर गईं और घर में खाने को कुछ न रहा. मां बोली – बेटा, अपने ताऊ रुद्र से छाछ मांग ला. उसके पास बारह बीसी भैंसें हैं.

गढ़ू ताऊ के पास गया. रुद्र ने गुस्से में कहा – लाख रुपये ला, फिर भैंस ले जा. गढ़ू खाली हाथ लौटा. मां ने उसे एक थैला दिया, जिसमें ऊदी ने लाख रुपये छुपाए थे. गढ़ू फिर गया. रुद्र ने रुपये लिए और एक बांझ भैंस थमा दी. घर जाकर जब यह बात गढ़ू को पता चली तो उसका गुस्सा फूट पड़ा. वो खर्क गया और  रुद्र की सारी 220 भैंसें खोल लाया. न रुद्र कुछ कर सका और न उसके सात बेटे कुछ कर सके.
(Gadhu Sumyal or Saru Kumyan)

जंगल में एक दिन गढ़ू को बांसुरी बजाने की सूझी. जब पास के जंगल में वह नौ पूरी का बांस काटने लगा तो गुरू ज्ञानचंद के सैनिक आ खड़े हुए. गढ़ू  ने उनको पराजित किया और बांसुरी बजाने लगा. उसकी बांसुरी की धुन इतनी मधुर थी कि पास में घास काट रही सरू कुमैण उसे सुनकर मोहित हो गई. सरू का खूब रूप वाली थी. वह रामगंगा पार कर गढ़ू  के खर्क आ गयी. गढ़ू ने मां को खबर भेजी. मां ने धूमधाम से सरू को बहू बनाकर घर लाई.

इधर गढ़ू की खुशहाली देख रुद्र जलने लगा. उसने अपने बेटों और नातियों के साथ चाल रची. गढ़ू को बुलाया और बोला – तेरे पिता का बदला लेना चाहिए. मैं मदद करूंगा. गढ़ू मान गया. मां और सरू ने रोका, पर गढ़ू निकल पड़ा. रुद्र ने उसे गलत रास्ते पर भेज दिया. गढ़ू जंगल में भटक गया, लेकिन अपनी सूझबूझ से दून माल पहुंच गया. दून माल में उसने दुश्मनों को हराया और कर घर भेजा. पर रुद्र ने रास्ते में ही सारा सामान हड़प लिया और तल्ली खिमसरि में खबर फैला दी कि अपने पिता की ही तरह गढ़ू भी दुश्मनों के हाथ मारा गया.

रूद्र यहीं नहीं रूका उसके सरू को तरह-तरह से फुसलाना शुरू किया. रुद्र ने सरू को अपने बेटे से शादी का लालच दिया पर सरू तो बड़ी सती थी उसने रूद्र को कररा जवाब दिया. रूद्र सरू के भाइयों के पास दुप्याली कोट भी गया पर उसकी बात सरू के भाइयों को भी न जमी. फिर रुद्र ने सरू के मामा के यहां तिमत्याली गांव गया. उसके साथ मिलकर उसने सरू को रूपा सौक को बेचने का षड्यंत्र रचा.

एक दिन सरू का मामा तल्ली खिमसरी आया और सरू को फुसला कर अपने गांव ले आया. उसने सरू के ससुराल में कहा कि वह दूसरे दिन दुणा दैज के साथ अगले दिन लौटा देगा पर मामा तो सौकाओं से पैसे खा चुका था. उसने सरू की बंद डोली सौकाओं के यहां पहुंचा दी. पहले तो सरू घबरा गयी पर उसने बुद्धिमत्ता से काम लिया और सौक से कहा – मैंने 12 साल का व्रत लिया है. न मैं बात कर सकती हूँ न तुम्हारे साथ रह सकती हूँ. रूपा सौक इस आश्वासन पर परदेश चला गया और सरू उसकी कैद में दिन काटने लगी.
(Gadhu Sumyal or Saru Kumyan)

जब गढ़ू की मां को सच पता चला तो उसने गढ़ू को बुलावा भेजा. गढ़ू लौटा और जब उसकी मां ने सरिक कहानी उसे बता दी. वह क्रोध में आग बबूला हो गया. मां बोली – तेरे ताऊ के पापों का गढ़ा भर गया है. अब तू पाने वंश का बदला ले तभी मेरी आत्मा को शांति मिलेगी. गढ़ू ने रुद्र को परिवार समेत अपने गांव खाने पर बुलाया. रूद्र और उसके पूरे परिवार को खूब खाना खिलाकर एक बड़े मकान में सुला दिया और फिर उसका दरवाजा बंद कर पूरे मकान में लीसा पोतकर आग लगा दी. रुद्र और उसका परिवार खत्म हो गया. मां ने सुकून से प्राण छोड़े.

अब गढ़ू सरू को ढूंढने निकला. पहले वह उसके भाइयों के वहां दुप्यालकोट गया. जेठू लोगों ने पूरी कहानी बता दी वह गुस्से में तिमत्याली गया और कोहराम मचा दिया. सबका नाश करने के बाद वह जोगी भेषधर सरू को ढूंढ़ता हुआ भटकने लगा. सालों भटकने के बाद एक बूढ़ी औरत ने बताया कि यहां नजदीक ही सौकों के कैद में एक रानी पड़ी है लेकिन उसने सदाव्रत खोल रखा है. ऐसी सती स्त्री मैंने आजतक न देखी बारह साल से व्रत नियम पर दृढ़ है. गढ़ू ने सरू को आजाद कराया. और घर की ओर लौट पड़ा.

सरू और गढ़ू के प्रेम की डगर इतनी आसान न थी. रास्ते में जब दोनों एक जगह रुके थे तो इनका पीछा करते हुए आ रहे रूपा सौका ने इन पर हमला कर दिया. रूपा सौका ने जब इनकी पीठ हमला किया तो ये गिर पड़े पर किसी तरह संभलते हुए रूपा सौका की तलवार से उसे खत्म कर दिया. रूपा सौका का किया घाव गहरा था, लेकिन सरू की देखभाल से गढ़ू ठीक हो गया. दोनों तल्ली खिमसारी हाट लौटे. गढ़ू का राज्याभिषेक हुआ. प्रजा सुखी रही.
(Gadhu Sumyal or Saru Kumyan)

नोट – यह लेख भक्तदर्शन की किताब गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां किताब में छपे लेख श्री गढ़ू के आधार पर लिखा गया है.

काफल ट्री डेस्क

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