यात्रा पर्यटन

उत्तराखण्ड के प्रमुख पर्यटन स्थलों से दबाव कम करना जरूरी है

उत्तराखंड नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में एक इमेज उभरकर आती है और वह है चार धाम. हमने उत्तराखंड को एक इमेज में बांध दिया है. खासकर 2013 की आपदा के बाद बाहरी लोग उत्तराखंड को केदारनाथ की वजह से ज्यादा जानने लगे हैं. उत्तराखंड में पर्यटन के केन्द्र पर अगर आप ग़ौर करें तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चार धाम, हरिद्वार, मसूरी व नैनीताल के अलावा हमारी कोई और यूएसपी (यूनिक सेलिंग प्रोपोजिशन) नहीं है.

अगर उत्तराखंड टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड के 2018 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो पाएँगे कि एक साल लगभग 26,22,325 पर्यटक चार धाम की यात्रा पर आए जिसमें सबसे ज़्यादा 10,48,051 पर्यटक बद्रीनाथ, 7,31,991 केदारनाथ, 4,47,838 गंगोत्री और 3,94,445 यमुनोत्री की यात्रा पर गये. 2018 के कुल 3,68,52,204 पर्यटकों में से अकेले हरिद्वार में 2,15,77,583 पर्यटक पहुँचे. इसके अलावा मसूरी में 28,72,025 नैनीताल में 9,33,657 टिहरी में 21,17,431 और देहरादून में 24,84,289 पर्यटकों की उपस्थिति दर्ज की गई.

इन आंकड़ों से साफ नज़र आता है कि अब तक हम सिर्फ उन पर्यटन या धार्मिक स्थलों को पर्यटकों तक पहुँचा पाए हैं जो उनके जेहन में हमेशा से रहे हैं. नये पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने में हम लगभग नाकामयाब ही रहे हैं. राज्य का 26 प्रतिशत जीडीपी पर्यटन से आता है लेकिन पर्यटन को लेकर जितनी भी नीतियां बनाई गई उनका क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर कुछ ख़ास नजर नहीं आया.

हम सिर्फ कुछ चुनिंदा पर्यटन स्थलों पर ध्यान केन्द्रित किये बैठे हैं जिससे उन स्थलों पर ‘टूरिस्ट फुटफॉल’ लगातार बढ़ता जा रहा है जो न तो उस पर्यटन स्थल के लिए अच्छा है और न ही वहां के पर्यावरण के लिए. हम पहले ही यह गलती मसूरी और नैनीताल के मामले में कर चुके हैं. आज मसूरी और नैनीताल ‘टूरिस्ट एरिया लाइफ साइकिल’ में न सिर्फ अपने उच्चतम शिखर पर पहुँच चुके हैं बल्कि अब इनका पतन भी होने लगा है. यही गलती हम चार धाम के साथ भी दोहराने लगे हैं.

एक पर्यटन स्थल पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए ‘सैटेलाइट डेस्टिनेशन प्रोमोशन’ को अपनाया जाता है जिसका मतलब होता है किसी एक मुख्य आकर्षण के आस-पास के अन्य आकर्षणों को बढ़ावा देना. उदाहरण के लिए अगर हम नैनीताल की बात करें तो हमें नैनीताल के आस-पास के सैटेलाइट डेस्टिनेसन्स जैसे की भवाली, भीमताल, रानीखेत, अल्मोड़ा आदि को इतना ज़्यादा बढ़ावा देना चाहिये था कि सारा दबाव नैनीताल से हटकर इन सब पर्यटन स्थलों पर समान रूप से पड़ता और नैनीताल आज जिस सूरत में पहुँच चुका है शायद इससे कई गुना बेहतर सूरत में होता.

पिछले कुछ सालों में चार धाम के यात्रियों में उम्मीद से ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है और सबसे ज़्यादा बढ़ोत्तरी केदारनाथ में दर्ज की गई है. हम जानते हैं कि उत्तराखंड भूकंप के सबसे ख़तरनाक ज़ोन 5 में पड़ता है और उस पर भी हिमालयी क्षेत्र पर भूकंप का खतरा कई गुना ज़्यादा है. ऐसे में केदारनाथ जैसे पर्यावरणीय रूप से अतिसंवेदनशील पर्यटन स्थल पर 7 लाख से ज़्यादा लोगों का पहुँचना खतरे से खाली नहीं है. हमारे पास सैटेलाइट डेस्टिनेशन के रूप में पंच केदार (केदारनाथ, कल्पनाथ, रुद्रनाथ, तुंगनाथ व मद्यमहेश्वर) पंच बद्री (बद्रीनाथ, योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री व आदि बद्री) और पंच प्रयाग (देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग व विष्णुप्रयाग) मौजूद हैं. बस जरूरत है तो इन्हें पर्यटकों तक पहुँचाने की. जरूरी नहीं है कि आप केदार बाबा के दर्शन सीज़न में केदारनाथ जाकर ही करें. ऑफ सीजन में केदार बाबा की डोली को नीचे ऊखीमठ में स्थापित कर दिया जाता है तब भी ऊखीमठ पहुँच कर दर्शन किये जा सकते हैं. इस तरह हम केदारनाथ को बारह माह के पर्यटन स्थल के रूप में भी स्थापित कर सकते हैं.

राजस्थान या केरल के मुकाबले हम टूरिज्म प्रोमोशन में कहीं नहीं ठहरते. टेलीविजन विज्ञापनों में शायद ही आपको उत्तराखंड टूरिज्म का कोई विज्ञापन नजर आया हो. आप राजस्थान टूरिज्म का इन्स्टाग्राम पेज देखिये उसमें 2 लाख फ़ॉलोवर हैं वहीं केरल टूरिज्म के 2 लाख 16 हज़ार जबकि उत्तराखंड टूरिज्म के मात्र 1 लाख 13 हज़ार फ़ॉलोवर हैं. उत्तराखंड के पास रिलीजियस टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, ईको टूरिज्म, होम स्टे, योगा टूरिज्म, नेचर टूरिज्म, वाइल्ड लाइफ़ टूरिज्म आदि न जाने कितने ही प्रकार के टूरिज्म हैं जिन्हें अभी तक पूरी तरह हम खुद नहीं समझ पाए हैं. हमें जरूरत है सतत विकास के साथ उन सारे पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने कि जो हमारे लिए सैटेलाइट डेस्टिनेसन्स का काम कर सकते हैं ताकि कुछ प्रमुख स्थलों के ऊपर से पर्यटन का भार कम हो.

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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Sudhir Kumar

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