समाज

हल्द्वानी के कुछ पुराने परिवार

[पिछली क़िस्त: लॉर्ड हार्डिंग ने बनवाया था काठगोदाम का वह बेजोड़ गौला पुल]

हरिदत्त जोशी अपने परिवार की परंपरा को बनाये रखते हुए समाजसेवा में भी अग्रणी रहे. वह आर्य समाजी थे. राम मंदिर की धर्मशाला और बनभूलपुरा में बारातघर के लिए उन्होंने दान किया. इनकी बड़ी पुत्री का विवाह पूर्णानंद के साथ हुआ था, उनके निधन के बाद पूर्णानंद के दूसरे विवाह से नारायण दत्त तिवारी का जन्म हुआ. अपने बड़े बुजुर्गों से सुनी और अपने बचपन की देखी यादों को हल्द्वानी फर्नीचर मार्ट के स्वामी सुरेश जोशी संजोये हुए हैं. एकदम सहज और सरल व्यक्तित्व के जोशी अपनी विरासत को सँभालने के अलावा उस पुरानी सुंदर हल्द्वानी की यादों में खो जाते हैं और बताते हैं कि पहले भाबर का यह इलाका टिम्बर के कारोबार के लिए जाना जाता था. (Forgotten Pages from the History of Haldwani-8)

उनके दादा का कारोबार नेपाल तक फैला था. ठेकेदारी के सिलसिले में वह दूर-दूर तक जाया करते थे. तब दिल्ली, पंजाब, राजस्थान के टिम्बर व्यापारी यहाँ आया करते थे. पहले रेलवे बाजार में पटरियों के पास ठेकेदारों के फड़ लगते थे, जिसे टिम्बर पड़ाव कहा जाता था. तराई भाबर की बड़ी मंडी होने के कारण लकड़ी के कारोबारी यहाँ आया करते थे. चीड़ की लकड़ी के विशेष प्रकार के स्लीपरों की ख़ासा मांग थी, जो खराब नहीं होते थे क्योंकि इनसे लीसा नहीं निकाला गया होता था. अब तो वह स्लीपर दिखाई नहीं देते हैं, लोहे और अन्य धातुओं का प्रचलन बढ़ चुका है. (Forgotten Pages from the History of Haldwani-8)

हरिदत्त के भाई नित्यानंद की पत्नी गंगा देवी फर्नीचर मार्ट से लगे बद्रीपुरा मार्ग पर महिला आश्रम का सञ्चालन करती थीं. महात्मा गाँधी अपने पहाड़ के दौरे में ताकुला (नैनीताल) में महिला आश्रम शुरू कर गए, जिसे गंगा देवी ने संचालित किया. चीफ सेक्रेटरी बीडी सनवाल की बहन गंगा अग्रणी समाज सेवी थीं. तब गंगा देवी ने नुमाइश ग्राउंड (स्टेडियम) के पास जिस आश्रम को संचालित किया था, अब वह खंडहर हो चुका है.

पहले बरसाती नहर नवाबी रोड के पास भी कुछ समय उन्होंने आश्रम का सञ्चालन किया था. आश्रम तो आज ताकुला में भी है लेकिन गतिविधियाँ थम गयी हैं. जगन्नाथ कांग्रेस के पक्के सिपाही थे. साबरमती आश्रम में भी कुछ समय रहे और आजादी के आन्दोलन में जेल भी गए लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी होने का कोई फायदा निजी हित में नहीं लिया.

हल्द्वानी में बसे पुराने परिवारों में हैड़िया परिवार का नाम सबसे आगे है. इन्हीं के नाम से हैड़िया ग्राम कहा गया. आज इस परिवार के अम्बादत्त के नाम पर अम्बा नगर और अम्बा विहार बस चुका है. भीमताल के पास चांफी रोड पर विनायक के पास हैड़िया ग्राम के बुजुर्ग महानंद हैड़िया सबसे पहले हल्द्वानी की बसासत के समय यहाँ पहुंचे. तल्ली बमोरी बंदोबस्ती का यह क्षेत्र हैड़िया ग्राम के नाम से पहचाना जाने लगा. पूर्व में नवाबी रोड से लेकर करैल-छड़ैल तक का इलाका हैड़िया परिवार के पास ही था. (Forgotten Pages from the History of Haldwani-8)

बताते हैं कि हैड़िया लोग मूलतः जोशीखोला अलमोड़ा के थे और भीमताल में रहने लगे थे. उनके पूर्वज वैध्यकी का काम किया करते थे. एक बार किसी राजा की बीमार पत्नी उनके द्वारा दवा के रूप में दिए गए हरड़ से स्वस्थ हो गयी. राजा ने उपहार में भीमताल में घिंघराड़ी तक भूमि दे दी. हरड़ से रोग दूर होने के बाद से उन्हें हरड़िया और बाद में हैड़िया कहा जाने लगा.

(जारी है)

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

यह भी देखें : हल्द्वानी का प्राचीन मंदिर जिसकी संपत्ति का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा गया

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

5 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

6 days ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

6 days ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago

विसर्जन : रजनीश की कविता

देह तोड़ी है एक रिश्ते ने…   आख़िरी बूँद पानी का भी न दे पाया. आख़िरी…

2 weeks ago