कालाढूंगी चौराहे पर एक पेड़ के नीचे कालू सैयद या कालू सिद्ध बाबा के नाम पर लोग गुड़ चढ़ाते हैं. कहते हैं पहले यहां मुस्लिम भी मन्नतें मनाने आया करते थे, लेकिन जब से यहां घंटे, घड़ियाल बजने लगे और धर्म के नाम पर कुछ लोग घेराबंदी करने लगे तो उन्होंने यहां आना छोड़ दिया. अब तो वहां कई मूर्तियां भी स्थापित हो गई है. इसी मंदिर के दूसरी ओर सामने देवी पान वाले की दुकान थी, जहां शहर की मशहूर हस्तियां पान खाने आया करती थीं. Forgotten Pages from the History of Haldwani-17
हल्द्वानी को मंडी बनाने के उद्देश्य से मंगल पड़ाव को बसासत के रूप में तैयार किया गया. पहले काशीपुर ही पहाड़ का व्यापारिक केंद्र था. हल्द्वानी को व्यापार का केंद्र बनाने के लिए सर हेनरी रैमजे के समय में काशीपुर से व्यवसायियों को यहां बुलाया गया और बाद में यहां पक्के मकान बनाने का अधिकार दे दिया गया. नैनीताल की बसासत को सामग्री उपलब्ध कराना भी हल्द्वानी में मंडी स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य था. Forgotten Pages from the History of Haldwani-17
1952 में जब नगर के जाने-माने अधिवक्ता, दबंग और सहृदय व्यक्तित्व वाले दया किशन पांडे नगर पालिका के चेयरमैन बने तो बहुत से परिवर्तन यहां आए. वे रूस की यात्रा से लौटे थे नगर पालिका के चेयरमैन बनते ही उन्होंने पहली बार नालियां बनवायीं. वे रात्रि में गैस लाइन निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया करते थे. उस समय हल्द्वानी तहसील की दीवार से लेकर डीएम कार्यालय परिसर तक का इलाका रामनगर के देवीदत्त छिम्वाल के नाम लीज पर था.
रामलीला आहाते से लगा एक पार्क डीके पार्क के नाम से आज भी जाना जाता है. इससे अपने अध्यक्ष काल में पांडे जी ने बनवाया था. पांडे जी का एक सपना मुख्य नैनीताल रोड के समानांतर एक ठंडी सड़क काठगोदाम तक बनाने का भी था. 1956 में उन्होंने इस कच्ची सड़क के दोनों ओर अशोक के वृक्ष लगवाए लेकिन बाद में भोटिया पड़ाव से आगे इसी पार्क के मध्य में बने खंडेलवाल पार्क और अन्य अवरोधों के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो सका. 1958 से 1964 तक डीके पार्क भी शहर के मध्य में अच्छा लगता था.
एक जमाना था जब लोग शाम को यहां बैठा करते थे. बाहर से आने वाले बहुत से लोग यहां बनी बैंचों व घास पर रात भी गुजार दिया करते थे. तब एक माली भी यहाँ रहा करता था. तेल मालिश, चंपी वाले तथा कान का मैल निकालने वाले अलग ही अंदाज में इस पार्क में दिखाई दे देते थे.
एक लाल कपड़ा गोल टोपी की तरह उमेठ कर पहने रहते और दोनों कान के ऊपर रुई और मैल निकालने वाली सलाई खोंसकर ग्राहकों की तलाश में रहते. अब इस पार्क की बहुत दुर्दशा हो गई है. एक ओर राम मंदिर तो दूसरी और भैरव मंदिर तथा पीपलेश्वर महादेव का मंदिर एक ओर रामलीला मैदान, रामलीला मैदान की गली के पार गुरुद्वारा, तो दूसरी ओर राजनीति का अखाड़ा स्वराज आश्रम. राम मंदिर के बाद कुमाऊं मोटर्स ओनर्स का कार्यालय, बाद में रोडवेज का बस अड्डा और इसी इलाके की साहूकारा लाइन की बाजार तथा चौक पटेल चौक सब कुछ सब कुछ एक ही स्थान पर और सिमटा-सिमटा सा था.
1855 में यहां टाउन एक्ट जारी हुआ. 9 फरवरी 1897 को यह नगर पालिका बनाई गई किंतु 1984 में इसे नोटिफाइड एरिया बना दिया गया और 1997 में नगर पालिका का दर्जा दे दिया गया. 1942 को काठगोदाम क्षेत्र भी इसमें शामिल कर हल्द्वानी-काठगोदाम नगर पालिका का गठन हुआ. 1956 में इसे द्वितीय श्रेणी का दर्जा दिया गया तथा 1966 में प्रथम श्रेणी की नगरपालिका घोषित हुई. 21 मई 2011 को हल्द्वानी नगर पालिका परिषद को नगर निगम का दर्जा दे दिया गया.
(स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर)
पिछली कड़ी का लिंक
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर
पिछली कड़ी : इस तरह दीमकों ने चट कर दी हल्द्वानी के पुस्तकालय की किताबें
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…