पिछली क़िस्त : जब हल्द्वानी के जंगलों में कत्था बनाने की भट्टियां लगती थी
उस जमाने में भाबर का यह इलाका घने जंगलों से भरपूर था. साल, शेषं, खैर, हल्दू आदि मूल्यवान प्रजाति के वृक्षों से हराभरा यह क्षेत्र था. तत्कालीन कुमाऊँ के बेताज बादशाह कहे जाने वाले सर हेनरी रामजे इस क्षेत्र को घर का बगीचा कहते थे और चाहते थे कि यह बगीचा हरा-भरा रहे. यह कहना ठीक है कि अंग्रेज हमें लूटने यहाँ आए थे. उन्होंने हमें गुलाम बना रखा लेकिन की जो दुर्गति आजादी के बाद हुई और लुटेरों कि तरह हमने जंगलों को लूटा आज उसी का परिणाम है कि सांस सांस लेने के लिए भी जगह नहीं बची है. (Forgotten Pages from the History of Haldwani- 10)
हैनरी रामजे के प्रयासों से ही इस बीहड़ क्षेत्र को बसने लायक बनाया गया और कई सुविधाएँ देकर लोगों को बसने के लिए प्रोत्साहित किया गया. (Forgotten Pages from the History of Haldwani- 10)
काठगोदाम से गौला नदी में गाँवों तक बहुत मजबूत और पक्की नहरें बनवायी गयीं. अंग्रेजों कि इस दूरदृष्टि का महत्त्व आने वाली पीढ़ी ने नहीं समझा. उस ज़माने में इन्हीं नहरों का पानी लोग पिया करते थे. गाँवों में तो बहुत बाद तक इन्हीं नहरों के पानी को संचित कर लोग काम में लाया करते थे. किन्तु आज इन नहरों में शहर का कचरा यहाँ तक कि सीवर की गन्दगी भी बहा करती है. (Forgotten Pages from the History of Haldwani- 10)
गार्गी यानि गौला नदी के तट पर बसा और नहरों के जाल से घिरा हल्द्वानी नगर पेयजल संकट के साथ प्रदूषित जल से ट्रस्ट है. चिकित्सकों कि राय में 40 से 50 प्रतिशत बीमारियों का कारण प्रदूषित जल ही है. मैदानों में बस जाने की होड़ ने उपजाऊ जमीन को लील लिया है और शहर को कंक्रीट के जंगल में बदल दिया है.
इस क्षेत्र में साफ़ पानी के चार बड़े स्रोत हैं. गौला नदी तथा भीमताल, नैनीताल और सातताल की झीलें. इनसे घरेलू, सिंचाई तथा औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए पानी लिया जाता है. इन स्रोतों को शोध रखने की कोई कार्ययोजना न होते के चलते इनका पानी लगातार प्रदूषित होता जा रहा है. काम क्षमता के जलशोधक संयंत्र बढती आबादी की जरूरतें पूरी करने में सक्षम नहीं हैं.
नगर के मध्य और बाहरी क्षेत्रों का जल 10-15 सालों तक इतना साफ़ था कि उसे सीधा उपयोग में लाया जा सकता था.
(जारी है)
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर
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