जंगल

उत्तराखण्ड के जंगलों को जलने से रोका जा सकता है

आग लगभग सभी धर्मों में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती  है. कोई भी समाज आग के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकता है. आग को हिन्दू धर्म में भी भगवान (अग्नि) का रूप माना जाता है और अधिकांश धार्मिक अनुष्ठानों  में इसका उपयोग किया जाता है. हिन्दू धर्म  की मान्यता है और भगवान कृष्ण ने भी भागवत गीता में उपदेश दिया है – अग्नि जीवन के पांच सबसे पवित्र घटकों में से एक है. (Forest Fire Prevention)

आग अपने कई उपयोगों के लिए महत्वपूर्ण है. भारत के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक लगभग 200 मिलियन साल पहले भारत में पहली बार जंगल की प्राकृतिक आग के बारे में सोचा गया था. जंगल की आग जंगल के संसाधनों, पर्यावरण, मनुष्यों और सम्पत्ति को बड़ी क्षति पहुँचाती है. जंगलों में सबसे आम खतरा जंगलों की आग है. जंगलों की आग उतनी ही पुरानी है जितनी कि खुद जंगल. आग न केवल वन संपदा के लिए बल्कि संपूर्ण शासन व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करती है. यह जैव-विविधता और क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यावरण का जीवन चक्र बदल देती है. कई मामलों में, वनभूमि खराब हो जाती है या अन्य गतिविधियों के लिए निहित स्वार्थों के कारण ले ली जाती है.

गर्मियों के दौरान, जब महीनों तक बारिश नहीं होती है, पेड़ों की सूखी पत्तियां और टहनियां लिटिर का रूप ले लेती हैं, जो थोड़ी सी चिंगारी से प्रज्जवलित हो जाती हैं और ज्वाला का रूप ले लेती हैं. यह प्रकृति में असंतुलन का कारण बनती है और जीव-जंतुओं और फूलों की संपदा को कम करके जैव विविधता को खतरे में डालती है.

आग से बचाव के परंपरागत तरीके कारगर साबित नहीं हो रहे हैं और अब इस मामले पर लोगों में जागरूकता लाना आवश्यक है, खासकर उन लोगों में जो जंगलों के निकट या वनाच्छादित क्षेत्रों में रहते हैं.

उत्तराखंड वन क्षेत्र आग के लिए अतिसंवेदनशील हैं, इनमें लगने वाली आग ज्यादातर मानव निर्मित होती है. जंगल की आग से उत्तराखंड के जंगल के संसाधनों का भारी विनाश होता है और साथ ही जंगली जीवन में खलल पड़ता है. वन की आग मुख्य रूप से हवा के तापमान, सापेक्षिक आर्द्रता, हवा की गति, पिछले दिन की वर्षा, ओस बिंदु तापमान, हवा के दबाव, संभावित वाष्पीकरण, भूमि की सतह के तापमान, वर्षा दर, वन प्रकार, ढलान, ऊंचाई, अल्बेडो, सड़क नेटवर्क, रेल नेटवर्क, मानव आबादी और ईंधन पर निर्भर करती है, इन सबके अलावा यह व्यक्तियों के व्यहार पर भी निर्भर करती है.

जंगल की आग को फैलने से रोकने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. आग को रोकने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों में स्थानीय लोगों को शामिल किया जाना चाहिए. एक दीर्घकालिक उपाय वार्षिक समय प्रबंधन योजना के रूप में हो सकता है. संवेदनशील क्षेत्रों के नक्शे और एक प्रारंभिक चेतावनी के साथ तैयार वन क्षेत्र में अधिक फायर लाइनों की आवश्यकता है. रोकने और नियंत्रित करने में आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए. आग के क्षेत्र में तत्काल अनुसंधान शुरू करने की आवश्यकता है. जंगल की आग के बेहतर प्रबंधन के लिए व्यवहार और आग पारिस्थितिकी का पता लगाना, जंगल की नियमित गश्त, ऐसे कई तरीके हैं जिनसे जंगल की आग का असर कम किया जा सकता है.

डाण्डी कांठी में बसन्त बौराने लगा है

हिमांशु बर्गली गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से उत्तराखंड के जंगल की आग (फारेस्ट फायर)विषय पर पीएचडी कर रहे हैं .

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Sudhir Kumar

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