एक बार जंगल में एक तेंदुआ, एक भेड़िया, बिल्ली, लोमड़ी और एक चूहे ने हिरन को मारने की योजना बनाई. यह ऐसा काम था जिसे वे कोई भी अकेले नहीं कर सकते थे. चालाक लोमड़ी ने कहा, “जब वो सो रहा होगा तब हमारा दोस्त चूहा उसके पैर पकड़ेगा और फिर तेंदुआ उसे आसानी से पकड़कर मार देगा. ऐसा करने से हम उसके मांस को कई दिन तक खा सकेंगे.” (Folklore of Uttarakhand Chalak Shatru)
चूहे और तेंदुए ने अपना काम सफलतापूर्वक पूरा कर दिया. इसके बाद सभी हिरन के अपने अपने हिस्से का मांस लेने के लिए इकट्ठा हुए. चालाक लोमड़ी ने कहा, “भाइयों ! यह मोटा हिरन ज़मीन पर पड़ा हुआ है. तुम सभी को नदी पर जाकर नहा लेना चाहिए, तुम्हारे लौटने तक मैं इसकी निगरानी करूँगी.” इस तरह वे सभी नदी की ओर चल दिए और लोमड़ी पूरे हिरन को खुद ही खा डालने का उपाय सोचने लगी.
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जब तेंदुआ वापस आया तो उसने लोमड़ी को गहरे सोच में पड़ा देख पूछा कि वह इतना चिंतित क्यों दिखाई दे रही है, “तुम क्या कहती हो, क्या हमें इसे न खाकर एक दूसरे के साथ खेलना चाहिए ?” लोमड़ी ने कहा, “प्यारे भाई ! तुम्हें बताते हुए मुझे बड़ा दु:ख है कि चूहे ने तुम्हें बहुत बड़ा शाप दिया है. उसने कहा है कि तेंदुए की सारी ताक़त और शक्तियाँ नष्ट हो जाएँ क्योंकि वह हिरन का मांस खा लेगा और मेरे लिये कुछ नहीं छोड़ेगा जबकि मैंने ही उसकी मदद की है.” खबर सुनकर शाप के डर से सकते में आए तेंदुए ने तुरंत वह जगह छोड़ दी और दूर किसी जंगल में जा छुपा. उसके बाद चूहा आया. लोमड़ी ने उससे कहा, “भाई ! जंगली बिल्ली ने कहा है कि वह हिरन के बजाय तुम्हारा मांस खाना पसंद करेगी. मैं तो तुम्हें सावधान कर रही हूँ, बाक़ी तुम्हारी मर्ज़ी.” डर से काँपता हुआ चूहा अपने बिल में जा छुपा. फिर आया भेड़िया. उसे लोमड़ी ने कहा, “प्यारे भाई ! ये बताते हुए मुझे बड़ा दु:ख है कि तेंदुआ तो बहुत ग़ुस्से में है. वह हिरन को हमारे साथ बाँटना ही नहीं चाहता. वह अपने परिवार को लेने गया है ताकि वे सब आकर इसे खा सकें. तुम्हें जैसा ठीक लगे वैसा करो पर तुम मुझसे ज़्यादा ताकतवर हो तो मैं तुम्हें यहाँ छोड़ कर जाती हूँ.” यह सुनकर भेड़िया वहाँ से सर पर पैर रखकर भाग लिया.
अब बची केवल जंगली बिल्ली. लोमड़ी ने उससे कहा, “मेरी प्यारी बिल्ली ! तेंदुआ, भेड़िया और चूहा तो मुझसे हारकर यहाँ से भाग चुके हैं. तुम और मैं हिरन के लिए द्वंद्व युद्ध करेंगे.” बिल्ली भी तुरंत वहाँ से खिसक ली और इस तरह लोमड़ी को पूरे हिरन को अकेले खाने का मौक़ा मिल गया. (Folklore of Uttarakhand Chalak Shatru)
हल्द्वानी में रहने वाली स्मिता कर्नाटक की पढ़ाई लिखाई उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों पर हुई. उन्होंने 1989 में नैनीताल के डी. एस. बी. कैम्पस से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया. वे संस्मरण और कहानियाँ लिखती हैं और हिंदी तथा अंग्रेज़ी में अनुवाद करती हैं. लोककथाओं के अनुवाद में उनकी विशेष दिलचस्पी है. वे एक वॉयस ओवर आर्टिस्ट भी हैं और कई जाने माने लेखकों की कविताओं और कहानियों को अपने यूट्यूब चैनल देखती हूँ सपने पर आवाज़ दे चुकी हैं.
यह कथा ई. शर्मन ओकले और तारादत्त गैरोला की 1935 में छपी किताब ‘हिमालयन फोकलोर’ से ली गयी है. मूल अंग्रेजी से इसका अनुवाद स्मिता कर्नाटक ने किया है. इस पुस्तक में इन लोक कथाओं को अलग-अलग खण्डों में बांटा गया है. प्रारम्भिक खंड में ऐतिहासिक नायकों की कथाएँ हैं जबकि दूसरा खंड उपदेश-कथाओं का है. तीसरे और चौथे खण्डों में क्रमशः पशुओं व पक्षियों की कहानियां हैं जबकि अंतिम खण्डों में भूत-प्रेत कथाएँ हैं.
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