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लोक कथा : धोती निचोड़ी और टपके मोती

उस वृद्ध के पास ऐसा जीवन था जिस से संतुष्ट हुआ जा सकता है. भरा पूरा परिवार— जिसमें सात पुत्र थे, सभी बाहर दूर देस में काम-काज किया करते थे. घर में सात बहुएं थीं. बूढ़ा सुबह नदी में स्नान करता. खाना खाने के बाद में दिन भर गांव भर में घूमते हुए बेफिक्री जिंदगी बसर करता. ढलती उम्र में भी वह पूरा नियम-धर्म का पालन करता. गांव से एक कोस दूर रामगंगा नदी बहती थी, सुबह का स्नान वहीं पर होता था.  (Folklore of Uttarakhand)

आखिर शरीर को किसी रोज हार ही जाना होता है. धीरे-धीरे उस वृद्ध के शरीर में भी अब वह ताकत नहीं रही कि उतार-हुलार वाली संकरी पगडण्डी से रामगंगा तक रोज जा सके. अब नित्य स्नान गांव के नौले पर जाकर होने लगा. बस यही एक बात उसे बहुत कचोटती कि जीवन भर गंगा नदी के बहते जल में स्नान ध्यान कर दिन की शुरुआत की और अब जब सद्कर्म की ज्यादा जरूरत है तो वह ऐसा नहीं कर पा रहा है. परेशान हाल में एक दिन उसने अपनी बड़ी बहू से कहा — जीवन के आख़िरी पहर में मुझे नौले के पानी से नहाना पड़ रहा है. जब तक हाथ-पाँव में ताकत रही तब तक बिना किसी नागे के गंगा जल से ही नहाया. तू घर की बड़ी है तो हर सुबह मेरे लिए रामगंगा का एक फौला पानी ला दिया करेगी तो बहुत फल मिलेगा. बड़ी बहू ने टका सा जवाब दिया — मुझे घर-बण का सारा काम करना है. गाय-बकरी भी देखने हैं और अपने छोटे बच्चों को भी. आप अगर अपनी दूसरी बहुओं से ये अपेक्षा रखें तो ज्यादा अच्छा रहेगा. वृद्ध बड़ी से छोटी के क्रम में अपनी सभी बहुओं के पास गया और यही इच्छा दोहराई. सभी से इससे मिलता-जुलता उत्तर पाकर अंत में वह सातवीं अर्थात सबसे छोटी बहू के पास पहुंचा.

छोटी बहू को न मायके का घमंड था न अपने पति के बहुत धन कमाने का. निर्धन परिवार से थी और पति भी किसी तरह पैसा भेजकर घर चला पा रहा था. उसने सोचा रोज रामगंगा जाकर एक फौला पानी भर लाने से मेरी गाँठ का क्या जाएगा. ऊपर से बुजुर्गों की सेवा का पुण्य मिलेगा सो अलग. उसने ससुर से कहा — आप मेरे लिए पिता ही हैं, मैं आपके लिए रोज रामगंगा से एक फौला पानी भर लाया करुँगी, आपकी सेवा मेरे लिए धर्म है. बूढ़ा छोटी बहू के उत्तर से बहुत कृतज्ञ हुआ और उसे मन भर आशीष दे डाला.

अब वह रोज पौ फटने से पहले ही अँधेरे में रामगंगा का रास्ता पकड़ लेती और उजाला होने से पहले ससुर के लिए नहाने का पानी ले आती. ससुर के नहाने के बाद वह उनकी धोती साफ पानी में खंगालकर निचोड़ कर सुखाने डाल देती. पति की मामूली कमाई से जैसा भी भोजन बन पाता ससुर की थाली में मन से परोस देती और स्वयं उनके बाद ही खाती. बूढ़ा बहुत प्रसन्न था कि अंतिम समय में रामगंगा के पानी से नहाने का पुण्य मिल पा रहा है. बहू यह देखकर आश्चर्य से भर जाती थी कि जब वह ससुर के नहाने के बाद उनकी धोती को धोकर निचोड़ती है तो उस से टपकने वाली बूँदे मोती बन जाती हैं. वह इन मोतियों को खर्च नहीं करती बल्कि लकड़ी के खानदानी बक्से में संभालकर रख दिया करती.

जब वह बक्सा मोतियों से पूरा भर गया तो उसने ससुर से कहा — आप घर में ब्राह्मणों के लिए एक भोज आयोजित करें. उस भोज में ब्राह्मणों के अलावा इष्ट-मित्रों और गांव वालों को भी आमंत्रित करें. लगे हाथों थोड़ा दान-पुण्य भी करें इस सबका प्रबंध मैं कर दूंगी. बूढ़ा बहुत खुश हुआ कि वह गंगा के पानी से तो नहा ही पा रहा था अब भोज और दान पुण्य का भी अवसर मिला है, जीवन सार्थक हो जाएगा. ससुर ने भोज का योजन किया. तेरह गाँवों के ब्राह्मण आमंत्रित किये और अपने सभी बंधु–मित्र भी. बहू ने भोजन करने के बाद सभी को विदा करते हुए दक्षिणा के लिए एक-एक मोती देने को ससुर के हाथ में रख दिए.

इतने शानदार भोज और दान-पुण्य को देखकर सभी बहुएं ईर्ष्या से भर गयीं. सभी ने छोटी बहू से अलग-अलग पूछताछ करी. छोटी बहू ने सभी को सच बता दिया.

अब सभी बहुओं ने बूढ़े को रसभरी बातें करके फुसलाया कि वह सभी के घर बारी-बारी रहे. ससुर की सेवा का पुण्य सभी को मिलना चाहिए, फिर छोटी बहू पर काम का बोझ भी इससे थोड़ा कम हो जाएगा. बूढ़े को बात जाँच गयी और वह सबसे बड़ी बहू के वहां रहने चला आया. अगले दिन तड़के बड़ी बहू गंगा से एक फौला पानी ले आई और स्नान के बाद खुशी-खुशी धोती धोयी और निचोड़ने लगी. देखती क्या है कि धोती निचोड़ने पर उससे कीचड़ टपक रहा है जिससे उसके कपड़े मैले हो गए. हो न हो बूढ़े से छुटकारा पाने के लिए छोटी बहू ने चालाकी दिखाई और धोती से मोती टपकने का झूठ उसे सुनाया, सोचते हुए उसने चिढ़कर धोती जमीन पर पटक दी और भीतर जाकर बूढ़े को भला-बुरा कहा. उसने ससुर से कहा वह उसकी सेवा नहीं कर सकती तो उसे जहां जाना हो चला जाए.

बूढ़ा फिर से सातवीं बहू के घर जा पहुंचा. छोटी बहू और ज्यादा मनोयोग से ससुर की सेवा टहल करने लगी. अब जब वह धोती निचोड़ती तो मोती के साथ हीरे-पन्ने भी टपकते.

एक रोज जब रात के चौथे पहर वह ससुर के लिए गंगाजल लेने नदी की तरफ गयी तो सभी जेठानियों ने मिलकर मोतियों वाला संदूक खाली कर दिया और उसे कूड़े से भर दिया. चुराए हुए मोती उन्होंने एक घड़े में भर दिए. जब सातवीं बहू पानी लेकर लौटी तो वे सभी उसे चिढ़ाते हुए ताना देने लगीं — अरे! निकलते होंगे तेरे धोती निचोड़ने से मोती, हमारे घर में रखे घड़े में तो पानी ही मोती बन जा रहा है. ऐसा कहकर ज्यों ही उन्होंने छोटी बहू के सामने घड़े को लौटा तो देखती हैं उसमें से कंकड़-पत्थर गिर रहे हैं. कूड़े-करकट के साथ निकली धूल ने उन सभी का मुंह भी गंदा कर दिया. जब छोटी बहू अपने घर के भीतर गयी तो देखती है उसमें भरा हुआ कूड़ा फिर से मोती बन चुका है.

उस दिन पहली बार छोटी बहू ने अपनी जेठानियों से कहा — रामगंगा के निर्मल जल में तो मोती भी हैं और धूल-बालू, पत्थर भी, लेकिन इनकी प्राप्ति हमारे मन के विचारों और सच्चे सेवा भावों से होती है. मैंने सच्चे मन से ससुर की सेवा की तो मुझे मोती मिले और तुम्हारे मन में ही कपट था तो तुम्हें धूल-मिट्टी मिली.     

लोक कथा : माँ की ममता

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Sudhir Kumar

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