कॉलम

रामी बलोद्याण की कथा

बरसाती झड़ी की एक सुबह से मैंने दादी से रट लगाई दूध का हलवा बना. वो बोली आज पिस्युं नी च बाबा (गेहूं का आटा). दो चार दिनों से घाम नहीं आया. बिसगुण कहाँ सुखाये. बिना गेहूं सुखाये जान्द्री में कैसे पिसेगा और मैंने पैर घिसने शुरू किये, हिंगर (जिद) डाली, बणा हलुवा, बणा हलुवा. आज मैंने कुछ नी खाना दूध का हलुवा बणा. नाक से पानी, आँख से पानी सब लतर-पतर. पर लाख मनाने के बाद भी हिंगर चलती रही.

अब तो दादी लाई कंडाली और ले झपा झप. मैंने भी छज्जा किनारे जा के भ्या-भ्या जो चालू किया और रोते रोते दे गाली बणा हलुवा की रट के साथ. दादी ने ले एक झपाक और कंडाली, जिद्दी हँकारी छोरी है तो तू उसी रामी बलोद्याण की बंशज जिसने अपने हंकार के कारण अपनी संतान के टुकड़े कर दिए थे. जब हलुवा बना तभी चैन आया मुझे.

दिन भर गुस्सा गुस्सी के चलते और कंडाली की झमझ्याट से दादी से बात नी करी. पर रात को कथा कौन लगाएगा सो दादी की चमचागिरी शुरू हो गयी. दादी हलुवा भौत खूब बना था. तू तो भौती अच्छा बनाती हैं.

उसे सब समझ आ रहा था कि ये आगे पीछे की रिंगाल (घूमना) क्यों चल रही है. मैंने और पटाने के लिए बोला हे बूडडी ढक्के सौं, त्यारू बुढया ढकै सौं. (चौन्फ्ले के बोल). और फिर वही कथा लगा आज रामी की. तूने सुबह बोला था न उसका नाम.

त सूण. भौत पुरानी बात है. बलोदियो की एक द्याण (लड़की) थी. उसका नाम रामी था. भौत स्वाणी, ऐसी जैसे धार में पूर्णमासी की जून चमकती है. लोग कहते रामी जिस घर जायेगी, उसके ससुरालियों को रांके की जरुरत नहीं होंगी. घर में रामी का दिप दिप करता रूप ही उजाला कर देगा. सात भाइयों की लाडी बहन रामी का ब्या उसके माँ बाप ने बहुत दूर कुमाऊं में बहुत बड़े सेठ घराने में कर दिया. अब क्या था, रामी जब भी तीज त्योहारो, कौथिग में मैत आती तो सोने से टूटती रहती.

गले में चन्द्रहार खगोली, कानों में ये तीन तोले की मछली, हाथों में ये मोटी धागुली, पैरो में लच्छे पौटे, बालों में शीशफूल. सारे इलाके के लोग रामी के गहने और उसका रूप देख के कहते ध्याणी का भाग हो तो रामी जैसा. गरीब मैत की सातों भौजाइयां रामी की लक दक को देख कर उसाँसी भरती.

हे राम बाबा वो गरीबी के दिन थे. लोग भौत गरीबी में दिन काटते थे. पूरे गाँव की ब्वारियां जिनके पास नथुली बुलक होती उनसे पैंछा मांग कर लाई नथुली बुलाक से ब्याही जाती थी.

रामी के सेठ ससुराल ने गांव थोक के बीच उसके मैत वालों को भी बढाई करने का मौका दे दिया. होते करते रामी का एक बेटा भी हो गया. द बाबा अब तो रामी बेटे की माँ बनकर और बड़भागी कहलाने लगी.

ऐसे ही खेलते खाते दिनों में रामी जेठ के महीने गांव की सभी ध्याणीयों की तरह खैरालिंग के कौथिग के लिए मैत आ गयी. दगड्यों के साथ कौथिग जाने की रौंस कुछ और ही होती है. अर रामी की बण ठण तो निराली ही थी. कौथिग के दिन उसकी सभी भौजाइयो ने रामी से नए कपड़ो के साथ एक एक गहना भी मांगा. रामी के पास क्या कमी थी. अपने लिये भी भौत थे और भौजाइयों को भी पैंछे दे दिए. सबने कहा कौथीग निबटते ही लौटा देंगी.

क्य जमनु छा बाबा लोगों के पास दो तीन धोती होती दो चिरऊ अर एक धरौ. गरीब जमानु गरीब लोग. त सब बेटी ब्वारी रात को ही गैणो के उजास में नहा धो गयी. सुबेर ले कर कौथिग जाना था न. ले दे के बेटी ब्वारियों के पास मिलने जुलने खुद बिसराने अर मन लगाने के लिए ये कौथिग तो होते. त बस सुबेर गोर बाछी के काम निबटा के, कूटणी, पीसणी करके सब अपनी अपनी दगड्यों के साथ चल दी.

कौथिग के रगे चंगो में दो दिन बीते गए. सबने रामी से कौथिग जाने जो भी पैंच्छा माँगा था सब लौटा दिया. अब रामी के सुसरास जाने के दिन नजदीक आ गए. उसने अपनी लत्ती कापड़ी ,गैंणी पाती सब सम्हाल दी. सब कुछ तो था पर शिशफूल नहीं मिला. अब उसे याद आया कि शिशफूल तो ननी बौ ने माँगा था अर दिया नहीं अभी तक.

सुबेर वो ननी बौ के पास जा कर शीशफूल मांगने लगी. इन मरी बाबा वींकी बौ की जड़ रामी से साफ मुकर गयी बोली मेरे पास नहीं है कुछ भी. मैंने सब लौटा दिए थे. हे राम पापी पराणी बेमानी आ गयी गैणे देख के. रामी भौत रोई अपने भैजियों से फरियाद लगाई. बड़ी भौजियों से बोला पर ननी बौ टस न मस. जो एक रट लगाई तो लगाई.

ससुरास जाते रामी ऐसी कारुणा करके रोई सारे गाँव के लोग रुणपित्त हो गए. हे बौ तू तो मेरी माँ की जगह में थी .तूने मेरा घर निकाला करवा दिया. मै अपने ससुरास में क्या जबाब दूंगी. ध्याणी हूँ तुम्हारी. लोग त अपनी द्याणीयों को देते है अर तूने मेरा ही ले लिया. हे भैरौ ठाकुर अपना हाथ मुझ पे रखना हो तू तो ध्याणीयों का देवता है. हे नरसिंह, हे खैरालिंग, हे नागर्जा तू ही देखना छैल बना के रखना हो द्यौ द्यवताओरक्षा कर्यां हो.

ससुरास में रामी ने जब अपनी सास के पास गैणे रखने को दिए त शीशफूल लापता. डर के मारे रामी ने सारा किस्सा सच्ची सच्ची सुना दिया. पकड़ा सासू ने उसका हाथ अर बोली खत्त्यां लोग निर्भागी दलिदर अपनी बेटी के गहने भी खा गए. जा सीधा अर इस घर में तभी आना जब शीशफूल साथ में लाएगी. बिल्बिलांदी रामी को उल्टे खुंटों से मैत भेज दिया गया. वो अपने दुद्यारे बच्चे को खुचली में उठाये मैतीयों के गुठ्यार में खड़ी हो गयी.

उसने ननी बौ के पैर पकड़ लिए. दे दे बौ मेरा घर न उजाड. पर उसकी बौ ने ऐंठ मार दी कि वो सब लौटा चुकी. सरया गौं हार गी बाबा पर वो नी हारी. अब रामी कहाँ जाती. उसने अपने दुद्यारे बच्चे को गोद में लिया अर बोली मेरा घर तो तूने बर्बाद कर दिया बौ जी पर तू भी आबाद नहीं होगी. अगर मै उस घर में वापिस नहीं जाउंगी तो तुम्हारा बोल्या भुर्त्या भी नी करूंगी. अर चल गी बाबा जंगल की तरफ.

घने बांज बुराँस के बण जब वो पैरकरा पंहुची तो वहां पर एक चौड़ी फटाल में थौ विसाने बैठ गयी. सारी घटना याद आने पर उसे मरने के अलावा कोइ रास्ता नी दिखाई दिया. फांस खाने को खा दे पर अपने बच्चे को कहाँ छोड़े. घणू बण बाघ स्याल खा देंगे इसे. रोई रामी जोर जोर से अर अपने बच्चे को कस के शांखी से लगा दिया. तभी उसके मन में हंकार जागा अपने बेटे की छोटी सी खुट्टी पकड़ी अर दे उसी चौड़ी फटाली में पटक दिया. द चखुली जनी पराणी फ्वां उड़ गी. अब रामी को होश नी रहा. सातों भाइयों की सात बांठी लगाई और असगार दिया तुम्हरी मौ कभी न हो. जैसे तड़प के मैं और मेरा बच्चा मरे तुम भी मरो. वो शीश फूल तुझे हॉट पड़ जाये.

अर बाबा उसकी पराणी भी ये जा अर वो जा. फट फटाग मर गयी वो. उसके सातो भाई बृत्ति करने गांव गए थे. रामी के असगार से एक एक करके मरते चले गए. सबसे छोटे भाई के परान गांव के ऊपर भैरो देवता के मंदिर के पास छूटे. हाहाकार मच गया. गांव पट्टी के लोग सन्न रह गए. ध्याणी का असगार था. ऐसी घात डाली कि सारा परिवार ख़तम हो गया.

उधर भौत दिनों तक जब रामी की कोइ खोज खबर नहीं मिली तो उसके ससुरास वालों को बच्चे की चिंता होने लगी. दूर सल्ट से रैबारी आया और उसने पूरी कथा रामी के ससुरास वालों को सुना दी. अब जो होना था वो तो हो गया था पर रामी के ससुरास वालों को बहुत गुस्सा आया कि उनकी संतान भी मारी गयी. सारे इलाके में हाम फ़ैल गयी. ऐसे कैसे छोड़ देते वो. चले अपना लाव लश्कर हथियार ले कर. अब तभी लौटेंगे जब उस गाँव को मटिया मेट कर देंगे जिस गाँव ने उनकी बच्चे के साथ न्याय नहीं किया. गाँव के नीचे पंहुच कर रुमुक पड़ने का इन्तजार करने लगे.

वह तो सतयुगी जमाना था बाबा. हर गाँव का अपना देवता होता. जब भी गाँव में कोई मुसीबत आती गांव के ऊपर से धात लगता. उठो हो गौं का लोगो, जागो हो गांव के लोगों. तैयार हो जाओ. गाँव पर मुसीबत आ गयी. हमारे गांव के जाखणी देवता ने भी पूरा लाव लश्कर देख कर धै लगाई उठो हो जागो हो सियां न राओ रामी के ससुरास वाले तुमको मारने आ गए.

हे राम बाबा पहाड़ी भूड़ गौं रुमुक पड़ते ही अपने घरों में घुस जाते थे. वै जमन कुछ उजाला तो होता नहीं था. लोग केड़े, छिल्ले जगा कर रांका करते. जाखणी द्यवता की धै सुन कर पूरे गांव में जाग पड़ गयी पर करें तो करें क्या. घनघोर अंध्यारी रात में एक हाथ को दूसरा हाथ नी दिखाई दे रहा था. सब एक एक करके अपने पराण बचाने जंगल की तरफ भाग गए.

जो होगा बिनसर होने पर देखा जायेगा अभी तो पराण बचाने की थी. रात को रामी के ससुरास वाले गाँव पंहुच गए. गांव तो सुन्नपट्ट पड़ा था. उनका गुस्सा और तेज हो गया. लै उन्होंने कर सारे गाँव की छिनका बुतडी. देवता तो देवता हुआ गांव का रखवाला. वो लगातार धै लगाता रहा. गांव वाले तो चम्पत हो गए थे. कोइ होता तो सुनता. गुस्से से बिलबिलाते लोगों को गांव में कोई नहीं मिला. तब उन्होंने ढून्ढ मचाई कि ये धै लगाने वाला है कहाँ. अर देवता तो देवता हुआ, सबसे ऊपर खेतों में अपने थान में बैठा गांव वालों को खबरदार करने का काम करता रहा. उसने कहाँ जाना था.

खोजते खाजते दुश्मन देवता के थान तक पंहुच गए. देखते क्या है अपने मुँह के दोनों तरफ छमोटा जैसे बना के जाखणी देवता गांव वालों को धधयाने पर लगा है. अँधेरे में अंदाजे से हथियार लिए लोग जाखणी देवता पर झपटे. देवता बिचारा देखे रह गया. उसे समझ में आ गया की गांव वाले अपने जाखणी को अकेला छोड़ कर भाग गए. उसने गांव वालों को सरापा हे गाँव वालों तुमने मुझे धोखा दिया. मुझे बताया तक नहीं अर अपनी जान बच कर भाग गए. मेरा सराप है की आज के बाद देवता गांव की रक्षा तो करेगा पर तुमसे बोलेगा नहीं. ना ही मुसीबत पड़ने पर धै लगाएगा.

उसने आगे देखा न पीछे अर एक बीटे के अंदर घुसने लगा. अभी वो आधा ही घुसा था कि रामी के ससुरास वालों ने उसके पैर काट दिए. आज भी हमारे बण में पैरकरा की फटाली में सात निशान देखे जा सकते हैं.

जहाँ पर रामी ने अपने बच्चे को पटाक कर बांटी लगाई थी. गाँव के ऊपर एक बीटे के अन्दर घुसते कटे पैरो वाले जाखणी देवता की पत्थर की मूर्ती भी है. बस बाबा हम मनिख तो हुए बेमान, तब से देवताओं ने बोलना छोड़ दिया बल.

 

-गीता गैरोला

देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. वे काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगी.

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Girish Lohani

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