समाज

पहाड़ों में चीड़ के पेड़ को अपवित्र मानने के पीछे की लोककथा

एक बार भादौ के महीने में गौरी कैलाश से अपने मायके के लिये निकलती हैं और रास्ता भटक जाती हैं. रास्ता भटकने पर वह अलग पेड़ों से अपना मायका पूछती हैं और रास्ता बताने पर उन्हें आशीर्वचन देकर आगे बढ़ती चलती हैं. सबसे पहले नींबू का पेड़ मिलता है गौरी उससे पूछती हैं- अरे रस्ते में की नींबू की डाली, मेरे मैतुड़े का रास्ता कौन सा है? नींबू का पेड़ जवाब देता है- दायाँ रास्ता जाता है केदारनाथ को और बायाँ जाता है तेरे मायके को. गौरी नींबू को आशीर्वचन देकर कहती है- तू सफ़ेद रंगों में फूलना नींबू की डाली और लाल रंगों में फलना-पकना. तेरे फल मनुष्य खायें नींबू की डाली.
(Folk Story of Gauri Maheshwar)

गौरी रास्ते में कुछ दूर तक चलती है तो उसे नारंगी का पेड़ मिल जाता है. गौरी अब नारंगी के पेड़ से पूछती है- हैं रे रास्ते में की नारंगी की डाली. तेरे को पता है मेरे मायके का रास्ता कौनसा है? दायाँ रास्ता जाएगा त्रियुगीनारायण और बायाँ जायेगा तेरे मायके, नारंगी की डाली जवाब देती है. गौरी नारंगी की डाली को आशीर्वचन देती है- तुम नीले रंगो में फूलना और पीले रंगों में पकना. तेरे फल देवताओं को चढ़े नारंगी की डाली.

गौरी, फिर कुछ दूर जंगल के रास्ते पर  में चलती हैतो उसे एक घिंगारु का पौधा मिल जाता है. गौरी उससे पूछती है- आहा रास्ते में की घिंगारू की डाली तेरे को मेरे मायके का रास्ता कौन सा है पता है क्या? घिंगारू की डाली कहती है- बायाँ रास्ता तो बद्रीनाथ को जाएगा, दायाँ जाएगा तेरे मायके को. गौरी घिंघारू की डाली को भी आशीर्वचन देती है और कहती है- ए डाली तू धुंधले रगों में फूलना और लाल फलों में पकना. तेरे फल पक्षी खायें घिगारू डाली.

यह कहकर गौरी अपने रास्ते में आगे बढ़ती है तो उसे किरमोड़े की झाड़ी मिलती है. गौरी झाड़ी से पूछती है- हां रे किरमोड़े की डाली मेरे मायके का रास्ता कौनसा है? किरमोड़े की डाली बताती है- बायाँ रास्ता तो जाएगा सीधा कैलास को और दायाँ रास्ता जाएगा तेरे मायके. गौरी आशीर्वचन में कहा- किरमोड़े की डाली तू पीले रंगों में फलना और नीले रंगों में पकना. तेरे फल ग्वाले लोग खायें.

अब गौरी एक बार फिर पाने रास्ते पर थी की तभी उसे हिसालू की झाड़ी मिली. गौरी हिसालू की झाड़ी से पूछती है- कह रे रस्ते के हिसालू की झाड़ी. मेरे मायके का रास्ता कौनसा होगा? हिसालू की डाली कहती है– दायाँ रास्ता तो जाएगा डोटीगढ़, बायाँ जायेगा तेरे मायके. गौरी हिसालू की डाली को आशीर्वचन देते हुये कहती है- तू कोपलों में फूलना और त्वप्पों (बूदों) की तरह पकना. रे डाली तेरे को बहू-बेटियाँ खायें.
(Folk Story of Gauri Maheshwar)

फिर मिलता है गौरी को चीड़ का पेड़. लम्बे चीड़ के पेड़ से गौरी पूछती है- ओहो धार में खड़ी चीड़ की डाली. तेरे को मेरे मायके का रास्ता पता है? चीड़ का पेड़ ऐठन में कहता है- मैं अपने ही शोर-शराबे से परेशान हूँ तेरे मायके का रास्ता मैं जो क्या जानू? गौरी ने कहा- तुझे धिक्कार है रे चीड़ की डाली. तू एक ही जन्म लेना, हरे फूलों में फूलना पर पकना फल सूख जाने के बाद. रे डाली तेरे फल खाली जमीन में झड़े रहें.

जंगल के रास्ते में गधेरे के पास गौरी को मिला देवदार का पेड़. गोरी पूछती है-  अरे गधेरे में स्थित देवदार की डाली मेरे को मेरे मायके का रास्ता बता दे? देवदार झूमते हुये कहा- यही तो है मेरी लाडिली तेरा मायका, आ जाओ मेरी बेटी. गौरी ने कहा- हमेशा हरे-भरे रहना देवदार. तेरे फूल पत्ते देवताओं को चढ़ाए जायें.

भादो के महीने गौरी को मायके में देखकर उसके मायके की औरतें कहने लगी- इस भादो के महीने आई तू मायके गौरी. जेठ के महीने आती तो  उमियाँ चबाती, कातिक के महीने आती तो सिरौले खाती. क्या खायेगी, क्या ले जायेगी तू इस भूखे भादो में. गौरी के पीछे-पीछे महेश्वर भी आ गये और गांव में ख़ुशियां छा गये.
(Folk Story of Gauri Maheshwar)

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