समाज

ग्यांजू: एक जोशीले सरल पहाड़ी की लोककथा

वह एक तो शरीर से टेढ़ा-मेढ़ा बेढब था, दूसरा दिमाग से पैदल था. कोई भी बात उसकी समझ में देर में आती थी या आती ही नहीं थी. काम ऐसा करता कि उसके ईजा बौज्यू उससे कुछ काम कराते ही नहीं थे. उसकी ईजा उससे डाँटती रहती, कहती- ये ग्यांजू हमारे वहाँ कैसे पैदा हुआ? यह तो दिन भर घूमता रहता है निगरगंड मोटा नफा न टोटा वाली बात ठैरी. जो भी काम दो, बिगाड़ देगा. हल लगाएगा तो एक फाल यहाँ डालेगा दूसरा एक मील दूर. बैल भी भड़क जाएगा. पानी लाने को कहो तो फौला ही तोड़ के ले आएगा…”
(Folk Stories of Uttarakhand Prbhat Upreti)

पर उसके ऊटपटाँग काम से कुछ अच्छा हो जाता. जैसे उसके उल्टे हल लगाने से मडुवा खूब हुआ. उसे काम करने का सीप बिल्कुल नहीं ठैरी.

सारा गाँव उसे ग्यांजू कहता, पर था खूब दिलदार, मददगार पर उसकी मदद लेकर कौन मुसीबत ले? एक दिन किसी ने कहा-  जा कुल्हाड़ी तेज पत्थर से कर ला. उसने ऐसी तेज करी कि उसकी धार कहाँ थी यही कुल्हाड़ी वाले को नहीं मालूम हुआ. उस कुल्हाड़ी को एक सेठ विचित्र चीज समझ खूब पैसे में ले गया. गाय चराने जाएगा तो ऐसे भ्योल में ले जाएगा कि गाय अब गिरी तब गिरी होतीं पर इस खास कसरत होने से उसकी चराई गाएँ खूब दूध देतीं. अक्षर सिखाने में गुरूजी की हजार लकड़ियाँ टूट गईं पर वह सीधे अक्षर नहीं बना पाया. वह खूब उत्साह से हर काम करता. उसकी समझ में नहीं आता कि लोग उसके काम से नाराज क्यों होते हैं? पर फिर भी लोग उसे कभी अपनी लड़कियों को विदा करने के लिए भेजते थे. भारी, गरा सामान वही लाता था.

एक दिन राजा के महल के लिए बहुत बड़े पत्थर लाने थे. बहुत दूर चोटी तक पहुँचाना था. तब उसे ही याद किया गया. वह पत्थर चोटी तक तो ले गया पर वहाँ कुछ पत्थर उसने ऐसे पटके कि वह टूट ही गए या फिर पहाड़ से लुढ़क गए. कारीगरों ने अपने सर पकड़े. सब उसके उत्साह प्रेम को जानते थे, पर अपना काम किसे खराब करना था?
(Folk Stories of Uttarakhand Prbhat Upreti)

एक दिन किसी ने उसे दिवाल बनाने के लिए कहा. उसने पूरा काम किया पर ऐसी टेढ़ी ऊँची टेढ़ी-मेढ़ी दिवाल बनाई कि सब खूब हँसकर बोले-ऐसी दिवार तो विश्वकर्मा ने न बनाई होगी. वह मजबूत तो खूब बनी.

एक दिन रात में वह घूम रहा था. अचानक उसने देखा बहुत से लोग धीरे-धीरे उस पहाड़ी से इस तरफ आ रहे थे. उसने सोचा कि गाँव वाले कहीं दावत में जा रहे हैं. वह जोर से चिल्लाया कि जागो हो मैं भी आता हूँ. अब उतनी रात में इतने जोर से वह चिल्लाया कि उसकी मोटी भारी आवाज पहाड़ी में गूंजी. वह सब भागने लगे. उसे लगा कि गाँव वाले उसे दावत में नहीं ले जाना चाह रहे हैं इसलिए भाग रहे हैं. वह तेज-तेज कदमों से भागा. भागने वालों ने उस पर पत्थर फेंके. इस पर उसे बड़ी रीस आई और उसने बड़े पत्थर उन पर उठाकर फेंके. वह आदमी अपने साथ के एक आदमी को मार रहे थे. वह जोर-जोर से रो रहा था. ग्यांजू को इस मार खाते आदमी पर बड़ी दया आई.

ग्यांजू ने उन्हें अपने जांतेर जैसे हाथ से उसने उनको ऐसा थपड़ाया, गंजाया कि वह सब बेहोश हो गए. तब तक हल्लागल्ला सुनकर गाँव वाले जाग गए. बाद में पता चला वह दुश्मन थे. रात को राजा के महल में कब्जा करने गए थे. सबको राजा के सामने रखा गया और उन्होंने बताया कि कैसे ग्यांजू ने इन्हें पकड़ा. राजा बड़ा खुश हुआ. उसे सेना में रख लिया गया. अंजाने में उसने ऐसे-ऐसे काम अपने अड़ियलपन में किए कि बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाते.

एक बार राजा ने अपने दुश्मन राजा से कहा- चलो कहाँ आपस में लड़कर हजार सैनिक मरवाएँ. अपने-अपने पहलवान दोनों तरफ से लड़वाएँगे जो जीतेगा वही राजा जीता माना जाएगा. ग्यांजू के राजा ने उसे लड़ने भेजा तो दूसरे राजा के सेनापति ने कहा- तू हार जाना बदले में तुझे खूब सोना देंगे. ग्यांजू को यह बात समझ बहुत बाद आई पर दूसरे कारण से. उसे रीस इस पर आई कि सोना देना है तो दे पर मैं ऐसे ही क्यों हार जाऊँ?
(Folk Stories of Uttarakhand Prbhat Upreti)

दूसरे राजा के पहलवान ने उसे देखा तो समझ गया कि यह पहलवान है नहीं ऐसे ही भक्कम अड़याट आदमी है उसे चिढ़ाते उसने कहा- आजा लाटे आगे बढ़. अब लाटे की रीस तो गजब हुई हो. बस उसका लाटा कहना क्या था कि उसे ऐसी रीस आई कि पहलवान दाँव सोचता रहा कि उसने उसे उठाकर एक ही बार में पटक दिया और उसका राजा जीत गया.

बुजुर्ग हिम्मत सिंह ने कहानी का अन्त करते कहा- हर आदमी में कुछ होता जरूर है साहब. बस टैम चाहिए उसे खुलने में. हमारे ग्यांजू को काम करने की सीप नहीं ठैरी पर वह जोशीला सरल आदमी ठैरा. डर, सबसे ज्यादा आदमी को जबरजंड काम करने से रोकता है और अज्ञान कभी डराता है तो कभी डर से अंजान भी बनाता है. बस समझो हर आदमी सब नहीं होता पर हर आदमी खाली नहीं होता हर एक में कुछ-न-कुछ होता है.
(Folk Stories of Uttarakhand Prbhat Upreti)

किसी जमाने में पॉलीथीन बाबा के नाम से विख्यात हो चुके प्रभात उप्रेती उत्तराखंड के तमाम महाविद्यालयों में अध्यापन कर चुकने के बाद अब सेवानिवृत्त होकर हल्द्वानी में रहते हैं. अनेक पुस्तकें लिख चुके उप्रेती जी की यात्राओं और पर्यावरण में गहरी दिलचस्पी रही है.

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