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अमेजन की आग दुनिया का दम घोंट देगी

मानव शरीर में जो कार्य फेफड़े करते हैं वही कार्य पर्यावरण में अमेजन के जंगल करते हैं. धरती में मौजूद कुल ऑक्सीजन में 20% योगदान अमेजन के जंगलों का है इसलिए इन्हें “धरती के फेफड़े” (Lungs of Earth) कहा जाता है. 55 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला अमेजन का वर्षावन दुनिया में सबसे बड़ा है और ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्वाडोर, बोलिविया, गुयाना, सुरीनाम व फ्रेंच गुयाना को कवर करता है. इसमें भी सर्वाधिक 60% हिस्सा ब्राजील में आता है. अमेजन का जंगल 30 लाख पौधों व जानवरों की प्रजातियों तथा 10 लाख मूल निवासियों का घर है.

ब्राजील पिछले कुछ दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है और उस चर्चा के केन्द्र में है अमेजन के वर्षावनों में बेतरतीब धधकती आग. इस आग की विभीषिका का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जंगलों से उठता धुँआ 2000 मील दूर साओ पाउलो के आसमान तक फैल गया है और अटलांटिक तट तक पहुँचने लगा है. यहॉं तक कि अमेजन बेसिन से उठने वाले धुंए को अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है. इस साल ब्राजील में जंगलों में आग की 72000 से ज्यादा घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं जो 2018 के मुकाबले 80% अधिक हैं. अगस्त 15 से अब तक पूरे ब्राजील में आग की 9500 नई घटनाएँ दर्ज की जा चुकी हैं. नासा के अनुसार अमेजोनास और रोंडोनिया राज्यों में आग की घटनाओं में वृद्धि हुई है. धीरे-धीरे आग का धुँआ दक्षिण अमेरिका को अपनी गिरफ्त में लेने लगा है.

कहा जा रहा है कि जनवरी 2019 में चुने गए नए ब्राजीलियन राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो की पर्यावरण विरोधी नीतियों के चलते वनों की कटाई में बेतहाशा वृद्धि हुई है. दावा तो यहाँ तक किया जा रहा है कि उनके राज में एक फुटबाल के मैदान के बराबर जंगलों की कटाई हर मिनट में की जा रही है. बोलसोनारो को पर्यावरण से ज्यादा आधुनिक विकास की ओर उन्मुख माना जाता है. आँकड़ों पर नजर डालें तो ब्राजील में पिछले एक महीने में तीन फुटबॉल के मैदानों के बराबर जंगलों को हर एक मिनट में काटा गया है.

हालाँकि राष्ट्रपति बोलसोनारो का मानना है कि किसानों व गैर सरकारी संस्थानों ने उन्हें बदनाम करने के लिए जंगलों में आग लगाई है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर आग के लगने के पीछे राष्ट्रपति का यह बयान गले नहीं उतरता. वह इसे ‘क्रिमिनल फायर’ कहते हैं. दुनिया भर के नेताओं ने इस आग पर चिंता ज़ाहिर की है लेकिन बोलसोनारो का कहना है कि यह उनका आंतरिक मामला है और वो इसे सुलझा लेंगे हालाँकि उनके पास आग बुझाने के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने इस आग की घटना को ‘अंतर्राष्ट्रीय संकट’ कहा है.

बड़े पैमाने पर आग लगने से कार्बन डाई ऑक्साईड व कार्बन मोनो ऑक्साईड पैदा होती है जो ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण है. अगर यह आग यूँ ही धधकती रही तो भविष्य में वैश्विक तापमान पर और ज्यादा वृद्धि देखी जा सकती है. अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस मामले में जल्द से जल्द संज्ञान लिया जाना चाहिये और यूएन को एक आपात बैठक बुलाकर आग को बुझाने के तमाम उपायों पर विचार करना चाहिये.

ऐसा नहीं है कि विकास के नाम पर पेड़ काटने का खेल सिर्फ ब्राजील में ही चल रहा है. संसद में अपनी बात रखते हुए भारत के पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने कहा कि 2014 से 2018 के बीच विकास कार्यों के लिए मंत्रालय ने एक करोड़ से ज़्यादा पेड़ काटने की अनुमति दी है. जिसमें सबसे ज्यादा लगभग 27 लाख पेड़ वर्ष 2018-19 में काटे गए हैं.

भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग के अनुसार भारत में नवम्बर 2018 से फरवरी 2019 तक जंगल में आग की 14107 घटनाएँ दर्ज की गई हैं. जनवरी व फरवरी 2019 में 558 में से 209 आग की घटनाएँ आँध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना व केरल के जंगलों में दर्ज की गई हैं जो कुल आग लगने का 37% है.

उत्तराखंड 2019 में जंगल की आग से बुरी तरह जूझता नजर आया. लगभग 900 हेक्टेयर जंगल क्षेत्र आग की चपेट में आने से उत्तराखंड को भारी नुकसान उठाना पड़ा. सभी 13 जिलों में आग की घटनाएँ घटित हुए और उनमें सबसे बुरी तरह अल्मोड़ा व नैनीताल जिले प्रभावित हुए. आल वेदर रोड के चलते लगभग 40 हजार पेड़ काटे जा चुके हैं. एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि राज्य के जन्म से लेकर अब तक 44 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जंगल नष्ट किये जा चुके हैं जो कि 61 हजार फुटबॉल के मैदान के बराबर है.

समय आ चुका है कि दुनिया भर की सरकारें अपनी पर्यावरण व जंगल नीतियों की समीक्षा करें व जंगलों को आग से बचाने के लिए अपेक्षित कदम उठाएँ अन्यथा आने वाली पीढ़ियां बढ़ते वैश्विक तापमान व संसाधनों की अनुपलब्धता झेलने को विवश हो जाएँगी.

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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Sudhir Kumar

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