Featured

पहाड़ के फूलों की सुगंध संग देश में कहीं भी मना सकते हैं होली

अपने देश और अपने गांव की मिट्टी की सुगंध दिलो दिमाग में राज करती है. उसे हज़ारों मील दूर सात समुद्र पार भी बस आंख मूंदकर ही महसूस किया जा सकता है. अपने घर और गांव की सुगंध किसी भी बीमार को स्वस्थ कर सकती है. फिर तीज और त्यौहार पर अपने घर की सुगंध कोई भेज दे तो क्या ही कहने.
(Fagun Organic Holi Colors Uttarakhand)

सीमांत जिले पिथौरागढ़ में काम कर अपने इनोवेटिव आइडियाज के जरिये देश और दुनिया में नाम कमा चुकी हरेला सोसायटी इस होली में भर लाई है, रंगों में पहाड़ के फूलों की सुगंध बुरांश, प्योंली, बिच्छू घास, पालक और पहाड़ी हल्दी से बने उनके रंगों की सुगंध किसी के भी भीतर हिमालय की के जंगलों की ताजगी भर सकती है.

हिमालय के जंगलों की इस ताजगी को नाम दिया गया है फागुन. फागुन, हिमालय की वादियों से चुने गये फूल और पत्तों से बने जैविक रंग हैं. जिन्हें बनाने के लिये जंगलों में गिरे हुये फूलों की पत्तियों का ही प्रयोग किया गया है.

फागुन का निर्माण स्थानीय युवाओं के साथ मिलकर किया जाता है. पिछले वर्षों तक यह रंग केवल पिथौरागढ़ के बाज़ार में ही उपलब्ध था इस वर्ष पहाड़ की यह सुगंध कपड़े की थैलियों में देश के किसी भी कोने में मंगाई जा सकती है.
(Fagun Organic Holi Colors Uttarakhand)

हरेला सोसायटी द्वारा बनाये गये फागुन रंग की सबसे ख़ास बात यह है कि इन रंगों से प्राप्त होने वाली आय स्थानीय युवाओं को तो रोजगार देती है साथ में फागुन से होने वाली आय का एक हिस्सा उन जंगलों के संरक्षण पर खर्च किया जाता है जहां से इन फूलों को चुना जाता है. मसलन जंगलों को आग से बचाना और उन पेड़-पौधों का संरक्षण और संवर्धन करना जिनसे फागुन के रंग बनाये जाते हैं.

तो दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर आप ले सकते हैं अपने पहाड़ के फूलों की सुगंध. अपनी होली में पहाड़ के रंग भरने के लिये वाट्सऐप के द्वारा फागुन को यहां से मंगाया जा सकता है : अबकी होली हिमालय की सुगंध संग

+91 99178 66667 पर फोन पर कॉल कर भी फागुन के रंगों से अपनी होली गुलज़ार की जा सकती है. अधिक जानकारी के लिये आप हरेला सोसायटी के फेसबुक पेज जायें: हरेला सोसायटी  फेसबुक पेज
(Fagun Organic Holi Colors Uttarakhand)

काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

3 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

5 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

5 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago