समाज

मुनस्यारी के चचा के बहाने इंजीनियरिंग के जमीनी पाठ

गांव में एक चचा थे, सरिया और एल्युमिनियम के तार मोड़कर इतनी जबर्दस्त गाड़ियां बनाते थे कि क्या कहने, रविवार को अलसुबह हम सब बच्चे कचड़े के ढेर से रबड़ के फटे पुराने चप्पल जूते और रंग बिरंगे कागज़ बटोर कर उनके दरवाजे पर चिरौरी करने पहुंच जाते! यह नब्बे के आखिरी और 21वीं सदी के शुरूआती सालो की बात है, मुनस्यारी के कई गांवों में तब बिजली आनी बाकी थी. तार-अलबत्ता पहले पहुंच चुके थे, बिजली के ये तार चुराने के लिए हम पैदल कई-कई मील ढलानें और चढ़ाई नापकर आए है.
(Engineers Day 2020)

लोहे का छुटपुट सामान एक सज्जन जो दूर के रिश्ते में मेरे मामा लगते हैं, के गैराज से चाऊ किया जाता था. ये सारा सामान चचा करीने से आंगन में फैलाकर एक-एक काम की चीज़ उठाते थे बाकी बचा हुआ सामान उनके गोदाम में किसी और दिन काम में आने के लिए पहुंचा दिया जाता.

बिजली के तारों को हथौड़ों से पीट-पीट कर गोल पहिए बनाए जाते थे. चप्पल जूतों से गाड़ी में ब्रेक लगते और रंगीन कागज़ गाड़ी की साज सज्जा में काम आता था. मैंने चचा को एक से लेकर सोलह पहिये वाली गाड़ियां बनाते हुए देखा है. चचा दसवीं में कुल चार बार फेल हुए थे.

स्कूल में एक दोस्त था, उसके बस्ते में किताबों से ज्यादा अगड़म-बगड़म सामान निकलता था. रेडियो के सेल, टॉर्च का बल्ब, दरवाजे के नट बोल्ट, पानी के नल की टौंटी और भी जाने क्या-क्या. उसके बस्ते से मैंने एक बार साबूत एंटीना भी बरामद किया है.
(Engineers Day 2020)

दोस्त अपनी दुनिया में जीता था, कभी बांस की लकड़ी से बंदूक बनाता, कभी रेडियो के सेल में तार चिपका कर टॉर्च का बल्ब जला देता, नौ के पहाड़े में एक सौ पिचासी बार अटकने वाले दोस्त की आंखें कलपुर्जे देखकर चमकने लगती थी. बाद में उसने जैसे-तैसे डिप्लोमा किया और अभी कुछ भी नहीं करता.

मेरे गांव में एक मंदिर है, दीपावली के ठीक दूसरे दिन से मंदिर में पूजा शुरू हो जाती है जो अगले तीन दिन तक चलती है. मंदिर में बिजली पानी की व्यवस्था कई सालों से एक ददा के हाथों में है जो मेरे ख्याल से आर्ट्स में ग्रेजुएट है या शायद नहीं भी होंगे.
(Engineers Day 2020)

कुछ साल पहले का एक वाकया याद आता है जब गांव में बढ़ते हुए लौंडे इंजीनियरों का भरोसा कर ददा सुबह ही अपने ससुराल निकल गए. अच्छे खासे प्रतिष्ठित संस्थानों से इंजीनियरिंग पढ़ रहे लौंडे शाम होने तक बिजली के तार नहीं लगा पाए. पूरा दिन एक कोने में खड़े होकर कैपेसिटर-फैफीसिट्र जैसी किसी टुईया चीज पर उनकी कानाफूसी चलती रही. शाम को दाज्यु ससुराल से आए. मिनट से पहले उन्होंने बिजली के तार दांत से काटे, पेंचकस और प्लास से कुछ तिकड़मबाजी की और बिजली जला दी.

प्लास और पेंचकस फर्श पर रखते हुए उन्होंने लौंडे इंजीनियरों को हिकारत से देखते हुए कहा – कद्दु के इंजीनियर ठैरे तुम बिजली की लड़ी नी जला पाने वाले हुए एक. मल्लब कोई बात जो क्या हुई यार ये.

इस देश के किसी भी इंजीनियर से आप ये सवाल पूछ लीजिए मैं स्टांप पेपर पर लिख कर दे सकता हूं वो आपको बताएंगे कि इंजीनियर उन्हें फील्ड वर्क ने बनाया है, कॉलेज-फालेज उनको बस गधा बनाते रहे. इसलिए कहता हूं कि किताबी पढ़ाई में मुझे भांग के दाने जितना वज़न नहीं लगता.
(Engineers Day 2020)

मुनस्यारी के रहने वाले लवराज टोलिया कवि और गीतकार हैं. लवराज टोलिया का पहला कविता संकलन ढुंग्चा साक्ष्य प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है.

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  • हा हा हा बहुत ही अच्छा लेख है मज़ा आ गया पढ़ के । 😁

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